भरी सरकारी झोली
यह सुखद ही है कि देश कर संग्रहण सिस्टम में सुधार की दिशा में सार्थक पहल से एक कदम आगे बढ़ा है। देश में पहली बार जीएसटी का संग्रहण दो लाख करोड़ रुपये से पार चला गया है। कर विशेषज्ञ इसे टैक्स सिस्टम में सुधार के प्रयासों की सफलता बता रहे हैं। किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था का भविष्य उसके समृद्ध आर्थिक संसाधनों पर ही निर्भर होता है। भारत के अड़ोस-पड़ोस के कई देशों की अर्थव्यवस्था नियोजन के अभाव, भ्रष्टाचार तथा लोकलुभावन नीतियों के व्यय बोझ से चरमरा गई। इसलिये आर्थिक अनुशासन और वित्तीय संसाधनों को समृद्ध करने का प्रयास बेहद जरूरी हो जाता है। यहां उल्लेखनीय है कि अप्रैल में जहां देसी गतिविधियों से कर संग्रह में 13.4 फीसदी का इजाफा हुआ है, वहीं पिछले अप्रैल के मुकाबले में आयात से होने वाला राजस्व संग्रह भी 8.3 फीसदी बढ़ा है। निश्चय ही चालू वित्त वर्ष के पहले ही महीने यानी अप्रैल में सकल वस्तु एवं सेवा कर संग्रह पहली बार रिकॉर्ड 2.1 लाख करोड़ रुपये होना अर्थव्यवस्था के लिये शुभ संकेत है, जबकि दुनिया की कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में फिलहाल मंदी के रुझान नजर आ रहे हैं। यह वृद्धि बीते साल अप्रैल में एकत्र जीएसटी के मुकाबले 12.4 फीसदी अधिक है। आर्थिक विशेषज्ञ मान रहे हैं कि वैश्विक स्तर पर उथल-पुथल के बीच रूस-यूक्रेन युद्ध तथा गजा में हमास इस्राइल संघर्ष जैसी बाह्य चुनौतियों के बावजूद चालू वित्त वर्ष में जीएसटी संग्रह में वृद्धि देश की आर्थिक उन्नति के लिये अच्छा संकेत है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि कर प्राप्तियों में बढ़ोतरी के मूल में आर्थिक गतिविधियों में तेजी के रुझानों का असर है। उल्लेखनीय है कि वृद्धि आयात उपकर में भी हुई है। वैसे एक तथ्य यह भी है कि आम तौर पर किसी भी नये वित्तीय वर्ष में पहले माह अप्रैल में सरकार को सर्वाधिक वस्तु एवं सेवा कर मिलता है। इस वित्त वर्ष के आने वाले महीनों में जीएसटी संग्रहण से होने वाली आय से अर्थव्यवस्था के स्थायी रुझानों का पता चल सकेगा।
निश्चित रूप से आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि किन-किन महीनों में जीएसटी संग्रह दो लाख करोड़ रुपये का आकंड़ा पार करता है। यहां यह उल्लेखनीय है कि अप्रैल माह में केंद्रीय जीएसटी में इस बार 27.8 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ संगृहीत राशि 94,153 करोड़ रुपये रही। दूसरी ओर राज्य जीएसटी संग्रह में आशातीत 25.9 फीसदी की वृद्धि हुई। इस तरह राज्यों की जीएसटी संग्रह राशि 95,138 करोड़ हो गई। यानी राजस्व प्राप्ति की राह में राज्यों की भागीदारी में भी सुधार देखा गया है। केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर, लक्षद्वीप और अंडमान निकोबार, सिक्किम, मेघालय नगालैंड को छोड़कर सभी राज्यों में इस साल के पहले महीने जीएसटी राजस्व में वृद्धि हुई है। आर्थिक विशेषज्ञ जीएसटी वृद्धि के मूल में उपभोक्ता उत्पादों की ज्यादा खपत का योगदान बता रहे हैं। गर्मी बढ़ने की चिंता में उपभोक्ता बड़े पैमाने पर एसी व फ्रिज आदि खरीदते हैं। बच्चों के शैक्षिक सत्र समापन के चलते बच्चों की छुट्टियों में पर्यटन बढ़ने को भी एक वजह माना जा रहा है। निस्संदेह, लंबी यात्राओं के चलते आर्थिक गतिविधियों में तेजी आती है। वहीं आम चुनावों के चलते चुनाव प्रक्रिया में जुड़े व्यवसायों की आय में हुई वृद्धि की भी इसमें भूमिका हो सकती है। वहीं दूसरी ओर हमें मानना होगा कि वित्तीय नियामक एजेंसियों की सक्रियता तथा जीएसटी अधिकारियों द्वारा प्रशासनिक सुधारों को प्राथमिकता देने से भी जीएसटी संग्रह में वृद्धि का रुझान देखा जा सकता है। इसमें जहां रिटर्न भरने के लिये सख्ती, फर्जी चालान पर अंकुश, पंजीकरण की अनिवार्यता को लेकर सख्ती से भी वस्तु-सेवा कर संग्रहण में वृद्धि हुई है। विश्वास जताया जा रहा है कि जीएसटी राजस्व में वृद्धि से उत्साहित नई सरकार कर उगाही व्यवस्था में बदलाव के लिये नई पहल कर सकती है। सरकार दावा कर सकती है कि ‘एक देश, एक कर’ की सोच सार्थक परिणाम लेकर सामने आ रही है। जो इस क्षेत्र में नये सुधारों का मार्ग भी प्रशस्त कर रही है।