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कारोबार नहीं जीवन संवर्धन का मंत्र है योग

07:52 AM Jun 30, 2024 IST
कारोबार नहीं जीवन संवर्धन का मंत्र है योग
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आज भारतीय प्राचीन योग विद्या को वैश्विक स्तर पर विशिष्ट प्रतिष्ठा मिली। विश्व योग दिवस घोषित किये जाने के बाद तो दुनिया में जाति, धर्म और भौगोलिक सीमाओं से परे योग से लोग जुड़ रहे हैं। मगर आज योग के नाम पर दुनिया में अरबों रुपये का कारोबार हो रहा है। मुनाफे के कारोबार में वे लोग पीछे छूट गए जो सात्विकता के साथ शास्त्रीय परंपराओं के जरिये जन कल्याण के लिए योग सिखा रहे थे। कभी जिनके नाम से दूरदर्शन पर योग के कार्यक्रम देखे जाते थे, ऐसे योगी लालजी महाराज आज पार्श्व में हैं। पिछले दिनों लालजी महाराज से हुई अरुण नैथानी की विस्तृत बातचीत के चुनिंदा अंश :

पिछले छह दशक से देश व दुनिया में प्राचीन योग विद्या के प्रचार-प्रसार से जुड़ा रहा हूं। आज मैं इस बात से विचलित हूं कि लोगों ने महज आसनों को योग मान लिया है। योग हमारी हजारों साल पुरानी समृद्ध विरासत है। योगी को एक पवित्र जीवन के साथ योग की शुरुआत करनी चाहिए। योग का आधार अष्टांग योग है। हमें यम-नियम के साथ योग की शुरुआत करनी चाहिए। योग कारोबार नहीं हो सकता। योग जटिलताओं का नाम नहीं है। योग का मतलब शरीर को कष्ट देना भी नहीं है। आम आदमी के लिए योग वह जीवन पद्धति है जिसे वह गृहस्थ जीवन के साथ सहजता से कर सके।

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योग की समृद्ध विरासत

मेरे पिताजी ब्रह्मलीन स्वामी देवीदयाल जी अपने समय के प्रतिष्ठित योगी थे। लोग उन्हें बड़े आदर की दृष्टि से देखते थे। उस समय योग की चर्चा बहुत कम होती थी। पिताजी के गुरु योगीश्वर मुल्खराज का आश्रम कनखल में था। उनके जो गुरु रामलाल थे, वे 137 साल पहले संसार में आये थे। वे अमृतसर में प्रकट हुए और बाद में हिमालय में साधना करते रहे। वे योगियों के सरताज थे। उनकी योग, ज्योतिष व आयुर्वेद में महारत थी। उनके प्रयासों से लाखों लोगों को लाभ हुआ। कई रोगियों को चार-पांच लोग उठाकर लाते और वह पांच-छह दिन में ठीक हो जाता। आज देश में योग की जो समृद्ध विरासत है उसका काफी हद तक श्रेय महाराज रामलाल प्रभु जी को जाता है। उन्होंने योग का सरलीकरण किया। योग हमारी बहुत प्राचीन विद्या है। गीता उठाओ तो सारा योग है। हमारे हर ग्रंथ में योग का जिक्र है। उपनिषदों को ले लीजिए। वेदों को ले लीजिए। हर जगह योग की महिमा गायी गई है। खासकर मन को शांत करने के लिये। बीमारियों से लड़ने के लिये गजब का शास्त्र है। आज जो बड़े-बड़े डॉक्टर कह रहे हैं, वो योगियों ने पंद्रहवी शताब्दी में लिख दिया कि सैकड़ों बीमारियां योग से ठीक हो सकती हैं।

