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विवादों का कारोबार
हाल ही में रिलीज हुई रामायण पर आधारित ‘आदिपुरुष’ फिल्म विवादों के घेरे में है। फिल्म में दर्शाये गये कुछ दृश्य, वेशभूषा एवं संवाद को लेकर लोगों में काफी आक्रोश है। फिल्म में जिस तरह निम्न स्तर के संवादों का प्रयोग किया गया है वह किसी भी लिहाज से माफी के लायक नहीं है। फिल्म जगत में आस्था के साथ यह पहली बार खिलवाड़ नहीं हुआ है। इससे पहले भी कई बार फिल्मों के माध्यम से लोगों की धार्मिक भावनाओं पर चोट पहुंचाई गई है। ऐसी फिल्में ना केवल लोगों को दिग्भ्रमित करती हैं बल्कि इससे धार्मिक भावनाओं के भड़कने की आशंका रहती है। ऐसी फिल्मों के निर्माण में जितने दोषी फिल्म निर्माता हैं उतना ही दोषी केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड भी है।
शिवेन्द्र यादव, कुशीनगर, उ.प्र.
भाषा के पेच
केंद्र सरकार ने नयी शिक्षा नीति में मातृभाषा को शामिल किया है। सरकार का यह कदम सराहनीय है। सवाल उठता है कि क्या अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के लिए यह नीति कामयाब हो सकती है? अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा और अन्य प्रतियोगिताओं के लिए अंग्रेजी का ज्ञान जरूरी है। बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा से ही हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं का ज्ञान देना जरूरी है। रही बात स्थानीय भाषाओं की तो उसका ज्ञान भी जरूरी है, क्योंकि इससे भावी पीढ़ी अपनी संस्कृति और इतिहास के बारे अच्छी तरह जान सकती है।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
कानून की जरूरत
पांच जुलाई के दैनिक ट्रिब्यून में सीमा अग्रवाल का लेख ‘देश की एकता-अखंडता के लिए पहल जरूरी’ में राजद्रोह कानून की जरूरत बताया गया। भारत में विविधता में एकता पाई जाती है। कुछ शक्तियों को यह रास नहीं आता है। ये शक्तियां भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में कमजोर करने के लिए अलगाववादी और आतंकवादी गतिविधियों को संचालित करते रहती हैं। इन राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को नष्ट करने के लिए राजद्रोह कानून अति आवश्यक है।
जयभगवान भारद्वाज, नाहड़
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