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सुंदरता-कुरूपता के शब्द चित्र

10:37 AM May 26, 2024 IST

कृष्णलता यादव
अनेक विधाओं में आवाजाही करने वाले, साहित्यकार प्रबोध कुमार गोविल का सद्य: प्रकाशित उपन्यास है ‘बसंती की बसंत पंचमी’। वस्तुत: यह तीन लघु आकारीय उपन्यासों– ख़ामरात, बसंती की बसंत पंचमी तथा सहरा में मैं और तू, का समुच्चय है। कोई भी उपन्यासकार घटनाओं, चरित्रों, परिस्थितियों, संवाद आदि द्वारा एक दुनिया बसाता है। ये चरित्र वास्तविक न होते हुए भी वास्तविकता का अहसास गढ़ते हैं। इस कृति के लेखकानुसार– शरीर और मन की साझेदारी से कई किस्म के जुनून जन्म लेते हैं। इन्हीं जुनूनों की उत्पत्ति है– ये तीन उपन्यास।
मानव नकारात्मक-सकारात्मक कुछ भी सोच सकता है। मजे की बात यह कि सोच के आधार पर, उस पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। यही है ख़ामरात के कथानक का केन्द्र बिन्दु। आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया है यह उपन्यास।
कोरोना महामारी के त्रासद काल के इर्द-गिर्द बुना गया है ‘बसंती की बसंत पंचमी’ का ताना-बाना। बाइयों द्वारा मन लगाकर की गई मेहनत के बावजूद भुगतान के समय गृहिणियों द्वारा की जाने वाली किच-किच और बाइयों के जीवन-संघर्ष का मुंहबोलता चित्रण है। यहां भी नाटकीय मोड़ आता है और गृहिणियों को बाइयों की अनुपस्थिति वाले दिनों का भुगतान भी करना पड़ता है।
‘सहरा में मैं और तू’ का कथ्य एक खेल अकादमी की परिक्रमा करता है। एक राजसी परिवार द्वारा नि:शुल्क चलाई जा रही खेल अकादमी में, विभिन्न आयु वर्ग के बीस वनवासी प्रशिक्षुओं के संघर्ष व विसंगतियों की दास्तां है।
सामयिक विषय-वस्तु, सुगठित संवाद, समुचित पात्र योजना, स्पष्ट उद्देश्य द्वारा मानव के तन-मन की सुंदरता-कुरूपता को शब्दों में बांधने की सफल कोशिश की गई है।

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पुस्तक : बसंती की बसंत पंचमी लेखक : प्रबोध कुमार गोविल प्रकाशक : दीपक प्रकाशन, जयपुर पृष्ठ : 120 मूल्य : रु. 395.

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