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राष्ट्रीय हित में नहीं चीन से कारोबारी असंतुलन

06:22 AM May 23, 2024 IST
जयंतीलाल भंडारी

यकीनन इस समय चीन से आयात बढ़ने से कारोबार असंतुलन का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर वस्तुओं के चीन से आयात को नियंत्रित करने के मद्देनजर शुरू की गई ऑनलाइन निगरानी प्रणाली के बावजूद नवंबर, 2023 से मार्च, 2024 के 5 महीनों में चीन से लैपटॉप एवं टैबलेट सहित कंप्यूटरों की आवक 47.1 प्रतिशत बढ़ गई है। इस अवधि में भारत ने चीन से 27.36 करोड़ डॉलर मूल्य के इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर आयात किए हैं। यद्यपि इन उत्पादों के ताइवान और हांगकांग से भी आयात किए गए हैं, लेकिन उनकी तुलना में चीन से किए गए आयात का मूल्य कई गुना अधिक है।
हाल ही में 17 मई को विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने उद्योग चैंबर सीआईआई के सालाना वार्षिक सम्मेलन में उद्योग जगत को संबोधित करते हुए कहा कि चीन के साथ कारोबार असंतुलन एक बड़ा मुद्दा है। यह पिछले 20 वर्षों में पैदा हुआ है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2019-20 के बाद से चीन से होने वाले आयात में लगातार वृद्धि हुई है और आयात में 44 फीसदी का इजाफा हो चुका है जबकि चीन को होने वाला निर्यात तकरीबन स्थिर है। चीन के साथ सीमा पर चल रहे तनाव के बावजूद वहां से आयात में हो रही लगातार वृद्धि पर पहली बार किसी केंद्रीय मंत्री ने भारतीय उद्योग जगत को भी आड़े हाथों लिया और सम्मेलन में उपस्थित भारत के उद्योग जगत के सैकड़ों प्रतिनिधियों की तरफ चीन से हुई घुसपैठ के मद्देनजर इशारा करते हुए उन्होंने पूछा कि, क्या आप उसके साथ कारोबार करेंगे जो आपके ड्राइंग रूम में घुस कर आपके घर को नुकसान पहुंचा रहा है।
विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने बहुत ही स्पष्ट तरीके से यह सीख दी कि उद्यमियों को राष्ट्रीय हितों से जुड़ी संवेदनाओं का ख्याल रखना होगा। उन्होंने कहा कि, हमें चीन के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा की संवेदनशीलता को भी ध्यान में रखना होगा। जहां तक संभव हो भारत में बनायें, भारत में खरीदें। जो राष्ट्रीय हित में है वह लंबी अवधि में कारोबार के हित में भी होगा। उन्होंने कहा कि कारोबार की अपनी जरूरतें हैं लेकिन लंबी अवधि के लिए हमें घरेलू सोर्सिंग व उत्पादन को बढ़ावा देना होगा और इसी आधार पर हमें फैसला करना होगा।
उल्लेखनीय है कि पिछले वित्त वर्ष 2023-24 में चीन से आयात 44.7 प्रतिशत बढ़कर 70.32 अरब डॉलर से 101.75 अरब डॉलर हो गया, जबकि पिछले वित्त वर्ष 2023-24 में चीन को भारत का निर्यात 16.66 अरब डॉलर रहा। चीन बीते वित्त वर्ष 2023-24 में 118.41 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार के साथ भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है। भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार के मामले में चीन ने अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है।
चीन से आयात में वृद्धि के कारण चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा बढ़ गया है। चीन के साथ व्यापार घाटा 2018-19 में 53.57 अरब डॉलर था, वह बढ़ते हुए 2023-24 में 85.09 अरब डॉलर हो गया। विश्लेषण करें तो पाते हैं कि चीन से आयात में कमी नहीं आने के कई कारण हैं। भारत आवश्यक व रणनीतिक तौर पर बेहद जरूरी सेक्टर में भी चीन से आयातित उत्पादों पर काफी निर्भर है। यद्यपि चीन पर निर्भरता कम करने के जो रणनीतिक कदम उठाए गए, उनका अभी जमीनी तौर पर कोई विशेष असर नहीं दिखा है।