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लोकतंत्र को शक्ति दे मतदाता

06:56 AM Apr 01, 2024 IST

योग्य प्रत्याशी चुनें

मतदान लोकतंत्र का महान पर्व है लेकिन बीते सालों में जिस तरह इसमें विषमताएं उभरी हैं उससे इसकी पवित्रता पर उंगलियां उठी हैं। राजनेता पांच साल अपने क्षेत्रों की सुध नहीं लेते। चुनाव आते ही जनसेवक बनने का ढोंग रचने लगते हैं। चुनाव के समय बड़े-बड़े वादों से नैया पार लगती नहीं दिखती तो अन्य तरीकों से वोटों की खरीद-फरोख्त कर अपना स्वार्थ साधने लग जाते हैं। ऐसे में मतदाताओं के ईमान की कड़ी परीक्षा होती है। अगर मतदाता स्वाभिमानी रहे और योग्य प्रत्याशी को ही मत दे तो चुनावों को इस तरह के हीन हथकंडों से निजात मिल जाएगी।
अमृतलाल मारू, इंदौर, म.प्र.
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मतदान की शक्ति

लोकतंत्र में मतदाता को अधिकार है कि वे समानता, स्वतंत्रता और न्याय के मूल्यों को साधने, अपने विचारों को प्रकट करने के लिए ऐसे प्रत्याशी चुनें जो देश के भविष्य को सुदृढ़ और न्यायसंगत बनाने के लिए ऐसी स्थायी सरकार दे जो संकल्प, विश्वास और कार्य से देश का कल्याण कर सके। ऐसे नेता देश को मिलें जो जवाबदेही लेने को तैयार हों, इसलिए सभी मतदाताओं को अपने विवेक से मतदान कर लोकतंत्र को ताकतवर बनाना होगा।
भगवानदास छारिया, इंदौर, म.प्र.

परीक्षा की घड़ी

लोकतंत्र में विधानसभा चुनावी बिगुल बजते ही मतदाता की परीक्षा की घड़ी शुरू हो जाती है। लोकतंत्र की मजबूती में उसकी स्वस्थ मानसिकता, कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी के कीमती वोट से ऐसे जनप्रतिनिधियों का चुनाव करना चाहिए जो धर्मनिरपेक्ष जाति-क्षेत्रवाद विचारधारा से ऊपर राष्ट्रहित को प्राथमिकता देने वाले संवैधानिक मूल्य पालक, जनसेवक हों। चुनावी मैदान में उतरे उम्मीदवारों की सामाजिक चारित्रिक निष्ठा का मूल्यांकन विगत आगत कसौटी पर कसते हुए मतदाता को अपनी वोट शक्ति का उपयोग करना चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
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तार्किक आधार पर मत

आम चुनाव की घोषणा हो गई है। प्रत्येक दल के नेता अपनी उपलब्धियों का बखान करने में जुट गए हैं। मतदाताओं का नैतिक कर्तव्य बनता है कि वह सही-गलत का फर्क करके तार्किक आधार पर मत का प्रयोग करें। भारतीय राजनीति में यह विडंबना ही है कि अमृत काल से गुजरते देश में मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग विष और अमृत के भेद को पूरी तरह महसूस नहीं कर पाया है। लोकतंत्र में पारदर्शिता, शुचिता और योग्य प्रतिनिधियों का चयन एक सार्वकालिक सत्य है। मतदाताओं को अपने वोट की कीमत समझकर इस बदलाव के अस्त्र रूप में प्रयोग करना चाहिए।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली

संकुचित मानसिकता से ऊपर

चुनावी बिगुल के साथ ही मतदाताओं के लिए ऐसे जन-प्रतिनिधि चुनने का अवसर आया है जो कि जाति पाति, धर्म, भाषा तथा क्षेत्रीयता की संकुचित मानसिकता से ऊपर हो। बावजूद इसके चुनाव में विभिन्न राजनीतिक दल जाति-पाति, भाषा, क्षेत्रीयता, धर्म आदि को ध्यान में रखकर अपने-अपने उम्मीदवार चुनावी रण में‌ उतारते हैं। इस प्रकार की भावनाओं से लड़े गए चुनाव लोकतंत्र को कमजोर करते हैं। मतदाताओं को लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए संकुचित मानसिकता से ऊपर उठकर जन-प्रतिनिधि चुनने चाहिए। तभी लोकतंत्र मजबूत होगा।
शामलाल कौशल, रोहतक

पुरस्कृत पत्र
मतदाता की जागरूकता

मतदान को लोकतंत्र की नींव और मतदाता को इसकी रीढ़ कहा जाता है। येन-केन प्रकारेण सत्ता में बने रहने या हथियाने में लगे राजनीतिज्ञों ने लोकतंत्र की अवधारणा को उपहास का पात्र बना दिया है। प्रत्याशियों की पात्रता के सम्यक आकलन में दक्ष मतदाता ही लोकतंत्र की गरिमा का रक्षक हो सकता है। राजनीति में व्याप्त धनबल और बाहुबल की दुरभिसंधि को मतदाता ही तोड़ सकता है। विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा अपने घोषणा पत्रों में किए गए वादों की व्यावहारिकता और धन उपलब्धता के बारे में जानकारी हासिल करना मतदाता का हक है। यानी मतदाता की जागरूकता ही लोकतंत्र की असल शक्ति है।
ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल

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