प्रकृति और अध्यात्म मिलन का अनूठा संगम
08:36 AM Jan 15, 2024 IST
पूरी दुनिया में बसे हिंदू और हिंदू सनातन संस्कृति पर आस्था रखने वाले हर साल दुनिया के कोने-कोने से लाखों लोग प्रयाग के माघ मेले में अपनी तरह-तरह की मनोकामनाओं को लेकर आते हैं। हज़ारों धर्म और संस्कृति के विदेशी अध्येता इस मिनी कुंभ मेले में यह देखने आते हैं कि कैसे हजारों सालों से इस धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन के प्रति लोगों की अटूट श्रद्धा बनी हुई है। अनेक विदेशी विश्वविद्यालयों के धर्म संबंधी सांस्कृतिक अध्येता इस मेले में विशिष्ट संस्कृति का अध्ययन करने के लिए आते हैं तो देश के भी कोने-कोने से आम लोग इस मेले में हिस्सा लेने के लिए आते हैं। निःसंदेह बड़े पैमाने पर विदेशी मीडिया की भी इस सांस्कृतिक मेले को कवर करने को लेकर उत्सुकता रहती है, इसलिए वो भी मेला शुरू होने के पहले ही आ धमकते हैं और कई तो हफ्तों हफ्तों यहां डेरा डाले रहते हैं।
अगर इस मेले को धार्मिक और अनुष्ठानिक तिथियों के आईने में देखें तो यह ऐसा मेला होता है, जिसमें छह बड़े स्नान होते हैं। जैसा कि हम जानते हैं सनातन हिंदू संस्कृति में पवित्र स्नानों का बहुत महत्व है। इस मेले में पहला विशिष्ट स्नान मकर संक्रांति का होता है और दूसरा पौष पूर्णिमा का होता है, तीसरा मौनी अमावस्या का, चौथा वसंत पंचमी, पांचवां माघ पूर्णिमा और छठा स्नान महाशिवरात्रि का होता है। इस साल ये सभी स्नान क्रमशः 15 जनवरी को मकर संक्रांति, 25 जनवरी को पौष पूर्णिमा, 9 फरवरी को मौनी अमावस्या, 14 फरवरी को वसंत पंचमी, 24 फरवरी को माघ पूर्णिमा और 8 मार्च को महाशिवरात्रि का स्नान है। गौरतलब है कि पूरे माघ मेले के दौरान लाखों साधक संगम के तट पर कुटिया बनाकर कल्पवास करते हैं। इस कल्पवास के दौरान ये लोग शाम-सुबह संगम में स्नान करते हैं और दिन-रात यहां रहकर भगवान की पूजा-ध्यान आदि में लील रहते हैं।
कहते हैं कि एक महीने के कल्पवास से एक कल्प का पुण्य मिलता है। एक कल्प ब्रह्मा के एक दिन के बराबर होता है और ब्रह्मा जी का एक दिन 1000 महायुग के बराबर होता है। माना जाता है कि माघ मेला ब्रह्मा जी द्वारा समूचे ब्रह्मांड के निर्माण का जश्न है। माघ मेले में बहुत तरह के यज्ञ होते हैं। विभिन्न तरह की प्रार्थनाएं की जाती हैं और अनगिनत अनुष्ठान सम्पन्न होते हैं। यह ऐसा सांस्कृतिक आयोजन होता है, जहां साधु, संत, गृहस्थ, नागा सभी एक साथ अपनी धार्मिक आस्थाओं के अनुष्ठान सम्पन्न करते हैं। माघ मेले के दौरान कल्पवास करने वाले साधकों को अपने मन और इंद्रियांे को नियंत्रण करने की शक्ति प्राप्त होती है।
पूरी दुनिया के सांस्कृतिक अध्येताओं को यह बात बहुत रोमांचक लगती है कि माघ मेले और कुंभ मेले को लेकर आखिर इतनी रुचि क्यों होती है? शायद इन दोनों मेलों में जिस तरह प्रकृति और अध्यात्म का सार्थक मिलन होता है, उसका आकर्षण लाखों लोगों को अपनी तरफ खींचता है। कल्पवास की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है और इसके पीछे उद्देश्य इंसान की आत्म शुद्धि का रहा है। कहते हैं संगम के तट पर एक महीने तक निवास करके वेदों का अध्ययन करने और ध्यान योग करने से इंसान की मनःस्थिति पूरी तरह से आध्यात्मिक रंग में रंग जाती है। धार्मिक मान्यता है कि एक कल्पवास प्रयागराज में रहकर तप और ध्यान करने वालों को हज़ारों अश्वमेध यज्ञों के बराबर का पुण्यलाभ मिलता है। यही वजह है कि हर साल यहां देश के कोने-कोने से लाखों लोग कल्पवास के लिए डेरा डालते हैं। इससे लोगों की चेतना पर गहरा असर पड़ता है। माना जाता है कि कल्पवास में ब्रह्मांड की सारी शक्तियों का प्रयाग के संगम तट पर चुंबकीय प्रभाव पड़ता है, जिससे तन और मन ऊर्जा और स्फूर्त से लबालब हो जाते हैं।
