जले नोटों का वीडियो जारी
नयी दिल्ली, 23 मार्च (एजेंसी)
दिल्ली हाईकोर्ट की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किए गये वीडियो ने दिल्ली अग्निशमन सेवा (डीएफएस) के इस दावे को झुठला दिया है कि 14 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर आग बुझाते समय अग्निशमन कर्मियों को कोई नकदी नहीं मिली थी। पुलिस आयुक्त संजय अरोड़ा द्वारा उपलब्ध कराया गया यह वीडियो दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय की प्रारंभिक रिपोर्ट के हिस्से के रूप में शनिवार रात सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया गया। इस वीडियो में दिल्ली अग्निशमन सेवा के कर्मी आग बुझाते दिख रहे हैं और आधे जले हुए नोटों की गड्डियां भी नजर आ रही हैं।
डीएफएस प्रमुख अतुल गर्ग ने शुक्रवार को दावा किया था कि 14 मार्च को आग लगने की घटना के दौरान अग्निशमन कर्मियों को जस्टिस वर्मा के आवास से कोई नकदी नहीं मिली। उन्होंने कहा था, ‘आग बुझाने के तुरंत बाद हमने पुलिस को सूचना दी और अग्निशमन कर्मियों का दल मौके से रवाना हो गया। अग्निशमन कर्मियों को अभियान के दौरान कोई नकदी नहीं मिली।’
वहीं, दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस उपाध्याय की रिपोर्ट में रुपयों की चार से पांच अधजली बोरियां बरामद होने की बात कही गयी है। चीफ जस्टिस के रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस प्रमुख ने 16 मार्च को उन्हें बताया कि जस्टिस वर्मा के निजी सचिव ने आग लगने की सूचना देने के लिए सबसे पहले पुलिस नियंत्रण कक्ष को फोन किया था। अग्निशमन सेवा को अलग से सूचित नहीं किया गया था। पीसीआर से संपर्क किये जाने के बाद, आग से संबंधित सूचना स्वत: दिल्ली अग्निशमन सेवा को भेज दी गई थी।
यह रिपोर्ट मिलने के बाद सीजेआई खन्ना ने शनिवार को जस्टिस वर्मा के खिलाफ आंतरिक जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित की है और निर्देश दिया है कि उन्हें कोई न्यायिक कार्य न
सौंपा जाए। वहीं, जस्टिस वर्मा ने कहा है कि घर के स्टोर रूम में उन्होंने या उनके परिवार के किसी सदस्य ने कभी नकदी नहीं रखी। दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को सौंपे जवाब में जस्टिस वर्मा ने कहा है कि उनके आवास से नकदी मिलने के आरोप उन्हें फंसाने और बदनाम करने की साजिश हैं।
न्यायिक प्रणाली में कम हो रहा लोगों का विश्वास : सिब्बल
न्यायिक प्रणाली के प्रति लोगों का विश्वास कम होने का दावा करते हुए राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने कहा है कि विकल्प तभी मिल सकते हैं जब सरकार और न्यायपालिका दोनों यह स्वीकार करें कि न्यायाधीशों की नियुक्ति सहित मौजूदा प्रणालियां कारगर नहीं रह गई हैं। सिब्बल ने एक साक्षात्कार में न्यायिक प्रणाली की ‘खामियों’ के बारे में उदाहरण दिया कि किस तरह जिला और सत्र न्यायालयों द्वारा ज्यादातर मामलों में जमानत नहीं दी जाती। सिब्बल ने पिछले साल इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव द्वारा दिए गए विवादास्पद बयान के मुद्दे का भी हवाला दिया।