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यातनाओं से मुखर महिला हकों की आवाज

06:20 AM Oct 13, 2023 IST
यातनाओं से मुखर महिला हकों की आवाज
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कविता संघाइक

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उन्होंने उस दकियानूसी समाज के बीच में रहकर महिलाओं के हक-ओ-हुकूक की लड़ाई लड़ी जहां जुबां से दो बोल भी खिलाफत में कहना मौत के घाट उतार दिए जाने का कारण बन जाए। महिला अधिकारों के लिए जान की भी परवाह न करने वाली इस महिला का जज्बा ही है कि वे एक-दो बार नहीं, पूरे 13 बार गिरफ्तार हो चुकी हैं। गलत को गलत कहने वाली यह महिला अब भी जेल में हैं। ईरान की रहने वाली नरगिस मोहम्मदी इन दिनों सुर्खियों में इसलिए हैं कि उन्हें शांति के लिए विश्व के सर्वोच्च नोबेल पुरस्कार से नवाजे जाने की घोषणा हुई है। शांति का पुरस्कार जीतने वाली वह 19वीं महिला हैं। ईरान की यह महिला पत्रकार और एक्टिविस्ट नरगिस मोहम्मदी बड़े लंबे अरसे से ईरान में महिलाओं की आजादी और उनके अधिकारों के लिये लड़ रही हैं। ईरान में छोटी-छोटी बातों पर मौत की सजा दिये जाने के खिलाफ लड़ने वाली नरगिस भी मौत के साये में जी रही हैं।
नरगिस का जन्म कुर्दिस्तान यानी ईरान के जंजन शहर में 21 अप्रैल, 1972 को हुआ था। उनके पिता एक किसान थे और मां राजनीतिक परिवार से थीं। वर्ष 1979 में ईरान में हुई इस्लामिक क्रांति के बाद उनके चाचा और 2 चचेरे भाइयों को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था। एक इंटरव्यू में नरगिस ने कहा था कि वे तब 9 साल की थीं। ईरानी सरकार रोज किसी न किसी कैदी को फांसी देती थी, जिसका नाम टीवी पर बताया जाता था। एक दिन टीवी पर उनके भाई का नाम भी बताया गया। यही वह पल था जब नरगिस ने देश में मृत्युदंड को खत्म करने के लिए अभियान चलाने का फैसला लिया।
मानवाधिकार कार्यकर्ता नरगिस के संघर्ष की कहानी बहुत लंबी है। उनके जीवन में पग-पग पर कठिनाइयां रही हैं। छोटी-सी कठिनाई में भी कोई आम इंसान अपने कदम खींच लेता है, लेकिन नरगिस तो जैसे किसी और मिट्टी की बनी हैं तभी तो 13 बार गिरफ्तार हो चुकी हैं, पांच बार दोषी ठहरायी जा चुकी हैं और 31 साल की जेल और 154 कोड़ों की सजायाफ्ता हैं। नरगिस को अंतिम बार जहां से गिरफ्तार किया गया वह कार्यक्रम उन लोगों की याद में आयोजित किया गया था जो लोग 16 नवंबर, 2019 में तेहरान में सरकार के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शन में सरकारी गोली का निशाना बने थे। इधर उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई, उधर परिवार तो खौफजदा है ही। परिवार तो उम्मीद ही खो चुका है कि कभी जेल से रिहा भी हो पाएंगी। नरगिस कहती हैं कि वे जितनी यातनाएं देंगे मैं उतनी मजबूत बनूंगी।
