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आत्मनिर्भरता का विकल्प
बेशक भारत विभिन्न क्षेत्रों में अपनी कामयाबी के झंडे गाड़ रहा है लेकिन अभी चीन पर निर्भरता खत्म होती नहीं दिख रही। आंकड़ों की जुबानी भारत चीन से थोक दवा निर्माण सामग्री के आयात में 2013-14 में 62 और 64 फीसदी निर्भर था। अब 7 प्रतिशत की दर से वृद्धि होते आज 2022-23 में 71 और 75 फीसद तक पहुंच गया है। बढ़ते आंकड़ों से चीन की कमाई भी अरबों डॉलर हो गई है। यह आंकड़े चिंताजनक हैं। आत्मनिर्भर भारत चिकित्सा एवं दवाओं के क्षेत्र में स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा दे तो हमारी अरबों की कमाई विदेशों को जाने से रोकी जा सकेगी।
अमृतलाल मारू, इन्दौर, म.प्र.
विकास की पटरी
पंद्रह अगस्त के दैनिक ट्रिब्यून में शंभूनाथ शुक्ल का लेख ‘भारत का भाग्य बदलने वाली ट्रेन’ चर्चा करने वाला था। वैसे तो अंग्रेजों ने व्यापारिक तथा प्रशासनिक दृष्टि से दिल्ली व मुंबई आदि के लिए ट्रेनें चलाईं परंतु उन्होंने जो कालका से कोलकाता तक ट्रेन चलाई उसने काया ही पलट दी। रेलगाड़ी द्वारा अंग्रेजों ने अपना समान गांव-गांव तक पहुंचाया। पंजाब, हरियाणा, मारवाड़ आदि के लोगों को देश के अलग-अलग भागों विशेष तौर पर कोलकाता में व्यापार करने के लिए प्रोत्साहित किया। देखा जाये तो कालका मेल ने भारत की अर्थव्यवस्था के विकास तथा भारत के लोगों को जोड़ने में अहम भूमिका निभाई है।
शामलाल कौशल, रोहतक
एकाकीपन का संत्रास
सत्रह अगस्त के दैनिक ट्रिब्यून विचार अंक में अविजीत पाठक का ‘अकेलेपन के संत्रास से खोखला होता समाज’ लेख मानवीय समाज के एकाकीपन के उपचार का विश्लेषण करने वाला रहा। मोबाइल व इंटरनेट पर मौजमस्ती, संतान की जिद के आगे माता-पिता की लाचारी, धन कमाने के लिए विदेश भागने की युवा चाहत के चलते अपनों की जुदाई का खमियाजा भुगतना पड़ता है। यहां तक कि अंतिम समय में भी अपनी संतान के हाथों संस्कार से वंचित हो जाते हैं। सामाजिक विडंबना की प्रस्तुति लेखक का सफल प्रयास है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल