आध्यात्मिक-भौतिक सुखों में वृद्धि करता है यज्ञा
आचार्य दीप चंद भारद्वाज
यज्ञ वैदिक संस्कृति का प्राण तत्व है इसे अग्निहोत्र, हवन, देव यज्ञ इन नामों से भी जाना जाता है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में जो सोलह संस्कार वर्णित किए गए हैं यह यज्ञ हर संस्कार की आत्मा है। बिना यज्ञ (अग्निहोत्र) के कोई भी संस्कार संपन्न नहीं होता। मनुस्मृति, गीता एवं पुराणों में भी इस यज्ञ की महिमा का पग पग पर व्याख्यान किया गया है। यज्ञ शब्द यज धातु से बना है, जिसके अर्थ है देवपूजा, संगतीकरण और दान। देव पूजा से अभिप्राय है विद्वानों एवं साधकों की पूजा का सम्मान करना, संगतिकरण का अर्थ है संगठन, दान का अर्थ है त्याग की भावना। आध्यात्मिक ग्रंथों के ज्ञाता एवं उच्च कोटि के विद्वानों का जिस राष्ट्र में मान-सम्मान होता है तथा जहां आपस में दृढ़ संगठन का समावेश होता है और त्याग एवं दान की भावना जिस राष्ट्र में होती है, वही राष्ट्र उन्नति की ओर अग्रसर होता है। उपनिषदों एवं दार्शनिक ग्रंथों में नि:स्वार्थ भावना और परोपकार की दृष्टि से किए जाने वाले कर्मों को भी यज्ञ कहा गया है।
वैदिक चिंतन परंपरा में यज्ञ का आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक दोनों प्रकार से महत्व वर्णित है। यज्ञ में उच्चारित वेद मंत्रों की ध्वनियों से मनुष्य के मानस पटल पर श्रेष्ठ प्रवृत्तियों का समावेश होता है। यज्ञ की प्रत्येक आहुति के अंत में स्वाहा एवं ‘इदं न मम’ का उच्चारण मनुष्य के मानस पटल पर व्याप्त स्वार्थ की तामसिक परत को भी क्षीण करता है। यज्ञ मनुष्य में परोपकार एवं कल्याण की भावना को जागृत करता है। यज्ञ ही प्रकृति के सभी स्थूल तत्वों में शक्ति एवं सुगंध भरता है। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश इन पांच महाभूतों के सूक्ष्म अंशों से मनुष्य का शरीर बनता है। अग्निहोत्र जीवन के आधार इन पांचों तत्वों को शुद्धि एवं पुष्टि प्रदान करता है। यज्ञ की सुगंधित अग्नि हमारी प्राणशक्ति को सशक्त बनाती है।
स्थूल पदार्थ जब अग्नि में पड़कर सूक्ष्म हो जाते हैं तब उनका प्रभाव का क्षेत्र विस्तृत और उनकी शक्ति बढ़ जाती है। अग्निहोत्र समस्त पदार्थों की सुगंधी को संपूर्ण वातावरण में फैला देता है जिससे वायुमंडल में व्याप्त विषैले कीटाणु भी नष्ट हो जाते हैं। यज्ञ संपूर्ण ब्रह्मांड को शुद्ध करने की हमारे ऋषियों द्वारा अनुसंधान की गई पूर्णरूपेण वैज्ञानिक विधि है। हमारे शास्त्रों में अग्नि को सभी देवताओं का मुख कहा गया है अर्थात्ा् इसी अग्निहोत्र के माध्यम से समर्पित की गई आहुति समस्त देवताओं को प्राप्त होती है। मनुस्मृति में इस यज्ञ को संपूर्ण प्रजा का आधार माना गया है। अग्निहोत्र में डाली गई आहुतियां पवन के घोड़ों पर सवार होकर सूर्यमंडल में पहुंचती हैं, सूर्य की किरणों से खींची गई समुद्र की जल राशि पृथ्वी पर वर्षा बनकर बरसती है और उससे समस्त प्रजा का पोषण होता है। वेद में इस यज्ञ को स्वर्ग की नौका कहा गया है। पवित्र भावना से किया गया यज्ञ मनुष्य को आध्यात्मिक एवं भौतिक सुखों की प्राप्ति करवाता है। यज्ञ की सुगंधी से हमारे आंतरिक एवं बाहरी वातावरण में पवित्रता का संचार होता है।