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संविधान में योगदान देने की संघर्ष गाथा

05:31 AM Nov 26, 2024 IST
संविधान में योगदान देने की संघर्ष गाथा
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भूपेन्द्र सिंह हुड्डा

इसे सुखद संयोग ही कहा जाएगा कि भारत की संविधान सभा के सदस्य के रूप में चुने गए चौधरी रणबीर सिंह का जन्म 26 नवंबर, 1914 को रोहतक जिले के सांघी गांव के एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। संयोगवश उनके जन्मदिन को पूरे भारत में संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। हमारा संविधान 26 नवंबर, 1949 को भारत की संविधान सभा द्वारा अपनाया गया और 26 जनवरी, 1950 को यह लागू हुआ था। उस समय 33 वर्ष की आयु वाले चौधरी रणबीर सिंह संविधान सभा के सबसे कम उम्र के सदस्यों में से एक थे। भारत के संविधान की मूल प्रति पर जिन 283 सदस्यों के हस्ताक्षर हैं, उनमें से एक हस्ताक्षर चौधरी रणबीर सिंह के भी हैं। वे असाधारण व्यक्तित्व वाले भाग्यशाली व्यक्ति थे।
इसे ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े एक बालक की अद्वितीय और प्रेरणादायक उपलब्धि ही कहा जाएगा, जो बेहद चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में बड़ा हुआ। उन्होंने अपने कठोर परिश्रम और दृढ़ संकल्प के माध्यम से राष्ट्रीय राजनीतिक क्षितिज पर अलग जगह बनाई। उन्होंने डॉ. राजेंद्र प्रसाद, पंडित जवाहर लाल नेहरू, डॉ. बीआर अंबेडकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, गोपीनाथ बोरदोलोई, कृष्णस्वामी अय्यर, केएम मुंशी जैसे महान दिग्गजों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया।
चौधरी रणबीर सिंह का जीवन स्वतंत्रता संग्राम और हमारे राष्ट्र निर्माण के इतिहास के एक अविस्मरणीय अध्याय है। राष्ट्र के लिए उनके योगदान को प्रचलित सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ और उनके समय को आकार देने वाली असाधारण राजनीतिक उथल-पुथल में समझने की जरूरत है। यद्यपि इस लेख के दायरे और स्थान की बाधाओं के कारण उनके बहुआयामी जीवन के सभी पहलुओं को समेटना असंभव है, फिर भी मैंने कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
अपने देशभक्त पिता चौ. मातू राम के आशीर्वाद और प्रेरणा से दिल्ली के प्रतिष्ठित रामजस कॉलेज से स्नातक करने के बाद वे महात्मा गांधी के नेतृत्व में चल रहे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। उन्होंने 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रही के तौर पर अपनी पहली गिरफ्तारी दी, उसके बाद उन्हें आठ बार अलग-अलग मौकों पर कैद किया गया। उन्होंने रोहतक, अम्बाला, फिरोजपुर, मुल्तान, सियालकोट और लाहौर की आठ अलग-अलग जेलों में अपनी युवावस्था के लगभग साढ़े तीन साल कैद में बिताए। ब्रिटिश जेलों की यातनाएं और अत्याचारों ने उन्हें हीरे की तरह तराशकर चमकदार बना दिया। जीवन के प्रति उनकी सोच और विचार, प्रतिबद्धता स्वतंत्रता आंदोलनों के मूल्यों और आदर्शों से काफी प्रभावित थी, जिसे उन्होंने जीवन भर बनाये रखा। देश को आजादी मिलने के बाद उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में राष्ट्र निर्माण के कार्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
चौ. रणबीर सिंह को अपने तीन दशक से अधिक के राजनीतिक जीवन में सात विभिन्न प्रतिनिधि सदनों के लिए चुने जाने का अनोखा गौरव भी हासिल है। उन्होंने संविधान सभा (विधायी), अंतरिम संसद, द्वितीय लोकसभा, पंजाब विधानसभा, हरियाणा विधानसभा और राज्यसभा के सदस्य के तौर पर काम किया। वे पंजाब और हरियाणा सरकारों में मंत्री थे। वर्ष 1963 में जब प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भाखड़ा बांध राष्ट्र को समर्पित किया था, तब वे पंजाब में सिंचाई और बिजली मंत्री थे।
अपने पूरे विधायी जीवन में, वे समस्याओं के प्रति अपने व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए जाने जाते थे, जो गांधीवादी दृष्टिकोण और गंभीरता के भाव से ओतप्रोत होता था। वे ग्रामीण भारत और गरीब किसानों की सशक्त और दुर्लभ आवाज़ थे। उन्होंने शब्दों के मायाजाल के बिना हमेशा अपनी राय सीधे, बेबाक और स्पष्ट तरीके से व्यक्त की।
उन्होंने संविधान सभा में किसानों की आमदनी पर आयकर लगाने के खिलाफ तथा कृषि उपज के लिए न्यूनतम आर्थिक मूल्य (एमएसपी) सुनिश्चित करने की जोरदार वकालत की, ताकि किसानों के जीवन में स्थायित्व आ सके। उन्होंने कानून के जरिये कृषि बीमा की भी मांग उठाई। वे अपने पूरे राजनीतिक जीवन में ग्रामीण क्षेत्रों तथा किसानों के मुद्दों को जोश और पूरी ताकत के साथ उठाते रहे।
प्रशासनिक कुशलता के लिए संयुक्त प्रांत के विभाजन पर बहस में हिस्सा लेते समय चौ. रणबीर सिंह ‘भविष्य के सपने देखने वाले विश्वव्यापी भविष्यवक्ता’ साबित हुए। उन्होंने 1949 में संविधान सभा में कहा था कि ‘भविष्य में पंजाब को भी दो भागों (पंजाब और हरियाणा) में विभाजित किया जा सकता है और मुझे आशा है कि जब ऐसा होगा तो इसके हिंदी भाषी क्षेत्रों को संयुक्त प्रांत के विभाजित हिस्से में मिलाकर एक इकाई बना दी जाएगी।’ उनकी यह भविष्यवाणी 1966 में तब साकार हुई जब भाषाई आधार पर पंजाब से अलग करके हरियाणा का निर्माण किया गया।
राजनीतिज्ञ के रूप में उनका जीवन सरल, दयालु, पुण्यात्मा तथा सौम्य स्वभाव का था। श्रीमती इंदिरा गांधी ने 17 फरवरी, 1959 को अपने पिता को पंजाब की यात्रा के बारे में एक पत्र लिखा था कि—
‘पंजाब सख्त लेकिन बेहद जीवंत भी था। कल्पना कीजिए! रोहतक में मेरे लिए एक लाख लोग मौजूद थे। अन्य सभाएं काफी अच्छी थीं, हालांकि, इतनी बड़ी नहीं थीं और चौधरी रणबीर सिंह ने मेरी देखभाल इस तरह से की जैसे मैं उनकी पोती हूं!’
श्रीमती सोनिया गांधी द्वारा संपादित ‘टू अलोन-टू टुगेदर’ नामक पुस्तक के कुछ अंश :-
जब मैं उन्हें याद करती हूं तो मुझे शेक्सपियर की कुछ पंक्तियां याद आती हैं :-
‘उनका जीवन सौम्य था, और उनमें सिद्धांत इतने घुले-मिले थे, कि प्रकृति स्वयं उठ खड़ी होती, और पूरी दुनिया से कहती, यह एक व्यक्ति था।’

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लेखक हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री हैं।

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