जब दुष्यंत ने पिता की हार का बदला लिया तो 8 कुलदीप थे मैदान में
08:09 AM Apr 23, 2024 IST
दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
हिसार, 22 अप्रैल
हिसार लोकसभा सीट पर इस बार रोचक चुनावी मुकाबला हो रहा है। सत्तारूढ़ भाजपा सहित तीन प्रमुख दलों के नेता चुनावी रण में आ चुके हैं। वहीं प्रमुख विपक्षी दल – कांग्रेस के उम्मीदवार को लेकर अभी सस्पेंस बना हुआ है। हिसार सीट पर अभी तक हुए चुनावों के कई ऐसे किस्से हैं, जो चर्चाओं में रहते हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों में जब इनेलो टिकट पर दुष्यंत चौटाला ने कुलदीप बिश्नोई से अपने पिता अजय सिंह चौटाला की हार का बदला लिया तो उस समय मैदान में कुलदीप नाम के 8 उम्मीदवार थे।
जी हां, यह अपनी तरह का पहला चुनाव था, जिसमें एक नाम के इतने सारे प्रत्याशी मैदान में उतारे गए। दुष्यंत चौटाला और कुलदीप बिश्नोई के बीच नजदीकी मुकाबला था। ऐसे में बाकी सात कुलदीप भी बिश्नोई की हार में अहम वजह बने। कुलदीप बिश्नोई ने 2010 के उपचुनाव में इनेलो के अजय सिंह चौटाला को लगभग सात हजार मतों के अंतर से हराया था। 2014 का चुनाव दुष्यंत चौटाला ने लड़ा और 4 लाख 94 हजार 478 वोट लेकर हजकां के कुलदीप बिश्नोई को 31 हजार 847 मतों से हराया।
कुलदीप बिश्नोई को 4 लाख 62 हजार 631 वोट मिले। वहीं कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रो. संपत सिंह अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए। संपत सिंह को महज 1 लाख 2 हजार 509 वोट ही मिले। एक सोची-समझी रणनीति के तहत हिसार के चुनावी रण में निर्दलीय के तौर पर उतारे गए। सात कुलदीप नाम के अन्य प्रत्याशियों ने 13 हजार 25 वोट हासिल किए। ऐसा माना जाता है कि कुलदीप बिश्नोई को पड़ने वाले ये वोट कुलदीप नाम के दूसरे प्रत्याशियों के खाते में गए।
कुलदीप पुत्र नारायण सिंह ने 5251, कुलदीप पुत्र प्रद्यूमन सिंह ने 2587, कुलदीप पुत्र करण सिंह ने 1886, कुलदीप पुत्र ईश्वर सिंह ने 1242, कुलदीप पुत्र मदन लाल ने 959 तथा कुलदीप पुत्र शीशपाल ने 705 वोट हासिल किए। एक ही परिवार के दो सदस्यों का हिसार से सांसद बनने का रिकार्ड भजनलाल और कुलदीप बिश्नोई के अलावा चौ. बीरेंद्र सिंह और बृजेंद्र सिंह के नाम दर्ज है। बाकी कोई भी परिवार अभी तक हिसार संसदीय सीट पर इस तरह का रिकार्ड नहीं बना पाया है। 2019 के लोकसभा चुनावों में दुष्यंत चौटाला ने लगातार दूसरी बार हिसार सीट से जीत हासिल करने की कोशिश की। इस बार वे इनेलो की बजाय खुद की पार्टी यानी जननायक जनता पार्टी के टिकट पर चुनावी रण में उतरे।
दुष्यंत चौटाला पीएम नरेंद्र मोदी की आंधी के सामने टिक नहीं सके। उन्हें 2 लाख 89 हजार 221 वोट हासिल हुए। वहीं भाजपा टिकट पर आईएएस की नौकरी छोड़कर चुनावी रण में आए बृजेंद्र सिंह ने पहले ही चुनाव में 6 लाख 3 हजार 289 वोट लेकर 3 लाख 14 हजार 68 मतों के अंतर से जीत हासिल की। कांग्रेस के भव्य बिश्नोई की जमानत भी नहीं बची। उन्हें 1 लाख 84 हजार 369 वोट हासिल हुए।
