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महंगाई की तपिश
तीन जुलाई के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘सब्जियों के तल्ख तेवर’ सब्जियों की आसमान छूती कीमतों की चुभन को महसूस कराने वाला था। यह ठीक है कि बरसाती मौसम में सब्जियों की आपूर्ति कम और मांग ज्यादा होती है। ऐसे में सब्जियों के भाव बढ़ना स्वाभाविक है। जिस तरह सब्जियों के भाव बढ़ रहे हैं उससे बिचौलियों के नापाक खेल का पता चलता है। आसमान छूती सब्जियों की कीमतों के कारण रसोई का अर्थशास्त्र गड़बड़ा गया है। ऐसे समय में सरकार को सस्ती सब्जियों की दुकानें खोलकर उपभोक्ताओं को राहत पहुंचानी चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
भंडारण में समाधान
‘सब्जियों के तल्ख तेवर’ संपादकीय दैनिक ट्रिब्यून ताजा हालातों पर प्रासंगिक लगा। देश में हर साल मानसून की पहली बरसात के बाद ऐसा ही हाल होता है। रातों-रात भाव आसमान छूने लगते हैं। ऐसे में गरीब ही नहीं मध्यवर्गीय परिवार के किचन का बजट भी बिगड़ना स्वाभाविक ही है। परंपरागत होने वाली इस समस्या का स्थाई निदान न सरकारें ढूंढ़ पाई हैं न मूल्य नियंत्रण समिति रोक पाई है। ऐसी स्थिति का सामना करने के लिए महीने भर तक पूर्व भंडारण से किया जा सकता है जिस पर सरकार को सोचना चाहिए।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
वक्त की जरूरत
प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा से देश को ड्रोन और जेट इंजन टेक्नोलॉजी का मिलना अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इससे जहां भारत की रक्षा जरूरतें पूरी होंगी वहीं भारतीय आयुध निर्माता फैक्टरियां अधिक बड़े पैमाने पर निर्माण में जुट जाएंगी जिससे रोजगार बढ़ेंगे। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आ जाने के बाद देश और ताकतवर की श्रेणी में आ जायेगा। आने वाले युग में अब सेना बल के बजाय इलेक्ट्रॉनिक रोबोटिक का युद्ध अधिक महत्वपूर्ण हो जाएगा।
सुभाष बुड़ावन वाला, रतलाम, म.प्र.