देश में ऊर्जा व संसाधनों का अपव्यय रुकेगा
डॉ. उमेश प्रताप वत्स
हिन्दुस्तान एक ऐसा देश है जहां हर वर्ष कहीं न कहीं चुनाव होते ही रहते हैं। यदि कहा जाये कि त्योहारों के साथ-साथ यह चुनावी उत्सवों का भी देश है तो गलत नहीं होगा। जनसंख्या के आधार पर विश्व का सबसे बड़ा देश हर वर्ष किसी न किसी राज्य में चुनावों की तैयारी में व्यस्त रहता है। जिस कारण देश का बहुत-सा धन, समय, ऊर्जा चुनाव संपन्न कराने में व्यतीत हो जाता है। प्रतिवर्ष जो कर्मचारी चुनाव संपन्न कराने की व्यवस्था में ड्यूटी करते हैं उनके मूल विभाग के कार्य पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। प्रतिवर्ष चुनाव होने के कारण भ्रष्टाचार भी चरम सीमा पर पहुंच जाता है। हाल ही में उत्तर प्रदेश में कहीं दीवारों के अंदर से अरबों रुपयों की बरसात हो रही है और कहीं फर्श तोड़कर तहखानों से करोड़ों रुपये निकाले जा रहे हैं। चुनावों में धनबल प्रयोग होने के कारण भ्रष्टाचार का यह सारा धन अलग-अलग हथकंडों से एकत्र किया जाता है। गुंडातत्व का महत्व बढ़ जाता है।
इस तरह नेताओं की भी जो ताकत जनहित के लिए योजनाओं के क्रियान्वयन में लगनी चाहिए वह भी चुनावों की तैयारी में तथा चुनाव जीतने की कोशिश में लग जाती है। नेता लोग स्वयं को नये रूप में तराशने लगते हैं। वे मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए जबरदस्त होमवर्क करते हैं, इसके लिए जाति-धर्म के नाम पर वैमनस्य फैलाने की तथा भय का वातावरण तैयार करने की योजनाएं बनाई जाती हैं।
इन सभी समस्याओं का एक ही समाधान है कि देश की संसद का तथा सभी राज्यों में विधानसभा का चुनाव एक साथ कराया जाये। इसके लिए देश में कई बार बहस छिड़ी भी है। सबने अपने-अपने मत प्रकट किये हैं। कभी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी एक साथ चुनाव कराने की इच्छा जताई थी। वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री ने भी अलग-अलग मंचों से एक साथ चुनाव कराने की पैरवी की है किंतु एक व्यापक स्तर पर प्रयास नहीं हो पा रहा है। दरअसल, देश की अधिकतर राजनीतिक पार्टियां इस मामले पर उदासीन हैं। कहीं न कहीं एक साथ चुनाव कराने में यह समस्या भी है कि किसी राज्य में सरकार को एक वर्ष हुआ है तो किसी में ढाई या चार वर्ष हुए हैं। तो पांच वर्ष के लिए चुनी हुई सरकार को समय से पहले भंग कैसे करें अथवा जब तक सभी सरकारों के पांच वर्ष पूरे हों तब तक बाकी राज्यों में जहां सरकार का कार्यकाल पूरा हो चुका है वहां कैसे सरकार चलाएं।
फिर जैसे-कैसे एक साथ चुनाव करवा भी दिये जायें तो किसी भी सरकार के गठबंधन के कारण या फिर सांसद, विधायक की मृत्यु के कारण सत्ताधारी पार्टी अल्पमत में आ जाये तो क्या करे। यदि रिक्त सीट पर पुनः चुनाव करवाये जायें तो फिर एक साथ चुनाव कराने के प्रयासों को झटका लग सकता है। अतः इन सभी जटिल स्थितियों के कारण कोई भी राजनीतिक दल देशभर में एक साथ चुनाव कराने को लेकर एकमत नहीं है।
इसका एकमात्र समाधान यही है कि देश का सर्वोच्च न्यायालय स्वयं संज्ञान लेकर इस मामले में हस्तक्षेप करे और राजनीतिक दलों को एक राय बनाने को प्रेरित करे। जब 2024 में देशभर में संसदीय चुनाव की प्रक्रिया प्रारंभ हो तब सभी राज्यों में एक साथ चुनाव कराये जायें बल्कि पंच, पार्षद से लेकर संसद तक सभी चुनाव एक साथ हों।
दरअसल, राष्ट्रीय ऊर्जा और धन का अपव्यय रोकने और सामाजिक समरसता बनाये रखने के लिये तमाम उपायों पर विचार किया जाना चाहिए। उसमें उन विकल्पों पर भी गंभीरता से विचार करने की जरूरत है जो एक साथ चुनाव संपन्न होने के बाद यदि किसी सांसद या विधायक की मृत्यु से या फिर किसी गठबंधन के टूटने से सरकार अल्पमत में आ जाये तो आगामी पांच वर्ष पूरे करने तक सरकार कैसे चलायी जा सकती है। इस पर भी विचार होना चाहिए कि बहुमत प्राप्त पार्टी शेष काल पूरा करे अन्यथा बचा हुआ समय पूरा करने के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया जाये। बेहतर होगा कि किसी तरह मध्यावधि चुनाव की स्थितियां पैदा न हों।
यदि देश में किसी भी तरह से लोकसभा व विधानसभा के चुनाव एक साथ होने की व्यवस्था सर्वसम्मति से बनती है तो बहुत ही सुखद परिणाम आयेंगे। देश का धन और समय बचेगा। कर्मचारियों को बार-बार चुनाव ड्यूटी से निजात मिलेगी। केन्द्र व राज्य सरकारों को पांच वर्षों तक निर्बाध कार्य करने का सुअवसर मिलेगा। भ्रष्टाचार में कमी आयेगी। चुनावी राजनीतिक दुकानें बंद होंगी। चुनाव के दौरान विदेशी षड्यंत्रों में कमी आयेगी। चुनाव आयोग व अन्य विभागों पर चुनाव कराने का दबाव कम होगा। सरकारी जांच एजेंसियों को चुनाव के दबाव बिना कार्य करने का स्पष्ट मार्ग मिलेगा। अन्यथा चुनाव समीकरणों के चलते उनके दुरुपयोग की बातें सामने आती हैं। सबसे बड़ी बात कि पांच वर्ष में एक बार चुनाव संपन्न कराने से देश की बहुत अधिक ऊर्जा व्यर्थ खर्च होने से बचेगी। यह ऊर्जा देश की प्रगति में लगने से भारत उन्नति के शिखर तक जाने में सक्षम होगा।