घर में मिला योग का माहौल

मेरे घर के वातावरण ने मुझे योग का पहला पाठ दिया। मैं आठ वर्ष का रहा होगा, पिताजी व्याख्यान देते थे तो मैं योग के आसनों का प्रदर्शन करता था। कालांतर पढ़ाई का मौका मिला तो खूब योग का प्राचीन साहित्य पढ़ा। कई योगियों का सान्निध्य मिला। बचपन से पढ़ने का शौक था। योग की किताबें पढ़ी, मसलन हठप्रदीपिका, घेरंड संहिता, योगवशिष्ठ, गौरक्ष संहिता- ये सभी शास्त्र मैंने लगभग पूरे पढ़े।
ग्रंथों में सेहत का पूर्ण विज्ञान
भक्तचरण दास ने भक्तिसागर में अष्टांग योग का विशद वर्णन किया है। योग का पहला पाठ भगवान शिव ने दिया। शिव संहिता सांसों का विज्ञान बताता है। ये जो हमारे स्वर हैं, इनका पूरा विज्ञान है। शिव स्वरोदय में सांसों के बारे में गजब की जानकारी है। यदि दायीं सांस चल रही है तो लड़ाई में जीत चाहिए। यदि आपको निद्रा चाहिए तो बायें स्वर को चलाओ। यहां तक कह दिया गया कि यदि सांस ऐसी है तो जीवन कितना रहेगा। सांसों पर गहराई से विवेचना की है शिवजी ने। लेकिन कोई उसको गहराई से पढ़ता नहीं है। ये ज्ञान संस्कृत में है लेकिन भाषा टीका भी है। अष्टांग योग का महर्षि पतंजलि ने विस्तृत वर्णन किया है। गीता में तो योग ही योग है। स्वामी स्वात्माराम जी की हठयोग प्रदीपिका बेहद उपयोगी है। घेरंड संहिता महर्षि घेरंड जी ने लिखी। गौरक्ष संहिता गोरखनाथ जी ने लिखी। जिसमें ज्यादातर हठयोग के बारे में है। आसन हैं, बंध हैं, प्राणायाम है।

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मेरी योग की यात्रा

दरअसल, योग तो हमारे घर में ही था। षट्कर्म का अध्ययन किया तो नौलि क्रिया आदि सीखीं। दूरदर्शन पर सबसे पहले मैंने ही यह दिखाया। एक समय मेरा दूरदर्शन पर पूरा वर्चस्व था। साल 1975 में योग मेरे नाम से होता था दूरदर्शन पर- स्वामी लालजी महाराज का योग। उन दिनों ब्लैक एंड व्हाइट टीवी था। एक चित्रहार आता था, एक फिल्म आती थी, कृषि दर्शन और योग का मेरा कार्यक्रम आता था। बाद में रामायण व महाभारत ने धूम मचा दी, लेकिन मेरा कार्यक्रम आता था। वर्ष 1985 में रंगीन टीवी आया तो नेशनल टीवी पर मेरा कार्यक्रम पाकिस्तान तक जाता था।

विदेशों में योग के लिये यात्राएं

दरअसल, साठ के दशक में महान योगी स्वामी देवमूर्ति जी महाराज जर्मनी में रहते थे। मैं वर्ष 1968 में जर्मनी की यात्रा पर गया। पहले दिल्ली से मुंबई ट्रेन से। वहां से बसरा समुद्री जहाज से और फिर यूरोप गया। वहां रहते हुए मुझे स्वामी देवमूर्ति जैसे बड़े योगी का सान्निध्य, आशीर्वाद और मार्गदर्शन मिला। उनके साथ जर्मनी में दो साल रहने का मौका मिला। मुझे लगा कि योग ही मेरे जीवन का लक्ष्य है। पहले सोचा था कोई काम-धंधा करेंगे यूरोप में। वहां बहुत पैसा होता है, वहीं कहीं सेटल हो जाएंगे। मैंने देखा कि वहां महाराज से मिलने वालों का मेला लगा है। वे योग सिखाते थे। मेरे पिताजी भी योग सिखाते थे।

नहीं किया विरासत का कारोबार

मेरे पिताजी त्यागमूर्ति थे। उनके पिता भी त्यागमूर्ति थे। उन्होंने लिखा हुआ था कि कोई पैसा नहीं लेना किसी से योग सिखाने के लिये। योग एक पवित्र धर्म है इसके लिये कोई पैसा चार्ज नहीं करना है। तो पिताजी ने उसी टाइम से आयुर्वेदिक उपचार के लिये जड़ी-बूटी देना शुरू किया। इससे उनका खर्चा निकल जाता था। मैंने भी वो बाद में शुरू किया । अकसर मुझसे ये प्रश्न पूछा जाता है कि हमारे बाद आने वाले कैसे करोड़पति हो गये, फेमस हो गये, ताकतवर हो गये। हम वहीं के वहीं योग में लगे रहे। व्यक्ति को मां के गर्भ से बहुत सारे संस्कार मिल जाते हैं। हमें ऐसे संस्कार नहीं मिले।

