For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

अनहोनी का होना, होनी का न होना

06:25 AM Jul 08, 2023 IST
अनहोनी का होना  होनी का न होना
Advertisement

सहीराम

Advertisement

देखो जी, एक दिन तो सबको ही मिट्टी होना है। लेकिन यह तो हो गया दर्शन यानी फिलोसफी या फिर बाबाओं का ज्ञान। लेकिन दुनियादारी देखो तो भी सब मिट्टी में ही मिल रहा है। शिक्षा के अभाव में बचपन मिट्टी में मिल रहा है। बेरोजगारी के कारण नौजवानों की जवानी मिट्टी में मिल रही है। किसानों को तो वैसे ही मिट्टी संग मिट्टी होने की आदत है। ऐसे में उसकी फसल अगर मिट्टी के मोल बिके या मिट्टी में रुल जाए तो क्यों किसी को दर्द हो। इधर व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के ज्ञान ने नामचीन यूनिवर्सिटियों के ज्ञान को मिट्टी में मिला दिया है। ट्रोल सेना ने बड़े-बड़े बुद्धिजीवियों को मिट्टी में मिला दिया है।
चुनाव की राजनीति ने विचारधारा और सिद्धांतों को मिट्टी में मिला दिया। न किसी को अफसोस, न आश्चर्य। लेकिन आश्चर्य यह कि इधर एक मुख्यमंत्री का इस्तीफा मिट्टी में रुलता नजर आया। नहीं मणिपुर का मणि मिट्टी में रुल रहा है, इसका अफसोस नहीं है। मिट्टी में रुलती फिर रही है तो कोई बात नहीं। आश्चर्य की बात यह है कि मणिपुर के तो मुख्यमंत्री का इस्तीफा तक मिट्टी में रुलता नजर आया।
बड़ी मांग हो रही थी साहब कि मुख्यमंत्री इस्तीफा दो-मुख्यमंत्री इस्तीफा दो। मणिपुर सुलगता रहा, लेकिन उन्हांेने इस्तीफा नहीं दिया। राज्यों के धूं-धूं करने पर आजकल इस्तीफा कहां दिया जाता है। हां, बस उन्होंने बंसी नहीं बजाई और इसीलिए किसी ने उन पर यह इल्जाम भी नहीं लगाया कि जब मणिपुर जल रहा था, तो मुख्यमंत्री बंसी बजा रहे थे। हिंसा होती रही, लेकिन उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया। लोगों के मरने पर अगर इसी तरह इस्तीफे दिए जाते तो पिछले दिनों हुई रेल दुर्घटना में लोगों के मरने पर रेल मंत्री को भी इस्तीफा देना पड़ता। लेकिन कहां दिया। मुख्यमंत्री बेशक बंसी नहीं बजा रहे थे, पर चैन में थे। लेकिन इस चैन ने अंततः उन्हें इतना बेचैन कर दिया कि आखिरकार एक दिन उन्होंने इस्तीफा दे ही दिया। यह तो अनहोनी थी।
खुद मणिपुर की जनता इससे बेचैन हो उठी कि मुख्यमंत्री ने ऐसी अनहोनी को होनी कैसे होने दिया। क्या उनके प्यार का मुख्यमंत्रीजी यह सिला देंगे। सो वे मुख्यमंत्री आवास पहुंच गए और मुख्यमंत्री के हाथ से इस्तीफा लेकर उसे चिंदी-चिंदी कर मिट्टी में रुला दिया। किसी उद्यमी ने बाद में उन चिंदियों को जोड़ा और उसे संग्रहालय में रखने योग्य बना दिया। इस तरह मुख्यमंत्री ने कुर्सियों से चिपके नेताओं को एक रास्ता दिखा दिया कि कोई इस्तीफा मांगे तो इस तरह इस्तीफा देने में कोई हर्ज भी नहीं है।

Advertisement
Advertisement
Tags :
Advertisement