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हर कदम पर संस्कृति, हर कदम में खुशी

06:40 AM Nov 22, 2024 IST
हर कदम पर संस्कृति  हर कदम में खुशी
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धीरज बसाक
उत्तर पूर्व बेहद मोहक और मायावी है। यहां एक से बढ़कर एक आनंद के खजाने मौजूद हैं। ऐसा ही आनंद का एक खजाना है अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी भाग में नोक्टे जनजाति द्वारा मनाया जाने वाला लोकु महोत्सव। ‘चलो लोकु’ के नाम से मशहूर यह पर्व अरुणाचल प्रदेश का सबसे रंगीन और मस्ती से भरपूर लोक पर्व है। चूंकि यह एक कृषि त्योहार है, तो इसमें सभी जाति, समुदाय के लोग एक साथ शामिल होते हैं।

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सांस्कृतिक महत्व

लोकु पर्व आदिवासियों के दूसरे सभी पर्वों की तरह प्रेम, एकता और भाईचारे को बढ़ावा देने वाला पर्व है। यह वास्तव में फसल कटाई के मौसम का उत्सव है। इस उत्सव में लोग अपनी अच्छी फसल के लिए ईश्वर का आभार व्यक्त करते हैं और आने वाले साल की समृद्धि की कामना करते हैं। दूसरे आदिवासी पर्वों की तरह इस पर्व में भी खूब नाच, गाना और मस्ती होती है। यह पर्व सामूहिक भोज, देवताओं के प्रति भक्ति दर्शाने और सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजने का एक भावुक तरीका है।

पर्यटकों के लिए आकर्षण

हाल के सालों में अरुणाचल प्रदेश का यह चलो लोकु उत्सव स्थानीय लोगों की तरह ही पर्यटकों को भी खूब भाने लगा है। यही वजह है कि अब लगातार लोकु महोत्सव के दौरान अरुणाचल में पर्यटकों की तादाद बाकी समय से कई गुना ज्यादा बढ़ जाती है। इस साल यह महोत्सव 21 से 25 नवंबर तक तिरप जिला मुख्यालय खोंसा के नेहरू स्टेडियम में बड़े पैमाने पर मनाया जा रहा है। तिरप का जिला मुख्यालय खोंसा चूंकि पर्यटकों के लिए बहुत अनुकूल नहीं है, इसलिए यहां जाने से पहले या तो टूर आपरेटरों से संपर्क करके चीजें व्यवस्थित कर ली जाएं या फिर आने वाले पर्यटक कुदरती आनंद के लिए थोड़ी परेशानी उठाने की भी हिम्मत रखें। खोंसा, डिबू्रगढ़ रेलवे स्टेशन और डिब्रूगढ़ हवाई अड्डे से सीधे कनुबारी लोंगडिंग रोड से जुड़ा हुआ है। यह असम के दुलियाजन और जयपुर मार्ग से भी डिगबोई और तिनसुकिया मार्ग से सीधे जुड़ा हुआ है, इसलिए यहां पहुंचना मुश्किल नहीं है।

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होम स्टे से स्थानीय अनुभव

खोंसा में दूसरे पर्यटन फ्रेंडली शहरों की तरह, पर्यटकों के लिए बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। यहां बहुत थोड़े से होटल और सरकारी सर्किट हाउस हैं। इसलिए यहां रुकने के लिए होम स्टे में मन बनाकर आना चाहिए। नोक्टे जनजाति के लोग खातिरदारी में बहुत उदार होते हैं। इसलिए अगर आपको स्थानीय व्यंजनों और विशुद्ध अरुणाचल की देसी शराब का आनंद लेना है, तो होम स्टे ही सबसे बेहतर व्यवस्था है। लेकिन हां, इस बात के लिए पहले से ही तैयार हो जाएं कि आदिवासी समाज के साथ कोई हरकत करने की कोशिश न करें। क्योंकि आदिवासी समाज आप पर जितनी जान छिड़कता है, अगर उसको गुस्सा आ जाए तो उतना ही ज्यादा वह खतरनाक हो जाता है। वैसे भी इज्जत पाने का आसान तरीका है कि आप खुद लोगों की इज्जत करें, तो वे भी आपकी उतनी ही इज्जत करेंगे।

नये साल का स्वागत

इस साल लोकु महोत्सव खोंसा स्थित नेहरू स्टेडियम में आयोजित हो रहा है। जहां कई तरह की लोकु प्रतियोगिताएं और दिल को झकझोर देने वाली संगीत की शामें आयोजित होंगी। 21 नवबंर से शुरू हुआ यह फेस्टिवल 25 नवंबर को यानी आखिरी दिन चरम पर पहुंचेगा। पर्व के पहले दिन यहां कई तरह की अनुष्ठान सम्पन्न होते हैं। दूसरे शब्दों में इस दिन से नये साल का स्वागत होता है। यहां उमंगों और मस्ती की गतिविधियां पहले से भी कहीं ज्यादा सरस हो गई हैं। अरुणाचल प्रदेश से बाहर के लोगों को नोक्टे जनजाति की उमंगों और खुशियों से सराबोर यह पर्व बेहद पसंद आता है। यही कारण है कि हर गुजरते साल के साथ यहां देश के दूसरे हिस्सों से आने वाले पर्यटकों की संख्या बढ़ती जा रही है।

यात्रा के पवित्र अनुभव

यह फेस्टिवल कई मायनों में बेजोड़ है। अगर समय हो और इस तरह के उत्सवों से आप खुशी महसूस करते हों तो एक बार जरूर आएं, क्योंकि आज भी यह इतना पवित्र और देशी पर्व है कि यहां बड़े पैमाने पर पर्यटकों के आने के बाद भी व्यावसायिक चालाकियां विकसित नहीं हुईं। लोकु महोत्सव के दौरान यहां आपको जो खाने-पीने को मिलेगा, वह बेहद उम्दा, शुद्ध और स्थानीय खुशबू से भरपूर होगा। देश के दूसरे हिस्सों खासकर महानगरीय पर्यटन स्थलों की तरह यहां पर्यटकों को धोखा देने का काम नहीं किया जाता। यहां तक कि जिस पर्यटक के पास यहां अपने इंज्वॉय का जो बजट होता है, उसी में उसे अधिकतम आनंद की अनुभूति की गारंटी मिलती है।

पांच दिनों की रंगत

पांच दिनों का लोकु महोत्सव मुख्यतः तीन दिनों तक चलता है। पहले दो दिन सिर्फ स्थानीय पूजाओं, परंपराओं और कर्मकांड के होते हैं। तीसरे दिन के बाद ये स्थानीय सीमाएं खत्म हो जाती हैं और नृत्य व संगीत की महफिल में मौजूद हर व्यक्ति आनंद का हिस्सेदार बन जाता है। यह वास्तव में भूमि की सामूहिकता या कृषकजनों की एकता का पर्व है, जिसका आनंद लेना अब देश के महानगरों के लोगों को भी खूब भाता है।

इ.रि.सें.

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