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रईसी के बाद ईरान
बाईस मई के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘रईसी के बाद ईरान’ ईरान के राष्ट्रपति, विदेश मंत्री तथा कुछ अन्य लोगों के हेलीकॉप्टर दुर्घटना में दुखद मृत्यु के बाद की स्थिति का जायजा लेने वाला था। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस्राइल और अमेरिका ईरान के परमाणु कार्यक्रम के विरुद्ध थे, जिस कारण से अमेरिका तथा उसके कई सहयोगी देशों ने ईरान पर प्रतिबंध लगा रखे थे। वैसे भारत और ईरान के सौहार्दपूर्ण संबंध रहे हैं। इसका प्रमाण ईरानी बंदरगाह चाबहार में भारत की भागीदारी है। ईरान की मध्य पूर्व की कूटनीति तथा सामरिक रणनीति में कोई परिवर्तन नहीं होगा, ऐसी आशा करनी चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
सोचकर बोलें
कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपने भाषणों में क्या बयान दे दें, समझ से परे ही होते हैं। ताजा मामले में उन्होंने कह दिया कि कांशीराम जी दलित अभिव्यक्ति के अलावा कुछ भी नहीं थे। कांशीराम के प्रति उनकी टिप्पणी अप्रासंगिक एवं अव्यावहारिक और अस्वीकार्य है। कांशीराम का सपना और दृष्टिकोण बहुजन समाज में एक बड़ा विश्वास दिलाता है। राहुल को यह समझना चाहिए था। इस समय राहुल की टिप्पणी चर्चा का विषय बन चुकी है एवं सोशल मीडिया पर एक बहस भी जारी है।
वीरेन्द्र कुमार जाटव, दिल्ली
कार्यशैली पर सवाल
चुनाव आयोग अब नींद से जागकर राजनीतिक दलों को नोटिस भेज रहा है कि वे धर्म, जाति, संप्रदाय, सेना, संविधान पर बयानबाजी न करें। अगर यह सख्ती आदर्श आचार-संहिता लगने के पूर्व की जाती तो समझ में आता। चुनाव आयोग की कार्यशैली से निष्पक्षता की छवि पर सवाल उठ रहे हैं। पूर्व में टी.एन. शेषन ने अपनी सख्त व निष्पक्ष कार्यशैली से आयोग की जो विश्वसनीय छवि बनाई थी, अब वह पूरी तरह से प्रभावित होती जा रही है।
हेमा हरि उपाध्याय, खाचरोद, उज्जैन