Navratri Special : भगवान शिव ने लौटाई थी महागौरी की चमक, जानिए दिलचस्प कथा
चंडीगढ़, 5 अप्रैल (ट्रिन्यू)
Navratri Special : नवरात्रि में महागौरी की पूजा विशेष महत्व रखती है। महागौरी देवी की आठवें रूप में पूजा की जाती हैं। इनकी पूजा का उद्देश्य जीवन में शांति, सुख और समृद्धि की प्राप्ति होता है। महागौरी की उपासना से न केवल शारीरिक सुख मिलता है, बल्कि मानसिक शांति और आत्मिक उन्नति भी होती है। वे भक्तों के सभी संकटों को हरने वाली, शुभ और मंगलकारी देवी हैं। मां का आशीर्वाद पाने से जीवन में समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है।
महागौरी का रूप और महत्व
महागौरी का रूप अत्यंत सुंदर और आकर्षक है। उनकी चार भुजाएं होती हैं। एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे हाथ में डमरू, तीसरे हाथ में वरमुद्रा और चौथे हाथ में अभय मुद्रा होती है। महागौरी के शरीर का वर्ण अत्यंत श्वेत और आभायुक्त होता है। देवी महागौरी का स्वरूप परम पवित्र और शुभ है। उनके दर्शन हर किसी के लिए पुण्य और शांति का कारण बनता है।
वे सम्पूर्ण ब्रह्मांड की एक शक्ति के रूप में जानी जाती हैं और उनकी पूजा से समस्त नकारात्मकता दूर होती है। महागौरी का नाम महागौरी इसलिए पड़ा क्योंकि वे अत्यधिक गोरी और दिव्य रूप से प्रकाशित हैं। 'महागौरी' शब्द का अर्थ है – 'महान' और 'गोरी', अर्थात वे अत्यधिक शुभ और मंगलकारी हैं। इस रूप में देवी की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है।
महागौरी की पूजा का महत्व
महागौरी की पूजा का विशेष महत्व है क्योंकि यह रूप देवियों के नवद्रव्य, भक्तों के दुखों को नष्ट करनेवाला और तपस्वियों के लिए अत्यधिक फलदायी है। नवरात्रि के 8वें दिन विशेष रूप से महागौरी की पूजा की जाती है, जिससे मानसिक शांति, सुख-समृद्धि और सुखमय जीवन की प्राप्ति होती है। इस दिन देवी की पूजा से भक्ति, प्रेम और समर्पण की भावना विकसित होती है।
महागौरी की कथा
महागौरी से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा है, जिसमें भगवान शिव ने देवी पार्वती को उनके कठिन तपस्या के बाद आशीर्वाद दिया। पहले देवी पार्वती का रूप काले रंग का था क्योंकि उन्होंने कड़ी तपस्या की थी। एक दिन भगवान शिव ने उन्हें स्नान कराया और उनके रूप को सुधारा। इससे वे अत्यधिक गोरी और सुंदर हो गईं। इस रूप में देवी महागौरी का रूप प्रकट हुआ, जो ब्रह्मांड के लिए शुभ और मंगलकारी था।
महागौरी का स्तोत्र पाठ
सर्वसंकट हंत्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदीयनीम्।
डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।
वददं चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