अनूठा नामकरण संस्कार
एक बार की बात है, राजा महेंद्र प्रताप ने वृंदावन में एक यज्ञ के आयोजन का मन बनाया। राजा ने अपने सभी मित्रों, नाते-रिश्तेदारों को कार्यक्रम में शामिल होने का निमंत्रण भेजा। कहा गया कि वे अपने पुत्र के नामकरण संस्कार में इस यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए निमंत्रित कर रहे हैं। निमंत्रण पत्र पर आचार्य के रूप में महामना मदनमोहन मालवीय के उपस्थित होने की बात कही गई थी। नामकरण समारोह में शामिल होने के लिए नियत तिथि पर सभी अतिथिगण यज्ञ स्थान पर पहुंचे। सभी हैरान थे, क्योंकि उस समय तक राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हुई थी। तब फिर नामकरण किसका किया जाएगा। सभी जानने को उत्सुक थे। अतिथियों ने अपना आसन ग्रहण किया। तदुपरांत समारोह में उपस्थित मालवीय जी अपने आसन से उठे और उन्होंने घोषणा की, ‘राजा साहब ने पुत्र के रूप में एक विद्यालय को जन्म दिया है, आज उसी का नामकरण किया जाना है।’ यह सुनते ही सारा वातावरण तालियों से गूंज उठा। वृंदावन स्थित इस विद्यालय का नाम प्रेम महाविद्यालय रखा गया।
प्रस्तुति : डॉ. मधुसूदन शर्मा