मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

स्वच्छंद व्यवहार का योगमय संयमन

01:36 PM Jun 18, 2023 IST

हिमालयसिद्ध योगगुरु ग्रैंडमास्टर अक्षर से बातचीत

Advertisement

इन सुलगते सवालों के समाधान के मुद्दे पर हिमालयसिद्ध योगगुरु ग्रैंडमास्टर अक्षर कहते हैं कि ऐसी स्थितियों में अंकुश संभव नहीं है। ऐसे में कोशिश हो कि जैसे कीचड़ में कमल खिल जाता है, वैसे ही विषम स्थितियों में सकारात्मकता के साथ नये कार्य में बच्चों-किशोरों को व्यस्त रखा जाये। ऐसे में जो चीजें निगेटिव लगती हैं, नुकसान पहुंचाती हैं, वे मौजूद होते हुए भी प्रभावित नहीं करेंगी। हर युवा किसी न किसी रचनात्मक-उत्पादक कार्य में व्यस्त रहे जो समाज व व्यक्ति के हित में हो। आप किसी की इच्छाओं का दमन नहीं कर सकते। डिक्टेटरशिप से समाज कुंठित होगा। आप खुद को कर्मशील बनाएं। तो फिर ऐसी स्थिति में बारिश तो हो रही होगी, लेकिन कीचड़ न बनेगा। पानी का निरंतर प्रवाह रहे तो कीचड़ नहीं बनता। यही बारिश का पानी जीवनदायी जल बन जाता है। वैसे भी काम वासनाओं के अतिरेक से मनुष्य की तृप्ति नहीं हो सकती। लिप्साओं का कोई अंत नहीं है। कुछ समय बाद हृदय फिर चंचल हो जाता है। ऐसे में व्यक्ति ऐसे गलत कार्य करता है जो उसकी सीमा से परे हैं। ये ही कृत्य समाज पर बोझ बन जाते हैं।

सकारात्मकता की दवा

Advertisement

दरअसल, बाजार संचालित इंटरनेट सोशल मीडिया वही सब परोसता है,जिसमे लोग रुचि दिखाते हैं। चिरकाल से यह समस्या समाज में विद्यमान है। यहां तक कि ऋषि-मुनि, सिद्ध व देवों के बहकने की तमाम कहानियां व वृत्तांत हैं। हमें जीवन को ऐसी स्थिति में रहते हुए भी पॉजिटिव बनाना होगा। समस्या की जड़ पर प्रहार करें न सिर्फ पत्तों पर। माना शरीर में बुखार है तो गर्म त्वचा पर पानी डालने से ताप न जाएगा। समस्या के जड़ से निवारण के लिये दवा लेनी होगी। गीता में कृष्ण जी कहते हैं कि एक सुंदर अभ्यास वैराग्य जैसी शक्ति दे सकता है। मनुष्य का चित्त हर प्रकार की लिप्साओं में पूरी तरह से लीन हो सकता। किसी इच्छा से उसको हटाने के लिये बड़ी इच्छा दिखानी होगा। जैसे व्यक्ति भगवान की पूजा कुछ बड़ा पाने के लिये करता है।

विवेक और विकल्प

निस्संदेह, अश्लीलता से जगत का चाव स्वाभाविक मानवीय वृत्ति है। इससे किसी को हटाना है तो उस कार्य में लगाना होगा जो इससे अधिक चाव या सुख देता हो। जहां तक बच्चों का प्रश्न है तो मार्गदर्शन से बच्चा धीरे-धीरे परिपक्व होगा। उसकी प्राथमिकता बनेगी कि कौन सी इच्छा को पूर्ण करना है। समाज में संतुलन की जरूरत है। बच्चों को एक बार मना करेंगे तो वो दस बार करेगा, उसमें सही-बुरे का बोध पैदा करना होगा। समस्या के समाधान के लिए योग-ध्यान को और गहरा बनाना होगा। बच्चे खूब मेहनत करें। खुद को हरदम व्यस्त रखें। बच्चे खूब खेलों में भाग लें। परिवार के साथ समय बिताएं। प्रेरक बातें करें। स्थिति पर धीरे-धीरे नियंत्रण होगा

समाधान के उपाय

जहां तक इंटरनेट में खुलेपन की बात है तो इसे तब तक स्वीकारें जब तक वो समाज को चोट न पहुंचाए। समस्या के समाधान के लिए सोशल मीडिया व टीवी पर अच्छी सामग्री लाएं। समाधान कंट्रोल में नहीं, अच्छा कंटेंट लाने में है। जरूरत है कि अच्छा संगीत बनाएं। अच्छी कहानी पर कार्यक्रम बनाएं। जो भोग कर रहा है उसे खुद का नुकसान नजर नहीं आता। जब टीवी पर रामायण आई तो पूरे भारत ने आनन्द लिया। सब काम छोड़कर टीवी पर बैठे। अच्छा कंटेंट चित्त को लुभाता है। जन्म से कोई राक्षस नहीं होता। परवरिश महत्वपूर्ण होती है। बताना जरूरी है कि वे चित्त व समय का नुकसान कर रहे हैं। सवाल ये है कि उन्हें कैसा भोजन दे रहे हैं। युवाओं को बताएं कि सार्वजनिक जीवन में व्यवहार मर्यादित होना चाहिए। परिवार संस्था की गरिमा बनी रहे। वैवाहिक संस्था व सामाजिक मूल्यों को चैलेंज की घटनाएं चिर काल से हैं। सरकार जन कल्याण के लिये बहुत कुछ करती है। लेकिन समाज में अशांति फैलाने वाले लोगों के लिये जेल भी बनाती है। दुनिया में आठ बिलियन आदमी रहते हैं फिर भी पृथ्वी शांत रहती है। हम सोशल मीडिया डिटॉक्स करते रहें तो यही धरती स्वर्ग लगेगी।

Advertisement