देवीलाल की पसंद थे रणजीत सिंह
चौ. रणजीत सिंह अपने पिता देवीलाल की पसंद हुआ करते थे। राजनीतिक हालात ऐसे बने कि देवीलाल की राजनीतिक विरासत ओमप्रकाश चौटाला को मिली और वे कई बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। वर्तमान में भाजपा टिकट पर हिसार से चुनाव लड़ रहे रणजीत सिंह भारतीय राष्ट्रीय लोकदल, जनता दल, कांग्रेस व भाजपा में सक्रिय रहे। 2019 में उन्होंने रानियां से निर्दलीय चुनाव जीता और भाजपा को समर्थन दिया। भाजपा ने उन्हें बिजली व जेल मंत्री बनाया। मनोहर सरकार के बाद वे नायब सरकार में भी जेल व बिजली मंत्री बने। 1987 में रणजीत सिंह रोड़ी से विधायक बने थे और देवीलाल सरकार में कृषि मंत्री बने। 1990 में वे राज्यसभा सांसद रहे। 2005 से 2009 तक हुड्डा सरकार में योजना बोर्ड के उपाध्यक्ष भी रहे।
जेपी और बृजेंद्र में टिकट को लेकर घमासान
कांग्रेस में हिसार की सीट को लेकर घमासान मचा हुआ है। भाजपा के मौजूदा सांसद होते हुए पार्टी छोड़कर कांग्रेस में आने वाले बृजेंद्र सिंह का सबसे अधिक क्लेम है। वहीं दूसरी ओर, पूर्व केंद्रीय मंत्री जयप्रकाश ‘जेपी’ भी टिकट के लिए भागदौड़ कर रहे हैं।
जेपी समर्थकों ने सोशल मीडिया पर टिकट नहीं मिलने की सूरत में विरोध करने के संकेत भी देने शुरू कर दिए हैं। सूत्रों का कहना है कि हिसार की सीट पर पार्टी नेतृत्व खुद ही फैसला करेगा। अब यह देखना रोचक रहेगा की बीरेंद्र सिंह अपने बेटे बृजेंद्र सिंह के लिए टिकट ले पाते हैं या नहीं।
दो बेटियां पहली बार मैदान में
इस पार्लियामेंट सीट पर यह पहला मौका है जब दो प्रमुख पार्टियों ने हिसार की ही बेटियों को चुनावी रण में उतारा है। संयोग से दोनों प्रत्याशी एक ही परिवार से हैं और रिश्ते में जेठानी-देवरानी हैं। करीब साढ़े चार वर्षों से भाजपा के साथ सरकार में गठबंधन सहयोगी रही जजपा ने बाढ़डा विधायक नैना सिंह चौटाला को मैदान में उतारा है। वहीं इनेलो ने उनके मुकाबले नैना की देवरानी सुनैना चौटाला को टिकट दिया है। नैना चौटाला पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला के ज्येष्ठ पुत्र अजय सिंह चौटाला की पत्नी हैं। वहीं सुनैना चौटाला ओमप्रकाश चौटाला के भाई व पूर्व विधायक स्व. प्रताप सिंह चौटाला के बेटे रवि चौटाला की पत्नी हैं। नैना चौटाला मूल रूप से दड़ौली गांव की रहने वाली हैं। वहीं सुनैना चौटाला का पैतृक गांव दौलतपुर है।
परिवार की बहुओं के सामने ससुर
राजनीति के अपने उतार-चढ़ाव हैं। चौ. देवीलाल परिवार ने शायद ही कभी सोचा होगा कि परिवार के सदस्य ही एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। इस बार तो परिवार के तीन सदस्य एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। नायब सरकार में बिजली व जेल मंत्री चौ. रणजीत सिंह चौटाला भाजपा टिकट पर हिसार से चुनाव लड़ रहे हैं। वे रिश्ते में इनेलो प्रत्याशी सुनैना चौटाला और जजपा उम्मीदवार नैना सिंह चौटाला के चाचा ससुर हैं।
नैना को हालात लाए राजनीति में