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि पिछले एक दशक से स्वदेशी उत्पादों को हरसंभव तरीके से प्रोत्साहित करके चीन से आयात घटाने के प्रयास हुए हैं। वर्ष 2019 और 2020 में चीन से तनाव के कारण जैसे-जैसे चीन की भारत के प्रति आक्रामकता और विस्तारवादी नीति सामने आई, वैसे-वैसे स्थानीय उत्पादों के उपयोग की लहर देश भर में बढ़ती हुई दिखाई दी। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा बार-बार स्थानीय अर्थव्यवस्था का समर्थन करने और वोकल फॉर लोकल मुहिम के प्रसार ने स्थानीय उत्पादों की खरीदी को पहले की तुलना में अधिक समर्थन दिया है। चीन से आयात किए जाने वाले दवाई, रसायन और अन्य कच्चे माल का विकल्प तैयार करने के लिए पिछले दो वर्ष में सरकार ने प्रोडक्शन लिंक्ड इनसेंटिव (पीएलआई) स्कीम के तहत 14 उद्योगों को करीब दो लाख करोड़ रुपये आवंटन के साथ प्रोत्साहन सुनिश्चित किए हैं।
ऐसे में हमें चीन से कारोबार असंतुलन को कम करने के लिए नए कारगर प्रयासों से देश को नया मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने और चीन के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर से बाहर निकल रहे विदेशी निवेश को भारत की ओर मोड़ने के अधिक प्रयास करने होंगे। निश्चित रूप से चीन से व्यापार घाटा कम करने के लिए सरकार द्वारा और अधिक कारगर प्रयास करने होंगे।
अब एक बार फिर से देश के करोड़ों लोगों को चीनी उत्पादों की जगह स्वदेशी उत्पादों के उपयोग के नए संकल्प के साथ आगे बढ़ना होगा। इस बात को भी समझा जाना होगा कि चीन से व्यापारिक असंतुलन की गंभीर चुनौती के लिए सिर्फ सरकार ही जिम्मेदार नहीं है, चीन के साथ व्यापार असंतुलन के लिए सीधे तौर पर देश का उद्योग-कारोबार और देश की कंपनियां भी जिम्मेदार हैं। उन्होंने कलपुर्जे सहित संसाधनों के विभिन्न स्रोत और मध्यस्थ विकसित करने में अपनी प्रभावी भूमिका नहीं निभाई है। साथ ही देश की बड़ी कंपनियां शोध एवं नवाचार के क्षेत्र में भी बहुत पीछे हैं।
अब देश को वैश्विक प्राइज सीरीज में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने और रोजगार अवसरों में वृद्धि के साथ-साथ आत्मनिर्भर बनने के लिए अपने मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में तेजी लाने की जरूरत है। मैन्युफैक्चरिंग को हर हाल में बढ़ाया जाना चाहिए। मैन्युफैक्चरिंग होने वाले हमारे उत्पादों की गुणवत्ता का भी ध्यान रखे जाने की जरूरत है।
हमें संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग (यूएन डीईएसए) के आर्थिक विश्लेषण एवं नीति प्रभाग द्वारा हाल ही में की गई इस टिप्पणी पर भी ध्यान देना होगा कि भारत का आर्थिक विकास प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा है और यह कई पश्चिमी देशों की कंपनियों के लिए निवेश करने का एक वैकल्पिक गंतव्य बन गया है। इसी कारण चीन में विदेशी निवेश भी कम होता जा रहा है जहां वर्ष 2024-25 में चीन की विकास दर महज 4.8 फीसदी ही संभावित है वहीं भारत की विकास दर 6.9 प्रतिशत की ऊंचाई पर रह सकती है। साथ ही भारत 2027-28 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने तथा 2031 तक भारत के उपभोक्ता बाजार के दोगुना होने की संभावनाएं हैं।
निश्चित रूप से अब विदेशी निवेशकों के लिए भारत एक आकर्षक स्थल बन सकता है। विश्व प्रसिद्ध कैपजेमिनी रिसर्च इंस्टिट्यूट की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका व यूरोप की कंपनियों के बड़े अधिकारी चीन पर अपनी निर्भरता कम करना चाहते हैं और वे गंभीरता से भारत में निवेश की योजना बना रहे हैं। ऐसे में हमें निवेश की इन संभावनाओं को धरातल पर उतारने के प्रयास करने होंगे। इससे भारत के मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की संभावनाएं बढ़ेंगी, साथ ही इससे भारत को आत्मनिर्भर बनने और चीन से आयात नियंत्रित करने में मदद मिलते हुए दिखाई दे सकेगी।

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लेखक अर्थशास्त्री हैं।

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