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व्यक्ति में शक्ति का संचार करता है टहलना

06:28 AM Aug 28, 2023 IST

रेनू सैनी

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आपने अक्सर बड़े-बूढ़ों को कहते सुना होेगा कि, ‘अगर परीक्षा में अच्छे अंक लाने हैं तो घूम-घूम कर यानी टहलते हुए कॉपी को हाथ में लेकर उत्तर याद कीजिए।’ यह सत्य है कि ज़मीन पर टहलते हुए उत्तर जल्दी याद हो जाते हैं। केवल उत्तर ही याद नहीं होते बल्कि जीवन की कठिन से कठिन समस्याओं के हल भी टहलते हुए मिल जाते हैं। पृथ्वी को मां कहा जाता है। इसकी गोद में अनेक ऐसे प्राकृतिक जादुई तत्व छिपे हुए हैं जो व्यक्ति को जीवन-शक्ति प्रदान करते हैं। स्विट्ज़रलैंड के प्रतिष्ठित वैज्ञानिक शोध संगठन में प्रकाशित एक रिव्यू के अनुसार, ‘शरीर का पृथ्वी के संपर्क में आने से शरीर की विद्युत-चुंबकीय व्यवस्था पर सकारात्मक असर पड़ता है। इससे हृदयगति और शरीर में ग्लूकोज के रेग्यूलेशन में सुधार आता है।’
वैज्ञानिक नये-नये आविष्कार पृथ्वी के सान्निध्य में ही खोज पाते हैं। सर आइज़क न्यूटन को आज पूरी दुनिया एक महान वैज्ञानिक के रूप में जानती है। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत पृथ्वी की गोद में बैठ कर ही लगाया था। इसके बारे में न्यूटन ने अपने समकालीन वैज्ञानिक विलियम स्टयूक्ली को बताया था। विलियम स्टयूक्ली बताते हैं कि तब न्यूटन कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ते थे। प्लेग फैलने के कारण विश्वविद्यालय बंद होने पर वे अपने घर चले गए। एक दिन वह जमीन पर एक पेड़ के नीचे बैठे कुछ सोच रहे थे तभी एक सेब उनके पास आकर गिरा। उन्होंने सोचा कि ये सेब सीधा ही क्यों गिरा? अगल-बगल या ऊपर क्यों नहीं गिरा... इसका मतलब धरती उसे खींच रही है... मतलब उसमें आकर्षण है। इस तरह गुरुत्वाकर्षण के नियम के बारे में दुनिया को पता चला।
पृथ्वी में असीम चुंबकीय शक्ति है। जब व्यक्ति धरती पर सोते हैं, बैठते हैं और चलते हैं तो उनके अंदर असीम ऊर्जा एवं शक्ति का संचार होता है। अमेरिका से प्रकाशित एक लेख में इस बात का जिक्र है कि, ‘जब मनुष्य का शरीर मिट्टी के संपर्क में आता है तो लाल रक्त कोशिकाओं की सतह पर इलेक्ट्रॉनिक चार्ज में वृद्धि होती है। इससे नसों और धमनियों के अंदर रक्त की प्रवाहशीलता बढ़ती है। रक्त प्रवाह बढ़ने से हृदय को लाभ पहुंचता है। जब व्यक्ति नंगे पैर जमीन पर चलता है तो वह सीधा पृथ्वी के संपर्क में होता है। हमारे पैरों के तलवों में शरीर के हर अंग से संबंधित एक्यूप्रेशर रिफ्लेक्स पाॅइंट होते हैं। जब हमारे पैर ऊबड़-खाबड़ पृथ्वी पर पड़ते हैं तो शरीर के वजन के दबाव से अनजाने में इन रिफ्लेक्स पॉइंट्स पर दबाव पड़ता है और उनसे संबंधित शरीर के अंगों को लाभ पहुंचता है।
आज लोगों ने व्यस्तता के चलते पैदल चलना कम कर दिया है। इसलिए एक्यूप्रेशर जैसे उपकरणों की आवश्यकता पड़ती है। यदि व्यक्ति प्रतिदिन सुबह केवल आधे घंटे ही घास पर नंगे पैर चले तो वह पूरी तरह से स्वस्थ रह सकते हैं।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि पृथ्वी पर नंगे पैर टहलने के लिए आपको कोई शुल्क नहीं देना है। पृथ्वी अमीर-गरीब का भेद नहीं करती। यह सबको अपनी गोद में जगह देती है। नि:शुल्क वस्तु के मूल्य को अक्सर लोग समझ नहीं पाते। वे उसे तभी समझ पाते हैं जब बहुत कुछ खो चुके होते हैं और प्राप्ति के लिए वापस नि:शुल्क वस्तु की ओर ही लौटते हैं।
अक्सर हम सभी के साथ कभी न कभी ऐसा होता है जब जिंदगी बहुत उलझती-सी दिखाई देती है। अकेलापन मन को कचोटने लगता है। उस समय सब कुछ भूलकर नंगे पैर शांत मन से धरती पर टहलिए तो आप पाएंगे कि जिंदगी के उलझे समीकरण सहजता से सुलझने लगे हैं। अनेक उलझनों को जमीन पर टहलकर सरलता से सुलझाया जा सकता है। महान दार्शनिक रूसो का कहना है कि, ‘मैं केवल चलते हुए ही ध्यान लगा सकता हूं। मैं जब भी रुकता हूं तो मेरा सोचना भी बंद हो जाता है।’ सोचने की गति पर विराम न लगे, उसमें नई-नई सकारात्मक बातें आएं इसलिए धरती पर टहलिए। जर्मन दार्शनिक फ्रेडरिक नीत्शे तो यहां तक कहते थे कि, ‘किसी भी ऐसे विचार पर विश्वास न करें, जो खुली हवा और किसी हरकत के बिना आया हो, जिसमें मांसपेशियों को आनंद न मिला हो।’
साधु-संत सदैव पृथ्वी के संसर्ग में ही धूनी रमाते हैं और तपस्या में रत रहते हैं। तपस्या कभी भी बिस्तर पर नहीं की जाती। पृथ्वी की कठोर आंच ऋषि-मुनियों के शरीर को वज्र जितना मजबूत बना देती है। ऋषि दधीचि को भला कौन भूल सकता है? उन्होंने वृत्रासुर का अंत करने के लिए अपनी अस्थियां दान कर दी थीं। उन्हीं अस्थियों से ऐसे अस्त्र का निर्माण हुआ जिससे वृत्रासुर का अंत हुआ।
एक अबोध शिशु माता के गर्भ से निकलने के बाद जब चलने लायक हो जाता है तो अपना पहला पांव ज़मीन पर ही रखता है। जब ज़मीन के साथ बालक के पांव टकराते हैं तो पृथ्वी उस पर अपना समूचा आशीर्वाद बरसाती है और उसके शुभ जीवन की कामना करती है।
टहलना भी एक ऐसी ही कला है जैसी बातचीत की, जैसी नृत्य की या फिर जैसी गायन की। बस इस कला को पृथ्वी की गोद में टहलते हुए ही महसूस किया जा सकता है। टहलने में एक सुर है, लय है, गति है। यह सुर, लय और गति व्यक्ति के अंदर शक्ति का संचार करती है। अब से प्रतिदिन पृथ्वी पर टहलने का समय जरूर निकालिए।

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