पूर्व सांसद अजय सिंह चौटाला को जेबीटी भर्ती में दस साल की सजा होने के बाद राजनीतिक हालात काफी बदल गए। उस समय अजय चौटाला डबवाली से विधायक थे। ऐसे में 2014 में अजय की पत्नी नैना चौटाला को इनेलो ने डबवाली से चुनावी रण में उतारा और वे चुनाव जीतने में कामयाब रहीं। हालांकि 2019 में इनेलो टूटने और चौटाला परिवार में बिखराव के बाद नैना ने 2019 का चुनाव दादरी जिले के बाढ़डा हलके से लड़ा। वे दूसरी बार विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहीं। नैना चौटाला शूटिंग भी करती रही हैं और उन्होंने कॉलेज टीम का नेतृत्व भी किया हुआ है। नैना, चौ. देवीलाल परिवार की पहली महिला थीं, जो राजनीति में सक्रिय हुईं। हालांकि उनके बाद अब सुनैना चौटाला भी सियासत में ताल ठोक चुकी हैं।
शूटिंग प्लेयर रही हैं सुनैना
44 वर्षीय सुनैना चौटाला ने प्राइमरी की पढ़ाई रोहतक के प्राइवेट स्कूल से की। इसके बाद हिसार के एफसी कॉलेज में उन्होंने एडमिशन लिया। शूटिंग खिलाड़ी रहीं सुनैना को फुटबॉल खेलना भी पसंद है। सालासर बालाजी में अटूट विश्वास रखने वाली सुनैना चौटाला हर छठे महीने 15 दिन की सालासर तक की पैदल यात्रा करती हैं। प्रताप सिंह चौटाला के पुत्र रवि चौटाला के साथ उनका विवाह 1996 में हुआ। रवि चौटाला कांग्रेस में सक्रिय रहे लेकिन 2009 में उन्होंने डबवाली से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा। 2013 में जब ओपी चौटाला और अजय चौटाला को जेल हुई तो रवि चौटाला इनेलो में शामिल हो गए। पहले रवि चौटाला सक्रिय थे और अब उनकी पत्नी सुनैना चौटाला एक्टिव हैं।
हिसार, 22 अप्रैल
हिसार लोकसभा सीट पर इस बार रोचक चुनावी मुकाबला हो रहा है। सत्तारूढ़ भाजपा सहित तीन प्रमुख दलों के नेता चुनावी रण में आ चुके हैं। वहीं प्रमुख विपक्षी दल – कांग्रेस के उम्मीदवार को लेकर अभी सस्पेंस बना हुआ है। हिसार सीट पर अभी तक हुए चुनावों के कई ऐसे किस्से हैं, जो चर्चाओं में रहते हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों में जब इनेलो टिकट पर दुष्यंत चौटाला ने कुलदीप बिश्नोई से अपने पिता अजय सिंह चौटाला की हार का बदला लिया तो उस समय मैदान में कुलदीप नाम के 8 उम्मीदवार थे।
जी हां, यह अपनी तरह का पहला चुनाव था, जिसमें एक नाम के इतने सारे प्रत्याशी मैदान में उतारे गए। दुष्यंत चौटाला और कुलदीप बिश्नोई के बीच नजदीकी मुकाबला था। ऐसे में बाकी सात कुलदीप भी बिश्नोई की हार में अहम वजह बने। कुलदीप बिश्नोई ने 2010 के उपचुनाव में इनेलो के अजय सिंह चौटाला को लगभग सात हजार मतों के अंतर से हराया था। 2014 का चुनाव दुष्यंत चौटाला ने लड़ा और 4 लाख 94 हजार 478 वोट लेकर हजकां के कुलदीप बिश्नोई को 31 हजार 847 मतों से हराया।
कुलदीप बिश्नोई को 4 लाख 62 हजार 631 वोट मिले। वहीं कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रो. संपत सिंह अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए। संपत सिंह को महज 1 लाख 2 हजार 509 वोट ही मिले। एक सोची-समझी रणनीति के तहत हिसार के चुनावी रण में निर्दलीय के तौर पर उतारे गए। सात कुलदीप नाम के अन्य प्रत्याशियों ने 13 हजार 25 वोट हासिल किए। ऐसा माना जाता है कि कुलदीप बिश्नोई को पड़ने वाले ये वोट कुलदीप नाम के दूसरे प्रत्याशियों के खाते में गए।
