सर्दियों का सफर और पहाड़ों की खुशबू
अलका ‘सोनी’
सर्दियों की शुरुआत हो चुकी है। ऐसे में धूप की तपिश बदलकर गुलाबी हो चली है। गुनगुनी धूप में रहना मन को भाने लगा है। इस खूबसूरत मौसम में मन करता है कहीं घूमकर आया जाए। जहां पहाड़ों और हरियाली के बीच इस मौसम का आनंद दोगुना हो जाये। फिर भारत में तो पहाड़ियों की लंबी, सुंदर और अद्भुत शृंखलाएं हैं। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत में एक से एक शानदार पहाड़ और हिल स्टेशन हैं।
देश की इन्हीं खूबसूरत हिल स्टेशनों में से एक है ‘डलहौज़ी’, जो कि हिमाचल प्रदेश में है। कहते हैं कि इस जगह की खूबसूरती से प्रभावित होकर तत्कालीन अंग्रेज अफसर लॉर्ड डलहौजी ने इसे 18वीं सदी में वहां के राजा से खरीद लिया था और उसका नाम, अपने नाम पर ही ‘डलहौजी’ रख दिया था। हालांकि, यह भी एक मजेदार किस्सा है कि स्वयं लार्ड डलहौजी यहां रहने कभी नहीं आए थे।
डलहौजी चंबा घाटी का हिस्सा है। सर्दी के मौसम में यहां बर्फ का आनंद उठाया जा सकता है। यहां दर्जनों ऐसे स्थल हैं जो मन को सुकून देते हैं। यहां आने का सबसे अच्छा समय अप्रैल से जून और अक्तूबर से दिसंबर का होता है। डलहौजी हिमाचल प्रदेश का एक छोटा-सा शहर है, जो यहां आने वाले पर्यटकों के लिए स्वर्ग के समान माना जाता है। यह अपनी प्राकृतिक सुषमा, फूलों, घास के मैदानों, तेज बहाव वाली नदियों, धुंध से घिरे पहाड़ों के लिए जाना जाता है। अगर आप भी इन सर्दियों में यहां घूमने जाना चाहते हैं तो यहां की कुछ खूबसूरत जगहों के बारे में जान लेना सही होगा…।
खज्जियार की बयार
हिमाचल प्रदेश के डलहौजी के पास हरे-भरे देवदार के पेड़ों से घिरा खज्जियार गांव है, जो इसे अद्भुत सुंदरता प्रदान करता है। यहां स्थित प्राचीन खज्जी नाग मंदिर में शीश नवाने पर हर मन्नत पूरी होती है। यहां पर प्रसिद्ध खज्जियार झील, समुद्र तल से लगभग 1920 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और इसकी मुख्य विशेषता इसके आसपास का खुला घास का मैदान है। इसे स्विट्ज़रलैंड की घाटियों की हूबहू नकल माना जाता है। भारत के स्विट्ज़रलैंड के नाम से मशहूर यह खूबसूरत गांव आपकी छुट्टियां बिताने के लिए एक बेहतरीन जगह हो सकती है।
खज्जियार डलहौजी का एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जहां लोग पिकनिक मनाने, घुड़सवारी, ट्रैकिंग और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने आते हैं। साथ ही, यहां का मौसम सालभर सुखद रहता है।
माल रोड की महिमा
मॉल रोड डलहौजी का एक प्रमुख स्थान है, जो शहर के केंद्र में स्थित है। जो शॉपिंग और मनोरंजन के लिए प्रसिद्ध है, जहां आप विभिन्न प्रकार की दुकानें, रेस्तरां और कैफे पा सकते हैं। आप इस जगह से स्थानीय हस्तशिल्प की चीजें और स्मृति चिन्ह खरीद सकते हैं। ठंडी हवाओं और शांत वातावरण के बीच मॉल रोड शाम की सैर के लिए उपयुक्त है। यहां पर आपको स्थानीय हिमाचली व्यंजनों का स्वाद लेने का मौका मिलेगा। यह स्थान डलहौजी के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का केंद्र भी है।
डैनकुंड चोटी
2,700 मीटर से अधिक की ऊंचाई वाली डैनकुंड चोटी डलहौजी की सबसे ऊंची चोटियों में से एक है। आप इस चोटी पर ट्रैकिंग कर सकते हैं और अपने आस-पास की पूरी घाटी और पीर पंजाल पर्वत शृंखला का पूरा दृश्य देख सकते हैं। अगर आपको प्रकृति से प्यार है और डलहौजी में ऐसी जगह ढूंढ़ रहे हैं जहां आप प्रकृति के करीब रह सकें, तो यह आपके लिए बेहतरीन विकल्प हो सकता है। डैनकुंड चोटी एक अच्छा ट्रैकिंग एडवेंचर है जिसे आप डलहौजी में शुरू कर सकते हैं। यह चोटी डलहौजी के शहर के केंद्र से केवल 5 किमी दूर है, इसलिए आप उपलब्ध परिवहन का उपयोग करके आसानी से चोटी तक की यात्रा कर सकते हैं।
पांच धाराओं का पंचपुला झरना
