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अजूबा

04:05 AM Mar 16, 2025 IST
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चित्रांकन : संदीप जोशी

पता नहीं क्या चमत्कार हुआ। परेश ने आंखें खोल दीं। लगता था भगवान ने उनकी सुन ली। खुशी के अतिरेक में वह चिल्लाये। उन दोनों ने डाक्टर को आलिंगनबद्ध कर दिया। खुशी से आंसुओं की गंगा-जमुना दोनों की आंखों से बहने लगीं।

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अनन्त शर्मा ‘अनन्त’
‘अरे तुम्हारी औकात क्या है? तुम्हारी शादी तो किसी स्कूटर मैकेनिक से होनी चाहिए। अरे बेड़ा गर्क हो उस शंभू का जिसने तुझ जैसी का रिश्ता लेकर मेरी मां के कान भरे। उस मुए ने ऐसा तेरा गुणगान किया कि मेरी मां तो फिदा ही हो गई तुम पर।’ अमिता और राहुल दोनों का झगड़ा हमेशा इसी बात पर रहता। 15 साल हो गए थे उन दोनों की शादी को, परंतु वह बच्चों की तरह लड़ते-झगड़ते। बहस करते एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश करते। बात-बात पर बहस करते, कभी-कभी तो बहस इतनी लंबी खिंच जाती कि पूरी-पूरी रात बीत जाती। उनकी बहस ही खत्म न होती। दोनों एक-दूसरे से प्रतियोगिता करते कि कहीं वह पीछे न छूट जाएं।
पहले तो लोगों ने सोचा, राहुल शराब बहुत पीता है। आखिर पति-पत्नी के बीच लड़ाई की कोई वजह तो होनी चाहिए। 90 प्रतिशत घरों में यही देखा है कि पत्नी की शिकायत रहती है कि पति बहुत शराब पीता है। शराब पी कर बहुत झगड़ा करता है परंतु इस प्रकार के पति-पत्नी तो शायद इस दुनिया में कुछेक दम्पतियों में थे, जिनके पास लड़ाई करने का कोई कारण न था।
मोहल्ले वाले तंग थे उन दोनों के रोज-रोज के झगड़े से। अमिता की पड़ोसन संगीता बोली, ‘बहन एक बात तो बताओ, तुम दोनों इतना क्यों लड़ते हो? क्या राहुल जी नशा करके तुम्हें पीटते हैं?’
अमिता बोली, ‘बहन यही तो बात है कि वह पीते नहीं। आदमी शराब पी कर झगड़ा करते हैं परंतु मेरे पति शराब बिलकुल नहीं पीते।’
संगीता बड़ी हैरान हुई, ‘अच्छा फिर किसलिए लड़ते हो?’
अमिता बोली, ‘बहन क्या बताऊं? हम इस धरती के ऐसे विचित्र प्राणी हैं जिनको एक-दूसरे की शक्ल पसंद नहीं। जैसे ही हम इकट्ठे होते हैं हम एक-दूसरे से लड़ने लगते हैं। मुझे तो लगता है हमारे दोनों के शरीर में से एक हवा निकलती है जो एक-दूसरे के दिमाग में उत्तेजना पैदा करती है जिससे दोनों लड़ना शुरू कर देते हैं।’
संगीता हैरान होकर बोली, ‘तो बहन बिलकुल ठीक कह रही हो तुम। क्या सचमुच ऐसा ही है? तब तो अजीब बीमारी है। कोई कारण नहीं तब भी तुम लड़ते जाते हो? तुम्हें तो किसी मनोचिकित्सक के पास दिखाना चाहिए।’
इसी तरह का जवाब राहुल को भी मिलता। राहुल को भी पता चल गया था कि जब दोनों में से लड़ाई-झगड़ने का कोई कारण नहीं तो वह क्यों लड़ते हैं।
