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स्मृतियों के जीवंत बिंब

07:14 AM Mar 18, 2024 IST
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संजय व्यास

इतालो कल्विनो की मशहूर किताब ‘इनविजिबल सिटीज़’ बहुत समय से मेरे पास है। किताब को मैंने अपने मुताबिक इस तरह बनाया है कि इसे जब इच्छा होती है कहीं से भी पढ़ सकता हूं। इसमें मार्को पोलो बहुत सारे शहरों के बारे में बताता है। हालांकि, वो तमाम शहरों के हवाले से सिर्फ़ अपने शहर वेनिस की बात ही कर रहा होता है, पर मैं तमाम कल्पित शहरों के टुकड़े-टुकड़े वृत्तांतों को भी फंतासी की तरह पढ़ना पसंद करता हूं। मेरी यात्राओं में मैं एडेलमा जितना दूर कभी नहीं गया। ये गोधूलि का वक्त था जब मैंने वहां क़दम रखा। डॉक पर जिस जहाजी ने रस्सी खूंटे से बांधी थी वो उस आदमी से मिलता-जुलता था जिसने मेरे साथ फौज़ में नौकरी की थी और अब मर चुका था। ये वक्त थोक मच्छी बाज़ार का था। एक बूढ़ा आदमी सी-अर्चिन से भरी टोकरी गाड़ी में लाद रहा था। बुख़ार में तपते उस आदमी को देखकर मैं असहज हो गया जो ज़मीन पर खुद को सिकोड़ कर पड़ा था। उसके माथे पर कम्बल थी।
मैंने सोचा, ‘एडेलमा वो शहर है जो मैं सपने में देख रहा हूं और जिसमें आपकी मुलाक़ात मृत लोगों से होती है, तो ये सपना डरावना है। और अगर एडेलमा सचमुच का शहर है, ज़िंदा लोगों का, तो सिर्फ़ उनकी ओर देखते रहना है और मिलती-जुलती परिचित शक्लें अपने आप मिट जाएंगी, पीड़ा लिए अजनबी चेहरे उभर आएंगे। जो भी हो मेरे लिए सबसे ठीक यही है कि मैं उनकी तरफ़ न देखूं।’
सब्ज़ी-ठेले वाली गोभी तौल कर उसे उस टोकरी में रख रही थी जिसे एक लड़की ने अपने बालकनी से डोर के ज़रिये नीचे लटका रखा था। वो लड़की मेरे गांव की उस लड़की से हूबहू मिलती थी जिसने प्रेम में पागल होकर अपनी जान दी थी। सब्ज़ी बेचने वाली ने अपना चेहरा उठाया- वो मेरी दादी थीं। मैंने सोचा, ‘हरेक अपनी ज़िन्दगी में उम्र के उस पड़ाव पर ज़रूर पहुंचता है जब उसके अब तक के परिचित लोगों में ज्यादा संख्या उनकी होती है जो मर चुके होते हैं, और दिमाग़ इससे ज्यादा चेहरे और भाव याद रखने से मना कर देता है, हर नए सामने आने वाले चेहरे पर ये पुरानी शक्लें ही छाप देता है, हरेक के लिए ये उपयुक्त मुखौटा ढूंढ़ ही लेता है।
वैसे मुखौटों का क्या करें। जिंदों के शहर में जिंदादिली ही तो होनी चाहिए। पुराने लोगों की याद आए तो उनका भी किसी न किसी रूप में दिखना तो होता ही है।
साभार : संजयव्यास जोड डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम

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