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जहां उमड़ता है  अटूट आस्था का सैलाब

09:08 AM Jul 01, 2024 IST
जहां उमड़ता है  अटूट आस्था का सैलाब
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रथयात्रा 7 जुलाई

अलका सोनी
यूं तो रथयात्रा मूलतः ओडिशा का त्योहार है। किंतु अब पूरे देश में श्रद्धालु प्रेमपूर्वक भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलराम जी की रथयात्रा निकाला करते हैं।
इस साल वैदिक पंचांग के अनुसार, जगन्नाथ रथयात्रा 7 जुलाई को सुबह 9 बजकर 27 मिनट पर निकाली जाएगी। इसके बाद यात्रा दोपहर 12 बजकर 15 मिनट से फिर से शुरू होगी। फिर यात्रा 1 बजकर 37 मिनट पर विश्राम लेगी। इसके बाद शाम 4 बजकर 39 मिनट से यात्रा शुरू होगी। अब यह यात्रा 6 बजकर 1 मिनट तक चलेगी।
इतिहासकारों की मानें तो उनका कहना है कि रथयात्रा 12वीं सदी में शुरू हुई थी। रथयात्रा से जुड़ी हैं कई कहानियां। पहली कथा के अनुसार जब राजा इंद्रद्युम ने जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां बनवाई तो रानी गुंडिचा ने मूर्तियां बनाते हुए मूर्तिकार विश्वकर्मा और मूर्तियों को देख लिया जिसके चलते मूर्तियां अधूरी ही रह गईं तब आकाशवाणी हुई कि भगवान इसी रूप में स्थापित होना चाहते हैं। इसके बाद राजा ने इन्हीं अधूरी मूर्तियों को मंदिर में स्थापित कर दिया। उस वक्त आकाशवाणी हुई कि भगवान जगन्नाथ साल में एक बार अपनी जन्मभूमि मथुरा जरूर आएंगे। स्कंदपुराण के उत्कल खंड के अनुसार राजा इंद्रद्युम ने आषाढ़ शुक्ल द्वितीया के दिन प्रभु के उनकी जन्मभूमि जाने की व्यवस्था की। तभी से यह परंपरा रथयात्रा के रूप में चली आ रही है।
इस यात्रा से संबंधित दूसरी कहानी देवी सुभद्रा से जुड़ी है, जो पौराणिक भी है। पद्म पुराण के अनुसार, एक बार भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने अपने प्रिय भाई से नगर देखने की इच्छा जताई। तब जगन्नाथ भगवान ने अपने बड़े भाई बलभद्र और लाड़ली छोटी बहन सुभद्रा को रथ पर बैठाया और नगर दिखाने के लिए निकल पड़े। यह घटना आषाढ़ के दिनों की है। इसी भ्रमण के दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र जी और सुभद्रा जी अपनी मौसी के घर गुंडिचा भी गए थे। अपनी मौसी के घर इन तीनों ने सात दिनों तक ठहरकर विश्राम किया था।

मुक्ति की राह

मान्यता है कि जो भी भक्त भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में शामिल होता है, उसके जीवन में सभी दुख-दर्द खत्म हो जाते हैं। साथ ही भूल से हुए अपराधों के लिए भक्त क्षमा मांगकर अपने जीवन का नया अध्याय भी शुरू करते हैं। भगवान जगन्नाथ के दर्शन के बाद भक्तों को सुख-शांति के साथ अपना जीवन जीने के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।

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यात्रा के विभिन्न चरण

यह यात्रा रथयात्रा, गुंडिया यात्रा और निलाद्री विजय यात्रा के तीन अवस्थाओं में विभाजित होती है।
हिंदू धर्म में भगवान जगन्नाथ, श्रीकृष्ण के एक रूप माने जाते हैं और भगवान विष्णु के अवतारों में श्रीकृष्ण का विशेष महत्व है, इसलिए उनकी यात्रा को भी श्रद्धालुओं द्वारा अत्यधिक आदर व भक्ति के साथ मनाया जाता है।

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