बेटा-बेटी संग पेड़ भी बचे संसार में
शमीम शर्मा
एक ट्रक के पीछे लिखा था :-
ये नीम का पेड़ चन्दन से कम नहीं,
हमारा हिसार लन्दन से कम नहीं।
पेड़ चाहे नीम का हो या चन्दन का पर पेड़ होना जरूरी है। जिस रफ्तार से पेड़ों की कटाई हो रही है उसकी तुलना में नये पेड़ लगाने का काम बहुत धीमा है। तभी एक नारा जोर पकड़ रहा है—पेड़ बचाओ। ठीक वैसे ही जैसे कन्या भ्रूण हत्या रोकने को हमने बेटी बचाओ का नारा उछाला था। कोई शक नहीं कि पेड़ और पुत्री दोनों ही खतरे में हैं। एक की कमी से पर्यावरण लड़खड़ाने लगा है तो दूसरे की कमी से परिवार नामक संस्था।
एक मनचले का कहना है कि दारू की बोतल खरीददारी पर एक शर्त लगा दी जाये कि पेड़ लगाने पर ही बोतल मिलेगी तो यह धरा हरीभरी होने में समय नहीं लगेगा। कहीं घरों में लटके एसी में आग लग रही है तो कहीं खड़ी-खड़ी कारें धधक रही हैं। इस भयानक गर्मी में बाइक या कार की बलबलाती सीट पर बैठते ही आत्मज्ञान हो जाता है कि पेड़ लगाने क्यों जरूरी हैं।
मानव जाति के विकास और पतन की एक छोटी-सी कहानी है। पहले तो व्यक्ति पेड़ काटता है और फिर इन्हीं कटे पेड़ों से वह कागज़ बनाता है। फिर इस कागज से किताबें बनती हैं। इन्हीं किताबों में वह कविता, कहानी कह-कह कर यह लिखता है कि पेड़ नहीं काटने चाहिए। वृक्ष चाहे हमें कितने ही मीठे-मीठे फल खिला दें, ठंडी छाया का आंचल दें पर हम उन्हें काटकर ही दम लेते हैं। पेड़ों की कटाई का काम करने वालों को भी अन्ततः आराम करने के लिये पेड़ की छाया ही चाहिए।
पेड़ों को काटने की यही गति रही तो आदमी को फांसी खाने के लिये भी दरख्त नहीं मिलेंगे। नरेश सक्सेना की कविता है :-
लिखता हूं अंतिम इच्छाओं में कि
बिजली के दाहघर में हो मेरा संस्कार
ताकि मेरे मरने के बाद
एक बेटे और बेटी के साथ
एक वृक्ष भी बचा रहे संसार में।
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एक बर की बात है अक मास्टर जी नैं क्लास मैं बूज्झी- न्यूं बताओ अक थारे गांम की नहर मैं आम का पेड़ लग्या हो तो थम आम क्यूंकर तोड़ोगे? नत्थू बोल्या- जी तोता बणकै नैं तोड़ ल्यूंगा। मास्टर बोल्या- तेरै ताहिं तोता कोन बणावैगा? नत्थू तो जवाब लिये त्यार ए बैठ्या था, बोल्या- जो नहर मैं पेड़ लगावैगा, वो ए तोता भी बणा देगा।