कल जयंती योग में जन्माष्टमी
मदन गुप्ता सपाटू
श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर इस बार महापुण्यप्रदायक जयंती योग है। श्री कृष्ण का जन्म भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, बुधवार, अर्धरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में वृष राशि के चंद्रमा के संयोग में माना गया है। इस बार 8 साल बाद यह दुर्लभ संयोग बन रहा है, जब रोहिणी नक्षत्र भी होगा और राशि भी वृष होगी। हालांकि, दिन बुधवार के बजाय सोमवार पड़ेगा। गौतमी तंत्र नामक ग्रंथ और पदम्पुराण के अनुसार, यदि कृष्णाष्टमी सोमवार या बुधवार को पड़े, तो यह दिवस ‘जयंती’ के नाम से विख्यात होता है और अत्यंत शुभ माना जाता है।
कृष्ण जन्माष्टमी के दिन पूजन के साथ-साथ व्रत रखना बहुत फलदायी माना जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत को व्रतराज भी कहा जाता है। व्रत रखने के लिए सुबह स्नान के बाद, व्रतानुष्ठान करके ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें। घर के मंदिर को साफ-सुथरा करें। बाल कृष्ण लड्डू गोपाल जी की मूर्ति मंदिर में रखें और इसे अच्छे-से सजाएं। माता देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा जी का चित्र भी लगा सकते हैं। जन्माष्टमी के दिन साधक को अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। फलाहार किया जा सकता है। रात्रि के समय ठीक 12 बजे, लगभग अभिजित मुहूर्त में भगवान की आरती करें, पूजा करें, भजन करें। प्रतीक स्वरूप खीरा फोड़ कर, शंख ध्वनि से जन्मोत्सव मनाएं। गंगा जल से श्री कृष्ण को स्नान करायें, उन्हें सुंदर वस्त्र और आभूषण पहनाएं। भगवान को झूला झुलाएं। मक्खन, मिश्री, धनिया, केले, मिष्ठान आदि का भोग लगाएं। चंद्रमा को अर्घ्य देकर नमस्कार करें। अगले दिन नवमी पर नन्दोत्सव मनाएं। जन्माष्टमी का व्रत रखने वाले रात्रि में बाल गोपाल श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं और उसी समय अन्न खाकर व्रत का पारण कर लेते हैं। हालांकि, कई स्थानों पर अगले दिन प्रात: पारण किया जाता है। इस स्थिति में आप 31 अगस्त को प्रात: 09 बजकर 44 मिनट के बाद पारण कर सकते हैं, क्योंकि इस समय ही रोहिणी नक्षत्र का समापन होगा।
संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपति, संतान गोपाल मंत्र का जाप मिलकर करें। मंत्र है-
देवकीसुत गोविंद वासुदेव जगत्पते। देहिमे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।
दूसरा मंत्र- क्लीं ग्लौं श्यामल अंगाय नमः!!