धीरज बसाक
तीर्थराज प्रयाग में 15 जनवरी (मकर संक्रांति) से शुरू होने वाला माघ मेला अगले 52 दिनों यानी 8 मार्च तक देश-विदेश के लाखों लोगों की धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उपस्थिति का केंद्र रहेगा। एक अनुमान के मुताबिक 15 जनवरी से 8 मार्च तक पड़ने वाले सभी छह प्रमुख स्नानों पर यहां तकरीबन एक करोड़ से ज्यादा लोग आएंगे, जिनमें 7 से 9 लाख तक विदेशी होंगे। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मिनी कुंभ कहलाने वाले इस धार्मिक और सांस्कृतिक मेले का क्या महत्व है। मकर संक्रांति के दिन पौ फटने से पहले ही प्रयागराज में लाखों लोग डुबकी लगाते हैं। माना जाता है कि मकर संक्रांति से महाशिवरात्रि तक जितने दिन यह माघ मेला रहता है, वे दिन चार युगों- सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग के बराबर होेते हैं।
अगर इस मेले को धार्मिक और अनुष्ठानिक तिथियों के आईने में देखें तो यह ऐसा मेला होता है, जिसमें छह बड़े स्नान होते हैं। जैसा कि हम जानते हैं सनातन हिंदू संस्कृति में पवित्र स्नानों का बहुत महत्व है। इस मेले में पहला विशिष्ट स्नान मकर संक्रांति का होता है और दूसरा पौष पूर्णिमा का होता है, तीसरा मौनी अमावस्या का, चौथा वसंत पंचमी, पांचवां माघ पूर्णिमा और छठा स्नान महाशिवरात्रि का होता है। इस साल ये सभी स्नान क्रमशः 15 जनवरी को मकर संक्रांति, 25 जनवरी को पौष पूर्णिमा, 9 फरवरी को मौनी अमावस्या, 14 फरवरी को वसंत पंचमी, 24 फरवरी को माघ पूर्णिमा और 8 मार्च को महाशिवरात्रि का स्नान है। गौरतलब है कि पूरे माघ मेले के दौरान लाखों साधक संगम के तट पर कुटिया बनाकर कल्पवास करते हैं। इस कल्पवास के दौरान ये लोग शाम-सुबह संगम में स्नान करते हैं और दिन-रात यहां रहकर भगवान की पूजा-ध्यान आदि में लील रहते हैं।
कहते हैं कि एक महीने के कल्पवास से एक कल्प का पुण्य मिलता है। एक कल्प ब्रह्मा के एक दिन के बराबर होता है और ब्रह्मा जी का एक दिन 1000 महायुग के बराबर होता है। माना जाता है कि माघ मेला ब्रह्मा जी द्वारा समूचे ब्रह्मांड के निर्माण का जश्न है। माघ मेले में बहुत तरह के यज्ञ होते हैं। विभिन्न तरह की प्रार्थनाएं की जाती हैं और अनगिनत अनुष्ठान सम्पन्न होते हैं। यह ऐसा सांस्कृतिक आयोजन होता है, जहां साधु, संत, गृहस्थ, नागा सभी एक साथ अपनी धार्मिक आस्थाओं के अनुष्ठान सम्पन्न करते हैं। माघ मेले के दौरान कल्पवास करने वाले साधकों को अपने मन और इंद्रियांे को नियंत्रण करने की शक्ति प्राप्त होती है।
पूरी दुनिया के सांस्कृतिक अध्येताओं को यह बात बहुत रोमांचक लगती है कि माघ मेले और कुंभ मेले को लेकर आखिर इतनी रुचि क्यों होती है? शायद इन दोनों मेलों में जिस तरह प्रकृति और अध्यात्म का सार्थक मिलन होता है, उसका आकर्षण लाखों लोगों को अपनी तरफ खींचता है। कल्पवास की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है और इसके पीछे उद्देश्य इंसान की आत्म शुद्धि का रहा है। कहते हैं संगम के तट पर एक महीने तक निवास करके वेदों का अध्ययन करने और ध्यान योग करने से इंसान की मनःस्थिति पूरी तरह से आध्यात्मिक रंग में रंग जाती है। धार्मिक मान्यता है कि एक कल्पवास प्रयागराज में रहकर तप और ध्यान करने वालों को हज़ारों अश्वमेध यज्ञों के बराबर का पुण्यलाभ मिलता है। यही वजह है कि हर साल यहां देश के कोने-कोने से लाखों लोग कल्पवास के लिए डेरा डालते हैं। इससे लोगों की चेतना पर गहरा असर पड़ता है। माना जाता है कि कल्पवास में ब्रह्मांड की सारी शक्तियों का प्रयाग के संगम तट पर चुंबकीय प्रभाव पड़ता है, जिससे तन और मन ऊर्जा और स्फूर्त से लबालब हो जाते हैं।
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