कुलदीप पुत्र नारायण सिंह ने 5251, कुलदीप पुत्र प्रद्यूमन सिंह ने 2587, कुलदीप पुत्र करण सिंह ने 1886, कुलदीप पुत्र ईश्वर सिंह ने 1242, कुलदीप पुत्र मदन लाल ने 959 तथा कुलदीप पुत्र शीशपाल ने 705 वोट हासिल किए। एक ही परिवार के दो सदस्यों का हिसार से सांसद बनने का रिकार्ड भजनलाल और कुलदीप बिश्नोई के अलावा चौ. बीरेंद्र सिंह और बृजेंद्र सिंह के नाम दर्ज है। बाकी कोई भी परिवार अभी तक हिसार संसदीय सीट पर इस तरह का रिकार्ड नहीं बना पाया है। 2019 के लोकसभा चुनावों में दुष्यंत चौटाला ने लगातार दूसरी बार हिसार सीट से जीत हासिल करने की कोशिश की। इस बार वे इनेलो की बजाय खुद की पार्टी यानी जननायक जनता पार्टी के टिकट पर चुनावी रण में उतरे।
दुष्यंत चौटाला पीएम नरेंद्र मोदी की आंधी के सामने टिक नहीं सके। उन्हें 2 लाख 89 हजार 221 वोट हासिल हुए। वहीं भाजपा टिकट पर आईएएस की नौकरी छोड़कर चुनावी रण में आए बृजेंद्र सिंह ने पहले ही चुनाव में 6 लाख 3 हजार 289 वोट लेकर 3 लाख 14 हजार 68 मतों के अंतर से जीत हासिल की। कांग्रेस के भव्य बिश्नोई की जमानत भी नहीं बची। उन्हें 1 लाख 84 हजार 369 वोट हासिल हुए।
देवीलाल की पसंद थे रणजीत सिंह
चौ. रणजीत सिंह अपने पिता देवीलाल की पसंद हुआ करते थे। राजनीतिक हालात ऐसे बने कि देवीलाल की राजनीतिक विरासत ओमप्रकाश चौटाला को मिली और वे कई बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। वर्तमान में भाजपा टिकट पर हिसार से चुनाव लड़ रहे रणजीत सिंह भारतीय राष्ट्रीय लोकदल, जनता दल, कांग्रेस व भाजपा में सक्रिय रहे। 2019 में उन्होंने रानियां से निर्दलीय चुनाव जीता और भाजपा को समर्थन दिया। भाजपा ने उन्हें बिजली व जेल मंत्री बनाया। मनोहर सरकार के बाद वे नायब सरकार में भी जेल व बिजली मंत्री बने। 1987 में रणजीत सिंह रोड़ी से विधायक बने थे और देवीलाल सरकार में कृषि मंत्री बने। 1990 में वे राज्यसभा सांसद रहे। 2005 से 2009 तक हुड्डा सरकार में योजना बोर्ड के उपाध्यक्ष भी रहे।
जेपी और बृजेंद्र में टिकट को लेकर घमासान
कांग्रेस में हिसार की सीट को लेकर घमासान मचा हुआ है। भाजपा के मौजूदा सांसद होते हुए पार्टी छोड़कर कांग्रेस में आने वाले बृजेंद्र सिंह का सबसे अधिक क्लेम है। वहीं दूसरी ओर, पूर्व केंद्रीय मंत्री जयप्रकाश ‘जेपी’ भी टिकट के लिए भागदौड़ कर रहे हैं।
जेपी समर्थकों ने सोशल मीडिया पर टिकट नहीं मिलने की सूरत में विरोध करने के संकेत भी देने शुरू कर दिए हैं। सूत्रों का कहना है कि हिसार की सीट पर पार्टी नेतृत्व खुद ही फैसला करेगा। अब यह देखना रोचक रहेगा की बीरेंद्र सिंह अपने बेटे बृजेंद्र सिंह के लिए टिकट ले पाते हैं या नहीं।
दो बेटियां पहली बार मैदान में
