बच्चों की लंबी उम्र और सुख हेतु व्रत
आर.सी.शर्मा
बच्चों की लंबी आयु, तरक्की, सफलता और उनकी खुशहाली के लिए मांएं दीपावली से ठीक एक सप्ताह पहले, कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई माता का व्रत रखती हैं। इसे अहोई अष्टमी या अहोई आठें का व्रत भी कहा जाता है। इस साल वैदिक पंचांग के मुताबिक, कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी का आरंभ 24 अक्तूबर को प्रातः 1 बजकर 08 मिनट से होगा और इसका समापन अगले दिन 25 अक्तूबर को सुबह 1 बजकर 58 मिनट पर होगा। इस तरह, उदयातिथि के आधार पर अहोई अष्टमी का व्रत गुरुवार, 24 अक्तूबर को रखा जाएगा।
व्रत की तैयारी
जो मांएं व्रत रखें, उन्हें इस दिन सूर्योदय से पहले उठना चाहिए। स्नान आदि करने के बाद उन्हें अहोई माता की पूजा के लिए थाली सजानी चाहिए। इस पूजा की थाली में धूप, दीप, फल, फूल, अक्षत, दूध, मिठाई और दूर्वा होना चाहिए, क्योंकि ये सब चीजें अहोई माता को अर्पित की जाती हैं। यह निर्जला व्रत होता है, इसलिए इस व्रत की शुरुआत के बाद से पानी पीना वर्जित होता है।
अहोई अष्टमी के व्रत में शाम के समय तारों को देखने के बाद अहोई माता की पूजा की जाती है और फिर चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही पानी पीया जाता है।
माता का आशीर्वाद
अहोई अष्टमी का व्रत माताओं के अपने संतानों के साथ प्रेम और भावनात्मक रिश्ते का द्योतक है। माना जाता है कि जो मांएं अपने बच्चों के लिए अहोई माता का व्रत रखती हैं, उनके बच्चों को पूरी जि़ंदगी किसी तरह का कष्ट और दुख नहीं होता। उनकी जि़ंदगी में आने वाले सभी तरह के कष्टों को अहोई माता दूर कर देती हैं।
इस व्रत में शाम को तारे देखने के बाद अहोई माता की पूजा शुरू की जाती है और पूजा के बाद उन्हें करवा से अर्घ्य दिया जाता है। अहोई माता की पूजा करने के लिए उनकी मिट्टी से एक मूर्ति उकेरी जाती है या फिर तुलसी के चबूतरे अथवा दीवार में उनकी मिट्टी से मूर्ति बनाई जाती है और इसे गेरुए रंग से रंगा जाता है। अगर मिट्टी की मूर्ति बनाना संभव न हो, तो एक मोटे कपड़े पर अहोई माता का चित्र उकेरकर उसे एक दीवार पर टांग दिया जाता है और उसकी पूजा की जाती है।
भोग
अहोई माता को अर्घ्य देने के बाद उन्हें जिन चीज़ों से भोग लगाया जाता है, उनमें हलवा, चना, सिंघाड़ा और साबूदाने की खीर भी हो सकती है। व्रत खोलने के बाद पनीर की सब्जी भी खाई जा सकती है।
कथा महत्व
अहोई माता का व्रत रखने वाली मांओं को दोपहर के समय अपने हाथ में गेहूं के सात दाने लेकर अकेले या अन्य माताओं के साथ अहोई माता की कथा सुननी चाहिए। अहोई माता के व्रत की कथा कुछ इस तरह है : एक बार एक साहूकार की बेटी घर की पुताई के लिए चिकनी मिट्टी लेने के लिए जंगल गई। वह खुरपी से मिट्टी खोद रही थी कि उस मिट्टी में साही की मांद थी, जहां उसके छोटे-छोटे बच्चे मौजूद थे।
उस लड़की की खुरपी से साही के एक बच्चे की मौत हो जाती है। बच्चे की मौत देखकर साही को बहुत गुस्सा आता है और वह साहूकार की बेटी से कहती है कि वह उसकी कोख बांध देगी। इससे साहूकार की बेटी बहुत डर जाती है। उसके सात भाभियां होती हैं। वह सभी से बारी-बारी कहती है कि उसकी जगह वे अपनी कोख बंधा लें। छह भाभियां मना कर देती हैं, लेकिन सबसे छोटी भाभी अपनी ननद के बदले अपनी कोख बंधा लेती है। फलत: संतान क्षति हाेती है।
मार्गदर्शन
इस पर दुखी छोटी भाभी एक महात्मा से मिलती है और उससे अपनी इस परेशानी का हल पूछती है। महात्मा कहते हैं, ‘अगर तुम सुरही गाय की सेवा करो, तो वह प्रसन्न होकर तुम्हें साही माता के पास ले जाएगी और तब साही माता तुम्हारी कोख खोल देंगी।’ छोटी भाभी ऐसा ही करती है, जिससे साही माता खुश होकर उसकी कोख खोल देती हैं। इससे उसके मरे हुए सातों बच्चे फिर से जीवित हो जाते हैं। कथा को सुनने के बाद अहोई माता को अर्घ्य देना चाहिए, जिससे अहोई माता खुश होकर मांओं के बच्चों को दीर्घायु, सुख और समृद्धि का वरदान देती हैं। इ. रि.सें.
व्रत-पर्व
22 अक्तूबर : स्कन्द षष्ठी व्रत, हेमंत ऋतु प्रारंभ।
23 अक्तूबर : शक कार्तिक प्रारंभ।
24 अक्तूबर : अहोई अष्टमी व्रत, गुरु पुष्य योग, कालाष्टमी राधाष्टमी व्रत, राधा कुण्ड स्नान पर्व, कराष्टमी (महाराष्ट्र), श्रीराधा प्राकट्योत्सव।
27 अक्तूबर : कौमुदि महोत्सव प्रारंभ।
- सत्यव्रत बेंजवाल