कानून बनने की कगार पर वक्फ संशोधन विधेयक
नयी दिल्ली, 2 अप्रैल (एजेंसी)
बहुचर्चित वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 कानून बनने की राह पर है। बुधवार आधी रात के बाद तक विधेयक पर पक्ष-विपक्ष के बीच तीखी बहस चली। बाद में वोटिंग को लेकर तकनीकी दिक्कत सामने आयी। लोकसभा में पारित होने के बाद इसे बृहस्पतिवार को राज्यसभा में पेश किया जाएगा।
भाजपा की सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और नीतीश कुमार के जदयू ने विधेयक का समर्थन किया। इस बीच, चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी के तीन संशोधनों को स्वीकार कर लिया गया। वहीं, विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के घटक दलों ने इसका जोरदार विरोध किया।
केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने लोकसभा में विधेयक रखते हुए स्पष्ट किया कि इसके माध्यम से सरकार और वक्फ बोर्ड, मस्जिद समेत किसी धार्मिक संस्था के किसी धार्मिक कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि कुछ लोग कह रहे हैं कि सरकार मस्जिद, दरगाह और मुसलमानों की संपत्तियों को छीन लेगी, जो पूरी तरह गुमराह करने वाली बात है। उन्होंने साफ किया कि यह विधेयक पूर्वगामी प्रभाव से लागू नहीं होगा।
रिजिजू ने यह भी कहा कि सरकार वक्फ संशोधन विधेयक नहीं लाती तो संसद भवन समेत कई इमारतें दिल्ली वक्फ बोर्ड के पास चली जातीं और कांग्रेस के शासनकाल में वक्फ संपत्तियों का सही प्रबंधन होता तो केवल मुसलमानों की ही नहीं, बल्कि देश की तकदीर भी बदल जाती।
उन्होंने विपक्षी दलों के दावों को खारिज करते हुए कहा कि 1995 में जब कई संशोधनों के साथ व्यापक कानून बनाया गया था, तब किसी ने नहीं कहा था कि यह असंवैधानिक और गैरकानूनी है। रिजिजू ने कहा, ‘आज हम इसे सुधार कर ला रहे हैं तो यह असंवैधानिक लग रहा है।’
रिजिजू ने कहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले 2013 में तत्कालीन संप्रग सरकार ने कुछ ऐसे कदम उठाए, जिनसे कई संपत्तियां दिल्ली वक्फ बोर्ड के पास चली जातीं। उन्होंने कहा कि 2013 में वक्फ कानून में यह बदलाव किया गया कि इस देश में किसी
भी धर्म का व्यक्ति वक्फ बना सकता है।
प्रस्तावित प्रावधान
रिजिजू ने कहा कि विधेयक में महत्वपूर्ण प्रावधान रखा गया है कि महिलाओं और बच्चों के अधिकार सुरक्षित करके ही वक्फ बनाया जा सकता है। आदिवासियों की जमीन को वक्फ संपत्ति नहीं बना सकते। वक्फ वही बना सकता है, जिसने कम से कम पांच साल इस्लाम की ‘प्रैक्टिस’ की हो। वक्फ बोर्ड को धर्मनिरपेक्ष और समावेशी बनाया जा रहा है, जिसमें शिया, सुन्नी और बोहरा आदि सभी के प्रतिनिधि होंगे। इसमें पिछड़े मुसलमान, महिलाएं, गैर-मुस्लिम विशेषज्ञ भी रहेंगे। उन्होंने कहा कि इस कानून के लागू होने के बाद सबके मन में नये सवेरे की उम्मीद जागेगी और नये कानून का नाम भी ‘उम्मीद’ किया जा रहा है।
हर वर्ग के हितों की रक्षा होगी : जदयू जनता दल-यूनाइटेड (जदयू) के सांसद एवं पंचायती राज मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने वक्फ (संशोधन) विधेयक को उनकी पार्टी के पूर्ण समर्थन की घोषणा की। उन्होंने लोकसभा में कहा, ‘देश में ऐसा विमर्श गढ़ा जा रहा है कि यह विधेयक मुसलमान विरोधी है, जबकि हकीकत यह है कि मुस्लिम समुदाय के हर वर्ग के हितों की रक्षा होगी।
संविधान के मूल ढांचे पर आक्रमण : कांग्रेस
कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने आरोप लगाया कि एक विशेष समुदाय की जमीन पर सरकार की नजर है। उन्होंने कहा, ‘कानून को और मजबूत बनाने के लिए संशोधन होना चाहिए, लेकिन इस विधेयक से देश में समस्या बढ़ेगी, मसले बढ़ेंगे और मुकदमेबाजी भी बढ़ेगी। यह विधेयक संविधान के मूल ढांचे पर आक्रमण है। इसका मूल उद्देश्य संविधान को कमजोर करना, भ्रम फैलाना, अल्पसंख्यक समुदायों को अपमानित करना और भारतीय समुदाय को विभाजित करना है। मंत्री जी ने कहा कि विधेयक लाने से पहले विस्तार से चर्चा की गई, यह पूरी तरह से गुमराह करने वाली बात है।’ गोगोई ने अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय की 2023 में हुई चार बैठकों का विवरण पटल पर रखने की मांग करते हुए दावा किया कि उनमें से एक में भी नये संशोधन विधेयक का जिक्र तक नहीं किया गया था। उन्होंने कहा, ‘जितनी भी बार बैठक हुई, उनमें एक भी बयान नहीं है कि हमें एक नया वक्फ संशोधन विधेयक चाहिए। नवंबर 2023 तक मंत्रालय ने वाजिब ही नहीं समझा कि नया विधेयक लाने की जरूरत है, तो इस विधेयक को किसने बनाया, यह कहां से आ गया?’ उन्होंने कहा कि संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के बारे में कहा जा रहा है कि उसमें सबकी राय सुनी गई। लेकिन विपक्ष के एक भी संशोधन को स्वीकार नहीं किया गया।
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अदालत में चुनौती देगा पर्सनल लाॅ बोर्ड
नयी दिल्ली : देश में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रमुख संगठन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि वह वक्फ (संशोधन) विधेयक को अदालत में चुनौती देगा। बोर्ड ने इसे एक ‘काला कानून' करार दिया और इसे समुदाय के अधिकारों को खतरे में डालने वाला बताया। बोर्ड के सदस्य मोहम्मद अदीब ने संवाददाता सम्मेलन में विधेयक की आलोचना करते हुए दावा किया कि यह मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों को जब्त करने का प्रयास है। उन्होंने कहा, ‘यह नहीं माना जाना चाहिए कि हम लड़ाई हार गए हैं। हमने अभी शुरुआत की है। यह देश को बचाने की लड़ाई है, क्योंकि प्रस्तावित कानून भारत के मूल ढांचे को खतरे में डालता है।'
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