इस पार्लियामेंट सीट पर यह पहला मौका है जब दो प्रमुख पार्टियों ने हिसार की ही बेटियों को चुनावी रण में उतारा है। संयोग से दोनों प्रत्याशी एक ही परिवार से हैं और रिश्ते में जेठानी-देवरानी हैं। करीब साढ़े चार वर्षों से भाजपा के साथ सरकार में गठबंधन सहयोगी रही जजपा ने बाढ़डा विधायक नैना सिंह चौटाला को मैदान में उतारा है। वहीं इनेलो ने उनके मुकाबले नैना की देवरानी सुनैना चौटाला को टिकट दिया है। नैना चौटाला पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला के ज्येष्ठ पुत्र अजय सिंह चौटाला की पत्नी हैं। वहीं सुनैना चौटाला ओमप्रकाश चौटाला के भाई व पूर्व विधायक स्व. प्रताप सिंह चौटाला के बेटे रवि चौटाला की पत्नी हैं। नैना चौटाला मूल रूप से दड़ौली गांव की रहने वाली हैं। वहीं सुनैना चौटाला का पैतृक गांव दौलतपुर है।
परिवार की बहुओं के सामने ससुर
राजनीति के अपने उतार-चढ़ाव हैं। चौ. देवीलाल परिवार ने शायद ही कभी सोचा होगा कि परिवार के सदस्य ही एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। इस बार तो परिवार के तीन सदस्य एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। नायब सरकार में बिजली व जेल मंत्री चौ. रणजीत सिंह चौटाला भाजपा टिकट पर हिसार से चुनाव लड़ रहे हैं। वे रिश्ते में इनेलो प्रत्याशी सुनैना चौटाला और जजपा उम्मीदवार नैना सिंह चौटाला के चाचा ससुर हैं।
नैना को हालात लाए राजनीति में
पूर्व सांसद अजय सिंह चौटाला को जेबीटी भर्ती में दस साल की सजा होने के बाद राजनीतिक हालात काफी बदल गए। उस समय अजय चौटाला डबवाली से विधायक थे। ऐसे में 2014 में अजय की पत्नी नैना चौटाला को इनेलो ने डबवाली से चुनावी रण में उतारा और वे चुनाव जीतने में कामयाब रहीं। हालांकि 2019 में इनेलो टूटने और चौटाला परिवार में बिखराव के बाद नैना ने 2019 का चुनाव दादरी जिले के बाढ़डा हलके से लड़ा। वे दूसरी बार विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहीं। नैना चौटाला शूटिंग भी करती रही हैं और उन्होंने कॉलेज टीम का नेतृत्व भी किया हुआ है। नैना, चौ. देवीलाल परिवार की पहली महिला थीं, जो राजनीति में सक्रिय हुईं। हालांकि उनके बाद अब सुनैना चौटाला भी सियासत में ताल ठोक चुकी हैं।
शूटिंग प्लेयर रही हैं सुनैना
44 वर्षीय सुनैना चौटाला ने प्राइमरी की पढ़ाई रोहतक के प्राइवेट स्कूल से की। इसके बाद हिसार के एफसी कॉलेज में उन्होंने एडमिशन लिया। शूटिंग खिलाड़ी रहीं सुनैना को फुटबॉल खेलना भी पसंद है। सालासर बालाजी में अटूट विश्वास रखने वाली सुनैना चौटाला हर छठे महीने 15 दिन की सालासर तक की पैदल यात्रा करती हैं। प्रताप सिंह चौटाला के पुत्र रवि चौटाला के साथ उनका विवाह 1996 में हुआ। रवि चौटाला कांग्रेस में सक्रिय रहे लेकिन 2009 में उन्होंने डबवाली से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा। 2013 में जब ओपी चौटाला और अजय चौटाला को जेल हुई तो रवि चौटाला इनेलो में शामिल हो गए। पहले रवि चौटाला सक्रिय थे और अब उनकी पत्नी सुनैना चौटाला एक्टिव हैं।
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