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लद्दाख की अस्मिता के लिए जूझते वांगचुक

07:06 AM Mar 29, 2024 IST
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अरुण नैथानी

पिछले दिनों बर्फ के फाहों के बीच अनशन पर बैठे ‘बर्फ के इंजीनियर’ सोनम वांगचुक की वायरल तसवीरें लोगों को हैरत में डालती रही हैं। लेकिन विडंबना यह है कि जितनी प्रसिद्धि आमिर खान को एक फिल्म में उनके किरदार निभाने से मिली, उतना प्रतिसाद देश में उनके वास्तविक अनशन को नहीं मिला। हालांकि, पर्यावरण व लद्दाख की अस्मिता बचाने के लिये संघर्षरत वांगचुक को स्थानीय लोगों का भरपूर समर्थन मिला। लोग बर्फबारी के बीच उनके जलवायु उपवास के साथ-साथ चले। यद्यपि 21 दिन के बाद उन्होंने अपना उपवास खत्म कर दिया, लेकिन कहा कि अभी आंदोलन खत्म नहीं हुआ है। दरअसल, कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म होने से एक जनजातीय क्षेत्र के रूप में लद्दाखियों को मिले कवच के खत्म होने से उन्हें कई तरह की आशंकाओं ने घेर लिया है। लद्दाख के लोग केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा मिलने से खुश नहीं हैं। वे लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने तथा संविधान की छठी अनुसूची लागू करने की मांग कर रहे हैं ताकि लद्दाख की अस्मिता संरक्षित रहे।
दरअसल, केंद्र सरकार के साथ वार्ता विफल हो जाने के बाद सोनम वांगचुक ने छह मार्च को अपना अनशन आरंभ किया था। रक्त जमाते शून्य से कम तापमान के बीच उनके अनशन स्थल पर समर्थकों की भीड़ कम नहीं हुई। इससे पहले भी छठी अनुसूची लागू करने की मांग को लेकर कड़ाके की ठंड में भी एक बड़ा प्रदर्शन हुआ था। जिसमें हजारों लोगों की भागीदारी ने जनाकांक्षाओं को उभारा था। तब अपेक्स बॉडी लेह यानी एबीएल और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस यानी केडीए ने बंद व प्रदर्शन का आह्वान किया था। दरअसल, ये लद्दाख में सक्रिय सामाजिक, धार्मिक व राजनीतिक संगठन हैं। इन संगठनों की चार मुख्य मांगों में संविधान की छठी अनुसूची लागू करने, केंद्रशासित प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा देने, एक संसदीय सीट बढ़ाने तथा क्षेत्र के लोगों को अधिक सरकारी नौकरियां देने के लिये लद्दाख का पब्लिक सर्विस कमीशन स्थापित करने की बात शामिल हैं।
दरअसल, भाजपा ने 2019 के घोषणा पत्र में लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने और क्षेत्र को छठी अनुसूची में शामिल करने का वादा किया था। लेकिन पिछले पांच सालों में ये वादा हकीकत नहीं बन पाया। आंदोलन को देखते हुए जब केंद्र सरकार से बातचीत का क्रम शुरू हुआ तो 19 फरवरी को एक उच्चस्तरीय कमेटी भी गठित की गई थी, जिसके अंतर्गत 23 फरवरी तक बातचीत के कई दौर भी चले। फिर जब चार मार्च को हुई बातचीत से कुछ सार्थक सामने नहीं आया तो सोनम वांगचुक लद्दाखियों की मांग को लेकर छह मार्च अनशन पर बैठ गये। ग्लोबल वार्मिंग की मार झेल रहे लद्दाख के हितों की रक्षा के लिये सोनम ने इस जलवायु उपवास का नाम दिया। हजारों लोग उनके समर्थन में बर्फबारी के बीच बैठे रहे।
दरअसल, देश के अन्य जनजातीय इलाकों की तरह लद्दाख के लोगों को यह भय सता रहा है कि केंद्रशासित प्रदेश बनने के बाद क्षेत्र में विकास के नाम पर पर्यावरण से खिलवाड़ होगा। वैसे भी पर्वतीय इलाकों में लोगों की आय सीमित होती है। ऐसे में धनबल के बूते बाहरी लोग प्राकृतिक संसाधनों पर अनाप-शनाप वर्चस्व बना लेते हैं। लद्दाखियों को चिंता है कि पर्यटन अपसंस्कृति से उनके सदियों से संरक्षित संस्कृति को खतरा पैदा हो जाएगा। उत्तराखंड व अन्य पर्वतीय राज्यों में खनन व वन संपदा पर जिस तरह अंधाधुंध दोहन माफिया ने किया, वैसी स्थिति को लेकर लद्दाख के लोग आशंकित हैं।
दूसरे देश के अन्य राज्यों की तरह इस केंद्रशासित प्रदेश में भी बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा है। केंद्रशासित प्रदेश बनने से पहले लद्दाख के लोग जम्मू-कश्मीर सर्विस कमीशन के जरिये राजपत्रित पदों के लिये आवेदन करते थे। लेकिन अलग केंद्रशासित प्रदेश बनने के बाद यह सुविधा खत्म हो गई। अब ये नियुक्तियां केंद्रीय कर्मचारी चयन आयोग के जरिये होती हैं। जिसकी स्पर्धा में लद्दाखी युवा खुद को कमतर पाते हैं। स्थानीय लोग गैर-राजपत्रित पदों में भर्ती के लिये अभियान चलाने की मांग करते रहे हैं। ऐसे में क्षेत्र के लिये अपना विधानमंडल बनाने तथा छठी अनुसूची की मांग के साथ रोजगार भी बड़ा मुद्दा बन गया। दरअसल, सोनम वांगचुक ने लद्दाख की जनता को अपने अनशन के जरिये आवाज दी है।
दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 244 के तहत छठी अनुसूची प्रशासन में स्वायत्त जिला परिषदों के गठन का प्रावधान है। जिसके अंतर्गत जिला परिषदों में तीस सदस्य होते हैं, जिनमें चार राज्यपाल द्वारा नामित होते हैं। परिषद के पास कुछ प्रशासनिक, विधायी और न्यायिक स्वतंत्रता होती है। जिला परिषद ही क्षेत्र में उद्योग लगाने की अनुमति देती है। ताकि इससे पर्वतीय संस्कृति व संसाधनों को सुरक्षा कवच मिल सके। लोगों का विश्वास है कि इसके लागू होने से क्षेत्र के लोगों की संस्कृति की रक्षा हो सकेगी।
सोनम वांगचुक चिंता जताते हैं कि यदि लद्दाखियों के हितों का संरक्षण न हुआ तो क्षेत्र में होटल संस्कृति काबिज हो जाएगी और लाखों लोगों के आने से सदियों से बचाकर रखी गई हमारी सांस्कृतिक विरासत को खतरा पैदा हो जाएगा। वे उदाहरण के लिये त्रिपुरा, मिजोरम, मेघालय व असम में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन का जिक्र करते हैं। वहीं सरकार के प्रतिनिधि दलील देते हैं कि पूर्ण राज्य का दर्जा तभी दिया जा सकता है जब क्षेत्र के पास पर्याप्त आर्थिक संसाधन हों। बहरहाल, जलवायु परिवर्तन के चलते बर्फबारी में कमी तथा ग्लेशियरों के पिघलने से आने वाली बाढ़ के खतरों को लेकर वांगचुक जैसे लोग खासे चिंतित हैं। इससे क्षेत्र की किसानी व जनजीवन पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।

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