आपकी राय
गांठ का धन
दैनिक ट्रिब्यून के संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित लेख ‘गांठ का धन ही सहेजेगा आपका बुढ़ापा’ में लेखिका क्षमा शर्मा ने एक तरह से चेताया है कि यदि गांठ में धन नहीं तो दूसरे साधन समय पर खरे नहीं उतरेंगे। इसलिए बुढ़ापे के समय में सिर्फ जमा-पूंजी ही सुरक्षा कवच उपलब्ध करा सकती है। जरूरी है कि बचत के मामले में थोड़ा-थोड़ा जमा कर घट भरने की कहावत को याद रखना चाहिए। यही नहीं, समय रहते इसे व्यावहारिक रूप भी देना चाहिए। मुसीबत के समय आप द्वारा की गई बचत ही आपकी सबसे सच्ची हितैषी और मित्र साबित होती है। लेखिका ने सही कहा कि मुश्किल समय में तो अपने नजदीकी भी मुंह फेर लेते हैं।
वेदपाल राठी, रोहतक
सामूहिक जवाबदेही
संपादकीय ‘बेखौफ बर्बरता’ में उल्लेख है कि कुछ लोगों ने पीड़िता के प्रति जानबूझकर अनदेखी की, जो सच है, किंतु पुलिस और कुछ लोगों ने मानवीयता भी दिखाई, जिसकी सराहना हो रही है। हैवानियत की घटना से नागरिक आक्रोशित तथा शर्मिंदा हैं। जरूरत है दुर्भाग्यपूर्ण तथा हृदयविदारक घटना पर सियासत न हो, पुनरावृत्ति रोकने व सुरक्षा के प्रयासों पर गहन चिंतन जरूरी है, क्योंकि कानून का खौफ बोथरा हो रहा है। वीडियो बनाने की बजाय व्यक्ति मानवीयता के साथ संवेदनशील हों। पीड़िता को पनाह और पुलिस को सूचना को सामूहिक जवाबदेही मानें।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
पाशविक प्रवृत्ति
उज्जैन में किशोरी के साथ अमानवीय अत्याचार की घटना ने दिल को दुखी कर दिया। बिहार में भी एक दलित महिला के साथ अमानवीय अत्याचार हुआ। यह सभी घटनाएं शर्मसार करने वाली हैं। केंद्र एवं राज्य सरकार महिलाओं के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध हैं लेकिन पाशविक प्रवृत्तियों पर रोक लगाना आसान नहीं दिखाई देता है। सरकार को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली
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