प्रभु की पूरी कृपा रही

मैंने दिल्ली पुलिस में योग की शुरुआत की। दिल्ली सरकार में एडवाइजरी बोर्ड का मेंबर रहा हूं। आयुष मंत्रालय में योग का भी और प्राकृतिक चिकित्सा का एडवाइजर रहा हूं। मुझे मंत्रालय ने नियुक्त किया था। मैं कभी राजनीतिक मदद लेने नहीं गया। लेकिन मैं गर्व से कह सकता हूं कि प्रभु ने कभी भूखा नहीं सुलाया। बाईस देशों में गया हूं। जेब में एक पैसा नहीं होता था। ये भी तो प्रभु की कृपा है। जो हमा रे परमार्थ का नतीजा है। इतने देशों में जाने का सौभाग्य मिला है। यूरोप के पंद्रह देशों में जाने का अवसर मिला। मिडिल ईस्ट, सिंगापुर, जॉर्डन, कनाडा व अमेरिका तक गया। दुबारा अमेरिका गया था। वहां पर लोग बुलाते हैं, रुचि रखते हैं।

योग के नाम पर जिम्नास्टिक!

विदेशों में आमतौर योग के नाम पर जिम्नास्टिक सिखाया जाता है। कठिन-कठिन आसन सिखाए जाते हैं। जिन्हें आम आदमी कर ही नहीं सकता है। हमारा जो योग है सरल योग है। महाप्रभु रामलाल जी ने प्रतिपादित किया। पिताजी व गुरुओं ने योग को आगे बढ़ाया कि योग घर-घर तक पहुंचाना है। वाकई लोगों को लाभ भी हुआ।

स्वास्थ्य का मंत्र

लोगों को अंधाधुंध दवाई लेना बंद करना चाहिए। यदि आपका पेट खराब है तो पानी पीकर निकाल दो। दस मिनट में ठीक हो जाओगे। डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं है। ऐसा ही आपको गैस बन रही है, कब्ज है तो शंख प्रक्षालन करो। पेट साफ हो जायेगा। आप रोगमुक्त हो जायेंगे। चाहे कितनी पुरानी कब्ज हो, ठीक हो जायेगी। एसिडिटी हो, वमनधोती से ठीक कर लें। इसे कुंजल भी कहते हैं। हमारे महाप्रभु कहते थे ये ब्रह्मदातुन है। पानी पीकर निकाल दें। इसको गजकर्म कहते हैं। पानी पेटभर लीजिए और युक्ति से निकाल दीजिए। सभी टॉक्सिन, दूषित हवा व गैस निकल जाती है। विष बाहर निकल जाता है। सिरदर्द ठीक हो जाता है, दमा ठीक हो जाता है। पाचनक्रिया बढ़ जाती है और भूख लगने लगती है। पेट साफ हो जाता है। मोटापा रुक जाता है। मधुमेह नियंत्रित होता है। बीपी नहीं बढ़ता। कोलेस्ट्रोल नहीं बढ़ता। जरा-जरा सी बात पर हम हॉस्पिटल भागते हैं। आपातकाल में जाना तो ठीक है जब कोई गंभीर रोग हो जाये। अस्पताल आखिर में जाओ। पहले ये काम करो। इसमें भगवान का आशीष भी है। ये ऋषियों की देन है।

पशु-पक्षी प्रेरणा के स्रोत

योग में तमाम आसन बेहद उपयोगी हैं। जितने जीव-जन्तु हैं, उतने आसन हैं। उन्हें देखिए बिना दवाई के भी ठीक रहते हैं। प्राकृतिक तरीके से अपना उपचार करते हैं। सही मायनों में ये शुद्धि क्रियाएं हैं। इन्हें षट्कर्म भी कहते हैं। योग में बंध भी हैं। बेहद उपयोगी मुद्राएं हैं। ध्यान की साधना है। इसका अंग धारणा है। समाधि है। शुरुआत यम-निमय से है। कहते हैं मन-वचन-कर्म से किसी को दुख दे दिया तो आप योगी नहीं हो सकते। यदि योग करोगे भी तो लाभ नहीं होगा। अस्तेय, शौच, अपरिग्रह, संतोष, तप स्वाध्याय व ईश्वर प्रणिधान। ये जब पूरे होंगे तब योग होगा। लोग ध्यान नहीं देते। कई विश्व योग दिवस हो चुके हैं। कभी इसके बारे में चर्चा नहीं होती। मसलन अपरिग्रह, जितना जरूरत है उतना ही रखो। स्वाध्याय, रोज एक पन्ना पढ़ लो तो जीवन बदल जायेगा। स्वाध्याय का मतलब आत्मचिंतन भी है। प्रत्याहार- विषय वासनाओं की तरफ वृत्तियों को जाने से रोकने का प्रयास है। बाह्य तृष्णाओं से हटकर अंतर्मुखी होने का प्रयास प्रत्याहार है।