न गृहस्थी के झगड़े चल ही रहे थे। न तो वह दंपति एक-दूसरे को तलाक देते थे न ही अलग होने की सोचते। कई बार वह सोचते कि वह एक-दूसरे से कभी नहीं झगड़ेंगे। वह प्रण करते परंतु ढाक के वही तीन पात। जब भी वह एक-दूसरे के सामने पड़ते, उनके बीच बड़ी-बड़ी जबरदस्त लड़ाई हो जाती।
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ज़िंदगी के झगड़े इसी तरह चल रहे थे कि समय कब उड़ता गया पता ही नहीं चला। पंद्रह साल हो गए थे दोनों की शादी को, परंतु दोनों को एक भी ऐसा दिन नसीब नहीं हुआ था जब दोनों का झगड़ा न हो। समय बीतता चला गया। पांच सालों के बाद परेश का जन्म हुआ। एक वर्ष के बाद जब उन दोनों को कोई खुशी प्राप्त नहीं हुई तो वे दौड़े-दौड़े डाक्टर के पास गए।
स्त्रीरोग विशेषज्ञ बोली, ‘पहले दोनों के सभी टेस्ट करवाने पड़ेंगे।’ दोनों के सभी टेस्ट किए गए। दोनों के सभी टेस्ट ठीक पाए गए। डाक्टर अनुभवी थी, बोली, ‘देखो राहुल व अमिता, जब दोनों के पूरे टेस्ट ठीक होते हैं तो फिर भी बच्चा नहीं होता तो हम कहते हैं कि दिमाग में कोई तनाव है जिससे पत्नी गर्भवती नहीं हो रही।’
खैर, वह लड़ते रहे। बच्चे के लिए प्रयत्न करते रहते। आखिर पांच सालों के प्रयास से उन दोनों को संतान-सुख का सौभाग्य प्राप्त हुआ। कुछ पल की खुशियां थीं। फिर उनका लड़ना शुरू हो गया था। जिनके मां-बाप लड़ते रहते हों उनके बच्चे मुरझाए से रहते थे। यही हाल परेश का था। परेश मुरझाया-सा रहता। मुंह लटका-सा रहता।
इन्ही दिनों अमिता की पड़ोसन संगीता का देहांत एकाएक हो गया। अमिता का मन एकाएक संसार से विरक्त हो गया। ‘क्या रखा है दुनिया में, क्यों लड़ते-झगड़ते हैं लोग एक-दूसरे से? जब एक दिन मरना है तो इतनी लड़ाई-झगड़े का क्या फायदा?’ अमिता का मन बहुत खराब हो गया।
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अमिता और राहुल दोनों श्मशान संगीता के शव के साथ गए। राहुल सोचने लगा, ‘क्यों लड़ते हैं, इस संसार में सब नाशवान है तो हम क्यों लड़ते हैं? यह पति-पत्नी भी एक अजीब किस्म का रिश्ता है। लड़ाई-झगड़ा, प्रेम-प्यार आदि का एक अजीब संयोग।’
अमिता बहुत डिप्रेशन में आ गई। राहुल को कहने लगी, ‘क्या ज़िंदगी है मेरी? मेरी तो किस्मत ही फूट गई थी तुम्हारे साथ शादी करके।’
बस फिर क्या था? दोनों में लड़ाई शुरू हो गई। दस साल का परेश गुमसुम बैठा था। बोला, ‘ममी-पापा लड़ो मत, मेरा सिर दर्द हो रहा है।’ परंतु दोनों के सिर पर शैतान सवार था। दोनों अभी भी लड़ने में व्यस्त थे। राहुल ने देखा कि परेश की आंखें मूंद गई और परेश बेहोश हो गया। परेश उन दोनों की जान था।
अमिता और राहुल इकट्ठे चिल्लाये, ‘परेश, क्या हो गया तुम्हें?’
डॉ. रोहित बोले, ‘क्या तुम्हारा बच्चे के सामने कोई झगड़ा हुआ था?’
‘हां, झगड़ा हुआ था’, अमिता और राहुल रोते-रोते बोले।
राहुल बोला, ‘डाक्टर साहब, कब तक होश में आएगा मेरा बेटा?’