हरे देवदार पेड़ों के आवरण से घिरा एक खूबसूरत झरना है ‘पंचपुला’। जो डलहौजी के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है और इससे दो किलोमीटर दूरी पर ही स्थित है। पंचपुला, यानी ऐसी जगह जहां आप पांच धाराओं को एक साथ देख सकते हैं। यह अपना एक ऐतिहासिक महत्व भी रखता है। पंचपुला के पास ही महान क्रांतिकारी सरदार अजीत सिंह की याद में एक समाधि बनाई गई है, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली थी। मानसून के मौसम में ये जगह और भी खूबसूरत लगने लगता है।
कालाटोप वन्यजीव अभयारण्य
डलहौजी में घूमने लायक कई रमणीय स्थल हैं जहां के नैसर्गिक सौंदर्य का हर कोई मुरीद हो जाता है। डलहौजी के लक्कड़मंडी के समीप स्थित कालाटाप वन्य प्राणी अभयारण्य में पर्यटकों को वन्य प्राणी जीवन को करीब से निहारने के लिए जाना जाता है। यह मानवीय गतिविधियों से लगभग अछूता है। इसलिए आप इस वन्यजीव अभयारण्य में प्रकृति का बहुत करीब से अनुभव कर सकते हैं, जहां जानवर अपने प्राकृतिक आवास में निडर होकर रहते हैं। आपको यहां हरियाली और बर्फ से ढके पहाड़ों का भी आनंद मिलेगा।
खूबसूरत पहाड़ियों और उनसे नीचे गिरती सुंदर जल धाराओं के साथ, यह बहुत मनोरम लगता है। इसलिए, यदि आप डलहौजी घूमने जा रहे हैं, तो कालाटोप वन्यजीव अभयारण्य की यात्रा अवश्य करें। यह आकर्षक वन्यजीव अभयारण्य डलहौजी के शहर के केंद्र से 4 किमी दूर स्थित है।
सुभाष चंद्र बोस के नाम पर बावड़ी
डलहौजी के गांधी चौक से करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर करेलनू मार्ग पर ऐतिहासिक सुभाष बावड़ी स्थित है। स्वतंत्रता सेनानी नेता जी सुभाष चंद्र बोस के नाम पर इसका नाम पड़ा। यहां के पानी को औषधीय गुणों वाला माना जाता है। इस बावड़ी के स्वास्थ्यवर्धक जल का सेवन करने से आजाद हिंद फौज के गठनकर्ता नेताजी सुभाष चंद्र बोस को क्षय रोग (टीबी) से निजात मिली थी।
कैसे पहुंचें डलहौजी
डलहौजी, दिल्ली से 485 किमी दूर है और यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन पंजाब का पठानकोट है। पठानकोट से उतरकर बस या टैक्सी से आप यहां जा सकते हैं। कांगड़ा रेलवे स्टेशन से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है डलहौजी। चंडीगढ़ होते हुए कांगड़ा पहुंच सकते हैं। यहां की दूरी चंडीगढ़ से 239 किमी, कुल्लू से 214 किमी और शिमला से 332 किमी है। चंबा यहां से 192 किलोमीटर दूर है।
ट्रेन द्वारा यात्रा
डलहौजी का अपना कोई रेलवे स्टेशन नहीं है। डलहौजी का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन पठानकोट रेलवे स्टेशन है जो डलहौजी से लगभग 80 किमी दूर है। डलहौजी जाने के लिए आप रेलवे स्टेशन के बाहर से आसानी से कैब या बस ले सकते हैं। यात्रा में 3 घंटे से ज़्यादा समय नहीं लगना चाहिए। पठानकोट रेलवे स्टेशन भारत के महत्वपूर्ण शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है और आप देश के विभिन्न हिस्सों से पठानकोट के लिए सीधी एक्सप्रेस और मेल ट्रेनें प्राप्त कर सकते हैं।
हवाई मार्ग से सफर
डलहौजी का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा हिमाचल प्रदेश का गग्गल हवाई अड्डा है। यह डलहौजी से लगभग 130 किलोमीटर दूर स्थित है। डलहौजी पहुंचने के लिए आपको हवाई अड्डे के बाहर से टैक्सी या बस लेनी होगी। गग्गल हवाई अड्डा, अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा नहीं है, इसलिए वहां से सीधे अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें नहीं मिलती। हालांकि, आप गग्गल हवाई अड्डे से आने-जाने के लिए घरेलू उड़ानें आसानी से पा सकते हैं।
सड़क मार्ग
सड़क मार्ग से डलहौजी जाने के लिए आपके पास अपना वाहन होना चाहिए या फिर दिल्ली या हिमाचल प्रदेश के अन्य हिस्सों से सरकारी बस भी ली जा सकती है। हिमाचल प्रदेश सरकार और हरियाणा सरकार दोनों ही दिल्ली से डलहौजी के लिए बसें चलाती हैं। दिल्ली से डलहौजी पहुंचने में बसें 12 घंटे से भी कम समय लेती हैं और यह दूरी 550 किलोमीटर से ज़्यादा है।