महंगाई पर नजर
शायद यह लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूरी है कि उसकी प्राथमिकता महंगाई पर काबू पाने की होती है। महंगाई से त्रस्त जनमानस राजनीतिक बदलाव से भी गुरेज नहीं करता है। इस साल कुछ राज्यों में विधानसभा चुनावों और आम चुनावों की तरफ बढ़ते देश में सरकार की प्राथमिकता महंगाई नियंत्रण होना लाजिमी ही है। जिसकी झलक देश के केंद्रीय बैंक के वीरवार को सामने आए फैसले में नजर आई। केंद्रीय बैंक ने विकास के बजाय महंगाई नियंत्रण को अपनी प्राथमिकता बताया है। यही वजह है कि रिजर्व बैंक ने अपनी मुख्य दरों में कोई बदलाव नहीं किया। बैंक की लगातार दूसरी बैठक में रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया ताकि उपभोक्ताओं की ईएमआई पर कोई असर न पड़े। उल्लेखनीय है कि अप्रैल में हुई बैठक में भी नीतिगत दरें स्थिर रखी गई थी। इस बार भी रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की दो दिनों तक चली बैठक के बाद गुरुवार को गवर्नर शक्तिकांत दास ने स्वीकारा की चालू वित्त वर्ष में महंगाई दर निर्धारित लक्ष्य चार प्रतिशत से ऊपर रह सकती है। वहीं उन्होंने आगामी वित्तीय वर्ष में विकास दर 6.5 फीसदी रहने का भरोसा जताया। साथ ही कहा कि शहरी व ग्रामीण मांग का मजबूत बना होना अर्थव्यवस्था के लिये अच्छा संकेत है। फिर भी अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के पांच फीसदी से अधिक रहने का अनुमान है। इस आकलन की एक वजह यह भी है कि मौसम संबंधी अनिश्चितता ऐसे पूर्वानुमानों को प्रभावित कर सकती है। बैंक का मानना है कि यदि मानसून सामान्य रहता है तो महंगाई रिजर्व बैंक के अनुमानों के अनुसार निर्धारित लक्ष्य के अनुरूप ही रह सकती है। कुछ आर्थिक जानकार केंद्रीय बैंक के निर्णय को सकारात्मक रूप से समायोजन की दिशा में उठाया गया कदम बता रहे हैं। उनका मानना है कि हाल-फिलहाल बाजार की इच्छा के अनुसार ब्याज दरों में वृद्धि नहीं की जायेगी। आकलन है कि वैश्विक आर्थिक स्थितियों तथा मानसून के सामान्य रहने पर केंद्रीय बैंक नीतिगत दर में कटौती कर सकता है।
निस्संदेह, मौजूदा वैश्विक आर्थिक अस्थिरता के बीच यदि भारत का आर्थिक व वित्तीय क्षेत्र लचीला बना हुआ है तो यह मजबूत आर्थिक ढांचे को ही दर्शाता है। कुल मिलाकर बैंक ने आम उपभोक्ताओं की चिंताओं का ही निदान किया है। लेकिन एक बात साफ है कि केंद्रीय बैंक विकास के जोखिम के बजाय महंगाई के जोखिम को अपना प्राथमिक लक्ष्य बना रहा है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लचीलेपन के चलते ही केंद्रीय बैंक के मुद्रास्फीति पर नियंत्रण के प्रयास सिरे चढ़ते नजर आ रहे है। जो अब सहिष्णुता की सीमा के निकट नजर आती है। जिसके चलते देश में सकारात्मक आर्थिक परिदृश्य नजर आ रहा है। तभी आगामी वित्तीय वर्ष के लिये जीडीपी के 6.5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है। बहरहाल, केंद्रीय बैंक ने मॉनेटरी पॉलिसी मीटिंग के बाद देश के लोगों को यह भरोसा दिलाया है कि नीतिगत दरों में बदलाव न करने के बावजूद न तो लोन महंगे होंगे और न ही उन्हें अधिक ईएमआई चुकानी पड़ेगी। यही वजह है कि केंद्रीय बैंक ने महंगाई नियंत्रण के अपने अस्त्र रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया, क्योंकि रेपो रेट बढ़ाने के बाद बैंक अपना ऋण महंगा कर देते हैं। इतना तो तय है कि आरबीआई अभी महंगाई को लेकर चिंतित है। फिलहाल मुद्रास्फीति की अनुमानित दर को 5.2 फीसदी से घटाकर उसने 5.1 किया है। आरबीआई गवर्नर के उस बयान से महंगाई को लेकर चिंता जाहिर होती है जिसमें उन्होंने इस पर अर्जुन की नजर बनाये रखने की जरूरत बतायी है। उन्होंने यह भी माना कि यात्रा का अंतिम चरण हमेशा कठिन ही होता है। बाजार के जानकार मान रहे हैं कि वर्तमान में कम होती महंगाई और विकास की स्थिर दर के चलते आगामी वित्तीय वर्ष में नीतिगत दरों में कमी की जा सकती है। लेकिन कच्चे तेल के दाम आदि वैश्विक कारकों से जुड़ी चिंताएं इसे प्रभावित भी कर सकती हैं। खासकर रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते प्रभावित आपूर्ति शृंखला का बाधित होना भी इसका एक घटक है।