नरगिस मोहम्मदी ने यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान छात्र समाचारपत्र में महिलाओं के अधिकारों का समर्थन करने वाले लेख लिखे और राजनीतिक छात्र समूह ताशक्कोल दानेशजुयी रोशनगरान की दो बैठकों में हिस्सा लिया। इस कारण वह कट्टरपंथी शासन के निशाने पर आ गयीं। मोहम्मदी एक पर्वतारोहण समूह में भी सक्रिय थीं, लेकिन उनकी राजनीतिक गतिविधियों के कारण बाद में उन्हें पर्वतारोहण में शामिल होने से प्रतिबंधित कर दिया गया। नरगिस ने न्यूक्लियर फिजिक्स की पढ़ाई की है और कुछ समय के लिए बतौर इंजीनियर काम भी किया। पढ़ाई के दौरान ही नरगिस की मुलाकात पत्रकार ताघी रहमानी से हुई। वे खुद भी पत्रकारिता से जुड़ीं और कई अखबारों, पत्रिकाओं के लिये लेख लिखे। वर्ष 1999 में, उन्होंने साथी व सुधार-समर्थक पत्रकार ताघी रहमानी से शादी की, जो कुछ ही समय बाद पहली बार गिरफ्तार किए गए थे। कुल 14 साल की जेल की सजा काटने के बाद रहमानी 2012 में फ्रांस चले गए, लेकिन मोहम्मदी ने अपना मानवाधिकार कार्य जारी रखा। मोहम्मदी और रहमानी के जुड़वां बच्चे हैं। 18 महीनों से नरगिस की अपने बच्चों से बात तक नहीं हुई है।
नरगिस पहली बार 1998 में गिरफ्तार की गई थीं। तब उन पर ईरान सरकार की निंदा का आरोप लगा था। एक साल में ही उन्हें छोड़ दिया गया था। इसके बाद 2010 में डिफेंडर ऑफ ह्यूमन राइट्स सेंटर की सदस्य होने पर इस्लामिक रिवोल्यूशनरी कोर्ट ने उन्हें तलब किया और फिर उनकी गिरफ्तारी हुई। जुलाई, 2011 में मोहम्मदी को दोबारा राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ काम करने, डिफेंडर ऑफ ह्यूमन राइट्स में काम करने और सरकार के खिलाफ प्रोपेगेंडा चलाने के आरोप में फिर जेल में डाला गया। इस बार नरगिस को 11 साल की सजा मिली, हालांकि बाद में यह सजा घटाकर 6 साल की गई। तब अंतर्राष्ट्रीय समुदाय उनके समर्थन में आ गया था, जिसके दबाव में ईरान सरकार को 2012 में उन्हें छोड़ना पड़ा।
अपनी किताब व्हाइट टॉर्चर में नरगिस ने एकांतवास की भयावहता के बारे में लिखा है। नरगिस लिखती हैं कि जेल वह जगह है जहां आप तक रोशनी की एक किरण तक नहीं पहुंचती। यहां चार सफेद दीवारों और छोटे दरवाजे के अंदर आपको केवल अपनी आवाज़ सुनाई देती है, बाहर से हवा भी यहां का रुख़ नहीं करती। जेल में कैद होने के बावजूद नरगिस ने अपना काम नहीं छोड़ा। वो जेल के भीतर से कैदियों की स्थिति, हिंसा और महिलाओं के प्रति अत्याचार जैसे कई मुद्दों पर लिखती रही हैं।
अप्रैल, 2022 में उन्होंने न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार को जेल के अंदर से ही फोन पर एक गुप्त इंटरव्यू दिया था। इसमें उन्होंने कहा था, ‘मैं हर दिन खिड़की के सामने बैठती हूं, हरियाली को देखती हूं और एक स्वतंत्र ईरान का सपना देखती हूं।’ यूं तो दुनिया पहले से नरगिस के संघर्षों को जानती रही है, लेकिन आज नोबेल पुरस्कार से नवाजे जाने की खबर जब सामने आई तो दुनियाभर के लोगों, खासतौर से महिला अधिकारों के लिए लड़ने वालों ने इस पर प्रसन्नता व्यक्त की। उम्मीद की जानी चाहिए कि नरगिस जल्दी ही सलाखों से बाहर आएंगी।

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