For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

मासूमों के लिए लापतागंज बनती दुनिया

06:48 AM Nov 24, 2024 IST
मासूमों के लिए लापतागंज बनती दुनिया
Advertisement

वीना गौतम
एक तरफ तो आज की डिजिटल दुनिया आधुनिक संचार माध्यमों और परिवहन साधनों की बदौलत ग्लोबल विलेज में तब्दील हो गई है। दूसरी तरफ इसी दुनिया में भारत से हर दिन हजारों की संख्या में बच्चे लापता हो रहे हैं। ऐसे दौर में जब हर कहीं पलक झपकते सूचना पहुंच जाती हो, जब हर कहीं कैमरे की पहुंच हो गई हो तो हर साल देशभर से लगभग 80,000 से ज्यादा बच्चों के गायब होने का क्या मतलब है? राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के दिसंबर 2023 में जारी आंकड़े बताते हैं कि साल 2022 में 83,350 बच्चे गायब हुए, जिनमें 20,380 लड़के व 62,946 लड़कियां और 24 ट्रांसजेंडर थे। इनमें ज्यादातर तलाश भी लिए गये लेकिन 2781 बच्चे हमेशा हमेशा के लिए ओझल हो गये। जबकि इसके पहले एनसीआरबी ने जो डाटा 2022 में पेश किया था, उसमें लापता हुए बच्चों की संख्या 76,069 थी। मतलब साफ है कि अगले एक साल में लापता हुए बच्चों की संख्या में तकरीबन 6000 की बढ़ोतरी हो गई। जबकि 2021 में गायब होने वाले बच्चों की संख्या सिर्फ 33,650 थी। इन आंकड़ों से पता चलता है कि बच्चों के गायब होने की संख्या में भारी बढ़ोतरी हो रही है।

Advertisement

उपलब्ध आंकड़ों से कहीं ज्यादा बच्चे गायब

सवाल है एक तरफ जहां बच्चों की सुरक्षा के लिए हर साल नई से नई बातें कही जाती हैं, कसमें खायी जाती हैं और आधुनिक से आधुनिक उपकरण लगाकार सुरक्षा व्यवस्था की जाती है। फिर भी मासूमों के गायब होने के सिलसिले में जरा भी कमी आने की बजाय बढ़ोतरी क्यों रही है? अगर इस मामले में हम एनसीआरबी के आंकड़ों की जगह उन गैरसरकारी संस्थाओं पर यकीन करें, जो बच्चों के लापता होने की समस्या में काम करती हैं, तो बच्चों के गायब होने की वास्तविक संख्या इससे ज्यादा है। इनके मुताबिक तो हर साल 80-85 हजार नहीं बल्कि कई लाख बच्चे गायब हो रहे हैं। यही वजह है कि आज देश में हर एक मिनट में कम से कम दो बच्चे गायब हो रहे हैं। घर से बिछुड़कर आखिर ये मासूम कहां चले जाते हैं? क्योंकि जो बच्चे अगले एक महीने तक नहीं मिलते, घरों से गायब होने वाले ऐसे बच्चों के घर वापस न आने की आशंका करीब सौ फीसदी हो जाती है।

सुराग नहीं मिलने पर सवाल

जो बच्चे गायब होने के बाद मिल जाते हैं, उनके बारे में तो हम थोड़ा-बहुत जानते भी होते हैं कि इन्हें कौन और कैसे बहला-फुसलाकर ले गया था। लेकिन जो बच्चे कभी लौटकर आये ही नहीं, उनके बारे में मां-बाप कुछ भी नहीं जानते। संचार के साधनों के बावजूद एक-डेढ़ फीसदी बच्चे गायब होने के बाद कभी वापस नहीं आते। हालांकि अपराधियों की धड़पकड़ में हाल के सालों में इजाफा हुआ है। पुलिस के पास आज पहले के मुकाबले जांच पड़ताल के बेहतर संसाधन हैं, इसके बाद भी गायब बच्चों की एक तय संख्या लौटकर घर नहीं आती, तो आखिर उनका होता क्या है? उनका कोई सुराग क्यों नहीं मिलता?

Advertisement

रिपोर्ट ही नहीं लिखी जाती

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ऑफ इंडिया के डाटा विश्लेषण के मुताबिक हर दिन हजारों की संख्या में गायब होने वाले बच्चों में से बहुत मामूली संख्या में ही बच्चे लौटकर आ पाते हैं। सैकड़ों बच्चों की तो रिपोर्ट ही नहीं लिखी जाती, उनके मां-बाप द्वारा कोशिश किये जाने पर पुलिस उन्हें डांटकर थाने से भगा देती है। जिन बच्चों को निठारी कांड में क्रूरता की बलि चढ़ा दिया गया था, उनके मां-बाप ने पुलिस से उनके लापता होने की शिकायतें की थीं, लेकिन पुलिस ने कोई ध्यान ही नहीं दिया।

अपराध के शिकार होने की आशंका

वास्तव में जो बच्चे कभी भी वापस घर नहीं आ पाते, वो अपराधियों के चंगुल में फंस जाते हैं। गायब होने वाली लड़कियों के साथ अकसर रेप जैसी घिनौनी वारदातें होती हैं और ज्यादातर को मार दिया जाता है। अगर इंटरनेशनल क्राइम पर नजर रखने वाले पत्रकारों की रिपोर्टें देखें तो पता चलता है कि ऐसे सैकड़ों बच्चों के अंगों की तस्करी होती है। सफेदपोश संगठन इन बच्चों के अंगों को अकसर चुपचाप निकाल लेते हैं।
बच्चे आतंकवाद का भी सबसे आसान हथियार बन जाते हैं। कुछ साल पहले आयी यूएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के सत्ता विरोधी सशस्त्र संगठनों ने बच्चों को अपने संघर्षों में हिस्सेदार बना दिया है। आज की दुनिया में बच्चों की मासूमियत के लिए जगह नहीं बची। शायद इसीलिए बच्चों के खोने की आपराधिक घटनाओं में तमाम सरकारी, गैर सरकारी प्रयासों के बावजूद कमी नहीं आ रही बल्कि खोने वालों बच्चों की तादाद लगातार बढ़ रही है। अब वक्त आ गया है, लोग घरों से निकल सड़क पर भी नजर रखें और गायब हो रहे बच्चों की खोज खबर लें।

-इ.रि.सें.

Advertisement
Advertisement