स्वराज से सुराज तक संविधान की अमृत यात्रा
भारत का संविधान अपने शानदार 75 वर्ष पूरे कर रहा है, भारत सरकार व देश ने 26 नवंबर से 26 जनवरी तक संविधान की हीरक जयंती मनाने का निर्णय किया है, 26 नवंबर को देश भर में संविधान दिवस के कार्यक्रम सम्पन्न हो रहे हैं।
देश का जन संविधान व संविधान की विशेषताएं, संविधान से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करेगा व अधिक जागरूकता के साथ जहां अपने अधिकारों व कर्तव्यों को समझेगा। वहीं, संविधान की ताक़त व संवेदनशील मुद्दों को भी आत्मसात् करेगा।
75 वर्ष की इस शानदार यात्रा में भारत एक सुदृढ़ लोकतांत्रिक देश के रूप में प्रतिष्ठित हुआ है। दुनिया के बहुत सारे देश भारत को अपने आदर्श के रूप में देखते हैं। आम भारतीय भी दुनिया के इस नजरिये से अपने को गौरवान्वित महसूस करता है। वहीं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 19 देशों का सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान मिलना, भारत के सम्मान का द्योतक है। संविधान की 75 वर्ष की यात्रा में संविधान ने अनेक प्रश्नों को झेला है। पुराने क़ानूनों का बोझ, बदलते युगानुरूप नये क़ानून, आपातकाल और उसमें नागरिक अधिकारों की अनुपस्थिति-लोकतंत्र का काला अध्याय, बार-बार तोड़ी गई विपक्षी सरकारें, अल्पमत सरकारों के संकट से संविधान सफलतापूर्वक गुजरा है, सदैव अपने नये कलेवर में संसाधनों के साथ, अधिक तेजस्विता के साथ उपस्थित हुआ है।
पिछले लोकसभा चुनाव में सर्वाधिक चर्चा में भारतीय संविधान ही था। विपक्ष द्वारा उठाई, संविधान की पुस्तक सर्वाधिक मीडिया की सुर्ख़ियां बनी। एक छद्म विमर्श उपस्थित किया गया संविधान बदलने का। जन मानस पर उसका असर भी दिखाई दिया। लेकिन आज सहज जागरूक नागरिक के रूप में हम भारत के लोग उस विमर्श से सत्य पर आ गये, क्योंकि सत्य हर विमर्श को ढाह देता है। सामयिक संशोधनों के साथ-साथ, भारत का संविधान अपने मौलिक स्वरूप में सदैव अवस्थित रहा है।
आज़ादी का सूरज उदय होने के समय, हमारे संविधान निर्माण के लिए भारतीय संविधान सभा के सदस्य जुलाई, 1946 में चुने गए थे। संविधान सभा की पहली बैठक दिसम्बर, 1946 में हुई थी। इसके बाद देश दो भागों भारत और पाकिस्तान में बंट गया था। संविधान सभा भी दो हिस्सों में बंट गई - भारत की संविधान सभा और पाकिस्तान की संविधान सभा। भारतीय संविधान लिखने वाली सभा में 299 सदस्य थे जिसके अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे। संविधान सभा ने 26 नवम्बर, 1949 में अपना काम पूरा कर लिया। इसी संविधान प्रारूप लेखन समिति के अध्यक्ष डॉ. बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर जी ने संविधान की पहली प्रति संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी को समर्पित की। 26 जनवरी, 1950 को हमारा यह संविधान लागू हुआ। इसी दिन की याद में भारत में हर वर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं। जो एक महान पर्व बन गया है। भारतीय संविधान को पूर्ण रूप से तैयार करने में 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन का समय लगा था।
भारत के संविधान का मूल आधार ब्रिटिश भारत सरकार अधिनियम 1935 को माना जाता है। इस में लगभग 250 अनुच्छेद इस अधिनियम से लिये गए हैं। भारत का संविधान विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लम्बा लिखित संविधान है। दुनिया में शासन बनते ही शासन चलाने के नियम बनाने पड़े, यही नियम आज दुनिया के देशों में संविधान के रूप में है। सदैव एक ही प्रकार के नियमों से संचालन संभव नहीं है, स्थिति के बदलाव के साथ ही नियमों में बदलाव आवश्यक है। हमारे संविधान निर्माताओं ने संविधान संशोधन का प्रावधान तय किया।
संविधान निर्माण के समय मूल संविधान में 395 अनुच्छेद जो 22 भागों में विभाजित थे, इसमें केवल 8 अनुसूचियां थीं। भारतीय संविधान में वर्तमान समय में भी 448 अनुच्छेद, तथा 12 अनुसूचियां हैं और ये 25 भागों में विभाजित हैं।
हमारे संविधान ने अपने मूल रूप में स्थापित रहते हुए, आवश्यक बदलावों को सहज अंगीकार किया है। इन 75 वर्षों में स्वराज से सुराज की यात्रा भारत के संविधान ने की है। नागरिक अधिकारों की सुरक्षा की है। सहजता से शासन के बदलाव की परम्परा को क़ायम किया है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता को अखंड रखा है।
भारत के लोगों का संविधान पर विश्वास प्रगाढ़ हुआ है। हम भारत के लोग अपने संविधान के माध्यम से भारत के सम्पूर्ण प्रभुता सम्पन्न राष्ट्र, मज़बूत लोकतंत्र, सर्वधर्म समभाव, अंतिम व्यक्ति की प्रगति के विशेष अवसरों के साथ-साथ विषमता आर्थिक व सामाजिक विषमता समाप्त करने और राष्ट्र के रूप मे एक विकसित राष्ट्र बनाने में कामयाब हो रहे हैं। भारत के संविधान की देखरेख भारत की अमृत पथ यात्रा की ओर अग्रसर है। संविधान के हर पहलू पर विशेष अध्ययन के रूप में इस हीरक जयंती को हम मनायें।
लेखक हरियाणा के पूर्व मंत्री हैं।