प्राणायाम से प्राणों का नियमन

प्राणायाम गजब है। जब तक प्राण है तो हम हैं। जब नहीं तो हम नहीं हैं। हमने कभी ध्यान नहीं दिया कि कब सांस ले रहे हैं, कब छोड़ रहे हैं, कितना सांस ले रहे हैं। इससे ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ नहीं- प्राण है तो जीवन है। जब तक शरीर में सांस हैं तब तक जीवन है। धारणा है कि ध्यान लगाने की कोशिश। समाधि है कि आत्मा के साथ एकरस हो गये।

गहरी सांसों में लंबा जीवन

प्रश्न महत्वपूर्ण है। करोड़ों लोग भ्रमित हो गये हैं। कपालभाति किसी भी दृष्टि से प्राणायाम नहीं है। कपाल का मतलब है माथे का इलाका। महर्षि पतंजलि ने कहा- श्वास-प्रश्वास के बीच में गतिरोध प्राणायाम है। सांसों को रोकना है। बीस सालों से सांस लो व छोड़ो की बात सुनी नहीं। हर शास्त्र में इसे कुंभक कहा गया। कुंभक यानी मटकी, पेट को मटकी बनाओ। सांस को रोको। बच्चे सांस लेते हैं और पेट फूलता है। ज्यादा सांस लेता है। एक व्यक्ति एक मिनट में पंद्रह सांस लेता है। लेकिन इसकी गति आप की मानसिक-शारीरिक स्थिति पर निर्भर है। दौड़ लगा रहे , जंप कर रहे हो या आराम से बैठे हो, प्राणों की गति अलग-अलग हो जायेगी। उसकी दशा पर निर्भर है। सांसों पर जीवन निर्भर है। जल्दी सांस लेना जीवन को कम करना। मोटा आदमी जल्दी सांस लेता है। कई तरह से बीमारियों से ग्रस्त रहता है। ज्यादा खाना खाने वाला जल्दी सांस लेता है। कुत्ते की सांस लेने की गति अधिक होती है उसका जीवन कम होता है। ऋषियों ने जीवन के बारे में महत्वपूर्ण निष्कर्ष दिये हैं। गहरे सांस लेने से ऋषि सैकड़ों साल जीते थे। ऋषि समाधि में सांस रोककर सैकड़ों साल जीते रहे हैं। धारणा है कि जो लोग कम भोजन करते हैं, प्राणायाम करते हैं, सात्विक व कम आहार लेते हैं, वे आमतौर पर ज्यादा जीवन जीते हैं।

वैराग्य का मतलब है अंतर्मुखी होना

दरअसल, योग का मूल स्वरूप नहीं अपनाया। योग का व्यवसायीकरण हो गया। योग के नाम पर क्या-क्या बिक रहा है। आसन का मतलब है कि शरीर को कष्ट नहीं देना। योग समतल स्थिति में करें। आज का समय इंटरनेट, टीवी व मोबाइल का है, आम आदमी भ्रमित है। कैसे योगमय जीवन जी सकता है। भगवान कृष्ण से यही प्रश्न अर्जुन ने किया था। भगवान ने कहा कि अभ्यास व वैराग्य से ये चंचल मन काबू में आता है। अभ्यास मतलब साधना, घंटा-डेढ़ घंटा लगाओ। प्राणायाम व आसन करें। उम्र के हिसाब से वैराग्य का मतलब ये है कि कोशिश करो कि संसार से थोड़ा निर्लिप्त रहो। जब विपश्ना करने जाते हो तो वे फोन आदि सब कुछ ले लेते हैं। बाहर के संसार से काट देते हैं। किसी को अखबार नहीं देते, टीवी नहीं देते। बात नहीं करने देते। दस दिन में आदमी को आंतरिक ज्ञान होने लगता है। लोगों का जीवन बदल जाता है। साधना में शक्ति होती है। वैराग्य का मतलब है अंतर्मुखी होना। साइंस भी कहती है कि दिमाग व मन जुड़े हैं।

नई पीढ़ी का गुस्सा कैसे थमे

दरअसल, गुस्सा उसे आता है जो करना तो बहुत कुछ चाहता है, लेकिन कुछ कर नहीं पाता। सक्षम नहीं हो पाता। लेकिन कोई सुनता नहीं है। नियंत्रण के लिये साधना करो। स्वाध्याय करो। ध्यान लगाओ। आसन-प्राणायाम करना चाहिए। क्षमता व आयु के हिसाब से आसन करें। क्रम सही होना चाहिए। जैसा खाओगे अन्न, वैसा होगा मन। मेरा कहना है कि वैसा होगा तन।

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