For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

बिल्व वृक्ष की पूजा से तीर्थों का पुण्य

06:40 AM Aug 19, 2024 IST
बिल्व वृक्ष की पूजा से तीर्थों का पुण्य

सुरेंद्र मेहता
स्कंद पुराण के अनुसार, एक बार माता पार्वती के पसीने की बूंद मंदराचल पर्वत पर गिर गई और उससे बेल का पेड़ उग आया। चूंकि माता पार्वती के पसीने से बेल के पेड़ का उद्भव हुआ, अत: इसमें माता पार्वती के सभी रूप बसते हैं। पेड़ की जड़ में गिरिजा स्वरूप, तनों में माहेश्वरी और शाखाओं में दक्षिणायनी, तथा पत्तियों में पार्वती का रूप निवास करता है। फलों में कात्यायनी स्वरूप और फूलों में गौरी स्वरूप निवास करता है। इन सभी रूपों के अलावा, मां लक्ष्मी का रूप समस्त वृक्ष में निवास करता है। बेलपत्र में माता पार्वती का प्रतिबिंब होने के कारण इसे भगवान शिव पर चढ़ाया जाता है। भगवान शिव पर बेल पत्र चढ़ाने से वे प्रसन्न होते हैं। जो व्यक्ति श्रावण मास में बिल्व के पेड़ के मूल भाग की पूजा करके उसमें जल अर्पित करता है, उसे सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य मिलता है।
माना जाता है कि बिल्व वृक्ष के आसपास सांप नहीं आते। अगर किसी की शवयात्रा बिल्व वृक्ष की छाया से होकर गुजरे, तो उसका मोक्ष हो जाता है। वायुमंडल में व्याप्त अशुद्धियों को सोखने की क्षमता सबसे ज्यादा बिल्व वृक्ष में होती है। चार, पांच, छह या सात पत्तों वाले बिल्व पत्रक पाने वाला परम भाग्यशाली होता है और शिव को अर्पण करने से अनंत गुना फल मिलता है। इसके संरक्षण को लेकर मान्यता रही है कि बेल वृक्ष को काटने से वंश का नाश होता है और बेल वृक्ष लगाने से वंश की वृद्धि होती है।
मान्यता है कि बेल वृक्ष को सींचने से पितर तृप्त होते हैं। बेल वृक्ष और सफेद आक को जोड़ने पर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
कहा जाता है कि जीवन में सिर्फ एक बार शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ा दिया हो, तो भी उसके सारे पाप मुक्त हो जाते हैं। बेल वृक्ष का रोपण, पोषण और संवर्द्धन करने से महादेव से साक्षात्कार करने का अवश्य लाभ मिलता है।

Advertisement

Advertisement
Advertisement
×