डाक्टर बोला, ‘मुझे नहीं पता कब होश में आएगा। ऐसे केसों में कुछ कहा नहीं जा सकता। कभी-कभी बहुत जल्दी होश में आ जाता है बच्चा।’ परेश बेहोश था।
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दस साल का हो गया था परेश। सेकंड क्लास में पढ़ता था परेश। परेश कुछ बुझा-बुझा सा रहता। बड़ी मुश्किल से परेश हुआ था। डाक्टरों के पास धक्के खाते हुए। लड़ाई-झगड़ते हुए। वह दोनों जितना लड़ते उतना ही प्यार परेश के साथ था। एक दिन परेश ने कहा भी था, ‘पापा-पापा, हमारी क्लास के ममी-पापा हंसते-हंसते आते हैं, खुशी-खुशी आते हैं लेकिन ममी-पापा आप कभी खुश नहीं होते। क्या बात है? मैं चाहता हूं कि आप भी दूसरे मां-बाप की तरह खुश रहें। आप दोनों खुश रहेंगे तो मैं भी खुश रहूंगा।’ परेश ने कितनी ही चेतावनियां दीं। परंतु राहुल और अमिता को नहीं मानना था, नहीं माने। उनका बेटा परेश बचपन में ही बूढ़ा हो गया था। उन बच्चों की नियति बड़ी ही खतरनाक हो जाती है जिनके मां-बाप लड़ते रहते हैं।
अमिता को न जाने क्या हुआ, वह राहुल की बांहों में फूट-फूट कर रोने लगी। रोते-रोते बोली, ‘राहुल, मैं आग लगा दूंगी सारी दुनिया को अगर मेरे बेटे को कुछ हो गया।’
राहुल बड़ा हैरान हुआ। कहां तो वह चौबीसों घंटे लड़ते रहते थे। एक-दूसरे को फूटी आंखों नहीं सुहाते थे। उसे दु:ख तो था, परंतु एक खुशी इस बात की हुई कि घमंड के देवता अमिता की आंखों में आंसू आ गए।
परेश अभी भी बेहोश था। राहुल और अमिता दोनों एक स्वर में बोले, ‘किस कुघड़ी में हम दोनों की लड़ाई हुई थी। हे भगवान! मेरे बेटे को होश में ला दो। हम दोनों भगवान की सौगंध खाकर कहते हैं, हम कभी नहीं लड़ेंगे।’
वह दोनों रोने लगे, डाक्टर को बोले, ‘डाक्टर हमारा बच्चा कब तक होश में आएगा?’
डॉ. बोले, ‘राहुल मैंने तो पहले ही कहा था बच्चे के दिमाग पर भारी सदमा लगा है। बच्चा कोमा में चला गया है। हम भी नहीं बता सकते कि कब तक आपका बच्चा कोमा से बाहर आए।’
राहुल और अमिता रोते-रोते बोले, ‘हे भगवान! परेश के बिना हम नहीं जी सकते। हम सौगंध खाते हैं। एक बार मेरे बेटे परेश को कोमा से बाहर निकाल दो। मैं कसम खाता हूं कि हम कभी नहीं लड़ेंगे।’
पता नहीं क्या चमत्कार हुआ। परेश ने आंखें खोल दीं। लगता था भगवान ने उनकी सुन ली। खुशी के अतिरेक में वह चिल्लाये। उन दोनों ने डाक्टर को आलिंगनबद्ध कर दिया। खुशी से आंसुओं की गंगा-जमुना दोनों की आंखों से बहने लगीं।
परेश होश में आते ही बोला, ‘पापा, ममी, मैं कहां हूं?’
‘आप हॉस्पिटल में हो, बीमार पड़ गए थे। बेटा, बड़ी मुश्किल से ठीक हुए हो।’
‘पापा-ममी, आप अब तो नहीं लड़ोगे न?’
‘नहीं बेटे, नहीं, नहीं’, वह समवेत शब्द में बोल पड़े और दोनों कान पकड़कर उठक-बैठक करने लगे। परेश खिलखिला कर हंस उठा।
रात हो रही थी। वह भी हॉस्पिटल से छुट्टी करके लौट रहे थे। शादी के बाद आज वह सबसे ज्यादा खुश थे।
उस दिन के बाद किसी ने उन्हें लड़ते-झगड़ते नहीं देखा।
पड़ोसियों को लगा, जैसे एक अजूबा हो गया हो।

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