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रुपये के गिरने पर आहें भरना

12:04 PM Jul 06, 2022 IST

अंशुमाली रस्तोगी

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रुपये के गिरने पर इतना हंगामा, क्यों? रुपया कोई पहली बार तो गिरा नहीं है। गिरता है। संभलता है। फिर, उठ खड़ा होता है। गिरना या उठना रुपये के बस में नहीं। जब कभी उस पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव पड़ता है, गिर जाता है। मगर लोग हैं कि उसे ही खलनायक बना जाने क्या-क्या कह रहे हैं। रुपये के गिरने का गम सबसे अधिक विपक्ष को है। विपक्ष रुपये के गिरने को सरकार की नाकामी बता रहा है!

सरकार ने तो नहीं बोला रुपये से कि तू गिर जा। बल्कि सरकार तो रुपये को डॉलर के मुकाबले मजबूत करने के प्रति कृत-संकल्प है। वो चाहती है कि रुपया उठे, उठा ही रहे ताकि देश की अर्थव्यवस्था चुस्त-दुरुस्त रहे। पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था तभी बनेगी न जब रुपये का मूड फ्रेश रहेगा। सेंसेक्स मजबूती बनाए रखेगा। जीडीपी बल्ले–बल्ले करेगी। जीएसटी संग्रह से धांसू कमाई होगी। कोरोना के बाद से बहुत कुछ संभलने लगा है। विकास सरपट दौड़ रहा है। आत्मनिर्भर गली-गली, मोहल्ले-मोहल्ले शान से घूम रहे हैं। बीच–बीच में रुपया ही पनौती कर देता है। डॉलर के आगे नतमस्तक हो जाता है। विश्व भर में देश की नाक कटवा देता है। जाने कौन-सा दुःख है इसे? दुःख अगर है भी तो कहे न सरकार से। सरकार के पास हर मर्ज की दवा है। ऐसे ही गिरता रहेगा तो एक दिन इसका ‘इम्यूनिटी सिस्टम’ कतई कमजोर पड़ जाएगा।

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रुपया गिरता है तो लगता है मैं गिर पड़ा हूं। कई दफा कोशिश की रुपये से पूछने की कि महाराज, क्यों गिर रहे हो? हर बार टाल–मटोल कर जाता है। लेकिन यह ठीक नहीं। आखिर अपना रुपया है। डॉलर के आगे यों गिरता रहेगा तकलीफ तो होगी ही न। रुपये को क्या मालूम कि सारी कायनात ही उसकी कृपा पर टिकी है। जहां रुपया है वहां रिश्ते हैं। जहां रुपया है वहां खेल है। जहां रुपया है वहां नौकरी है। जहां रुपया है वहां जीत है। जहां रुपया नहीं वहां कुछ नहीं, कुछ भी नहीं।

दरअसल, यहां बहुत कुछ हर पल गिरता रहता है। कई दफा तो गिरने वाले ही इतनी इज्जत पा जाते हैं कि समाज को उनकी गिरावट पर ‘फक्र’ होता है! बात बस इतनी-सी है कि गिरने गिरने में फर्क है। कोई राजनीति में गिरता है तो कोई विचार को ही गिरा देता है। कोई चढ़ते हुए गिरता है तो कोई उतरते हुए। कुछ ऐसे भी हैं जिनका जन्म ही गिरने के लिए हुआ है। जैसे– बेपेंदी के लोटे।

मुझे शिकायत है उन लोगों से जो रुपये के गिरने का मजाक उड़ा रहे हैं। मीम बना रहे हैं। चुटकुले बना रहे हैं। रुपया खामोशी से अपना उड़ता हुआ मजाक देख-सुन रहा है। शिकायत करना उसकी फितरत में शामिल नहीं। उसे विश्वास है कि एक दिन वो उठ खड़ा होगा। डॉलर को पटखनी देगा।

मैं अपने रुपये के साथ हर दम खड़ा हूं। मुझे इसके गिरने का मलाल इसलिए भी नहीं क्योंकि—

‘गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में

वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चले।’

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गिरनेरुपये