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चीन पर भरोसा?
तेईस अक्तूबर के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘कुछ तो बर्फ पिघली’ लद्दाख में एलएसी पर भारत और चीन की सेनाओं के बीच गश्त करने के समझौते का वर्णन करता है। रूस में होने वाले ब्रिक्स सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच बातचीत पर सबकी नज़र है। इस समझौते से चीन दुनिया को यह संदेश देना चाहता है कि वह पड़ोसी देशों के साथ शांति चाहता है। भारत की सहायता से वह रूस और यूक्रेन में युद्धविराम की मध्यस्थता के लिए तैयार है। हालांकि, इसके बावजूद हम चीन पर विश्वास नहीं कर सकते। वह कई बार समझौते करके उनके अमल से बचता रहा। वह भारत के अभिन्न अंग अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
आतंकवाद की चुनौती
बाईस अक्तूबर के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘गांदरबल का ज़ख्म’ पाक आतंकवादियों द्वारा चिकित्सक और 6 गैर-कश्मीरी लोगों की हत्या के बाद भारत-पाक संबंधों में सुधार पर सवाल उठाता है। जम्मू कश्मीर में शांतिपूर्ण विधानसभा चुनाव संपन्न होना पाकिस्तान के आतंकियों को सहन नहीं हुआ। फारूक अब्दुल्ला ने पाकिस्तान की भर्त्सना करते हुए कहा कि कश्मीर कभी भी उनका नहीं हो सकता। सरकार को आतंकी हमलों को रोकने के लिए अपनी नीति में बदलाव कर सख्त कार्रवाई करनी होगी।
शामलाल कौशल, रोहतक
परेशानी का सबब
हवाई यात्रा यात्रियों के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है। हवाई जहाजों को बम से उड़ाने की धमकियों से फ्लाइटों का देरी से उड़ना, यात्रियों के सामान की चैकिंग उन्हें अपने गंतव्य तक पहुंचने में देरी करती है। बेवजह की परेशानी, वो अलग। सरकार को ऐसे फर्जी ईमेल पर कार्रवाई कर शरारती तत्वों को सख्त सज़ा का प्रावधान रखना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसे भद्दे मजाक कर वे यात्रियों के लिए परेशानी की स्थिति न पैदा करने पाएं।
अभिलाषा गुप्ता, मोहाली