वास्तविक ब्रह्म ज्ञान
आचार्य शंकर गंगा स्नान के लिए जा रहे थे। उनके सामने से एक चांडाल कुत्तों को लिए मार्ग में खड़ा था। शंकर बोले, ‘अरे! कुत्तों को मेरे मार्ग से हटा ताकि मैं स्नान के लिए आगे निकल सकूं। चांडाल के उपेक्षाभाव को देख, उत्तेजित आचार्य शंकर पुनः बोले तो अबकी बार चांडाल ने शंकर से एक श्लोकबद्ध संस्कृत भाषा में कहा, ‘तुम किसको हट जाने को कह रहे हो? आत्मा को या देह को, आत्मा तो सर्वव्यापी, निष्क्रिय और सतत शुद्ध स्वभाव है। यदि देह को हटाने को कह रहे हैं, देह जड़ है, वह कैसे हट सकती है! क्या कुत्ते, मेरी और आपकी आत्मा एक है या भिन्न-भिन्न? यदि भिन्न है, तो तुम ‘एकमेवाद्वितीयं’ इस ब्रह्मतत्व में प्रतिष्ठित होने का मिथ्याभिमान करते हो, तत्वदर्शी से क्या चांडाल, कुत्ते और आचार्य में कोई भेद है?’ चांडाल के इन ज्ञानगर्भित वचनों को गुरुज्ञानसम लेकर स्तंभित तथा लज्जित आचार्य शंकर प्रभु को मन ही मन कोटि-कोटि प्रणाम करते हुए विनम्रभावित चांडाल के समक्ष खड़े ब्रह्म स्तुति करने लगे।
प्रस्तुति : बनीसिंह जांगड़ा