Transplant Games 2025 : जंग से जीत तक... जब मौत करीब थी, लेकिन हौसले ने जिंदगी लिख दी
विवेक शर्मा
चंडीगढ़, 23 मार्च
कभी अस्पताल के बिस्तर पर जिंदगी व मौत की जंग लड़ने वाले ये लोग...आज दौड़, कूद रहे थे और जीत की मुस्कान के साथ दुनिया को नया संदेश दे रहे थे। जबलपुर के दिग्विजय सिंह, जिनकी किडनी फेल हो गई थी, अब बॉडीबिल्डिंग में वर्ल्ड ट्रांसप्लांट गेम्स के सिल्वर मेडलिस्ट हैं। दिल्ली की प्रीति, जिन्हें डॉक्टरों ने कहा था कि वे सामान्य जीवन नहीं जी पाएंगी, ने दिल के ट्रांसप्लांट के 25 साल बाद बैडमिंटन में सिल्वर मेडल जीत लिया।

कोलकाता की सौम्या दत्ता, जिनका लंग ट्रांसप्लांट हुआ था लंबी दूरी की दौड़ में शामिल हुईं। ये सिर्फ जीत की कहानियां नहीं, बल्कि इंसानी जज्बे और हौसले की मिसाल हैं। पीजीआईएमईआर में आयोजित रोट्टो ट्रांसप्लांट गेम्स 2025 में 300 से अधिक प्राप्तकर्ताओं और अंगदाताओं ने भाग लिया, यह साबित करते हुए कि बीमारी सिर्फ एक पड़ाव है, मंजिल नहीं।
खेल नहीं, नई जिंदगी का उत्सव
इस टूर्नामेंट में 100 मीटर दौड़, बैडमिंटन, रेस वॉक, भाला फेंक और रस्साकशी जैसे खेलों में खिलाड़ियों ने अपने दमखम का प्रदर्शन किया। यह सिर्फ खेल नहीं था, बल्कि उन जिंदगियों का उत्सव था, जिन्होंने कभी मौत को करीब से देखा और फिर उससे पार पाकर एक नई शुरुआत की।
रिले रेस की तरह है अंगदान
भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान राजपाल सिंह ने इसे सिर्फ एक प्रतियोगिता नहीं, बल्कि एक आंदोलन बताया। उन्होंने कहा, "जिस तरह एक एथलीट अपनी टीम को जिताने के लिए बैटन आगे बढ़ाता है। वैसे ही एक डोनर अपने अंगों के जरिए किसी और को आगे बढ़ने का मौका देता है।"
डोनर परिवारों को सलाम
कार्यक्रम में उन परिवारों को सम्मानित किया गया, जिन्होंने अपने प्रियजनों के अंगदान से अनगिनत ज़िंदगियों को नई रोशनी दी। पीजीआईएमईआर के प्रोफेसर विपिन कौशल ने कहा, "जब एक परिवार अपने दुख में भी किसी और की जिंदगी बचाने का फैसला करता है, तो यह सबसे बड़ा परोपकार होता है।"
गणमान्य हस्तियों की उपस्थिति
इस आयोजन में डॉ. अनिल कुमार (निदेशक, नोट्टो), प्रो. हरषा जौहरी (अध्यक्ष, इंडियन एसोसिएशन ऑफ ट्रांसप्लांट सर्जन्स), प्रो. मुक्त मिन्ज (पूर्व प्रमुख, किडनी ट्रांसप्लांट विभाग), प्रो. अजय दुसेजा (हेपेटोलॉजी विभाग), विवेक अत्रे (पूर्व आईएएस) और प्रो. दीपेश बी. कंवर (ट्रांसप्लांट सर्जरी विभाग) सहित कई प्रमुख हस्तियों ने शिरकत की।
15 राज्यों से आए प्रतिभागी
बिहार, झारखंड, हिमाचल, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, असम और मणिपुर सहित 15 राज्यों के प्रतिभागियों ने इसमें हिस्सा लिया। हर खिलाड़ी के चेहरे पर सिर्फ खेल का जुनून नहीं, बल्कि जिंदगी को पूरी तरह जीने की इच्छा थी।
‘हम ट्रांसप्लांट के बाद सिर्फ जी नहीं रहे, हम नया इतिहास लिख रहे हैं’
पीजीआईएमईआर के ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ प्रो. आशीष शर्मा ने कहा, "यह गेम्स सिर्फ पदक जीतने के लिए नहीं, बल्कि यह साबित करने के लिए हैं कि ट्रांसप्लांट के बाद भी जिंदगी उतनी ही शानदार हो सकती है। यह सिर्फ शरीर की नहीं, हौसले की जीत है।"
अंत में, जिंदगी का उत्सव
पीजीआईएमईआर के प्रो. दीपेश बी. कंवर ने आयोजन का सार बताते हुए कहा, "ये सिर्फ खेल नहीं, यह जिंदगी का उत्सव है। ट्रांसप्लांट के बाद जोश और जज्बा कम नहीं होता, बल्कि और बढ़ता है।"