जलवायु और स्वास्थ्य नीतियों में तारतम्य का वक्त
अज़रबैजान के बाकू में जलवायु वार्ता का वार्षिक दौर खतरे की घंटी के साथ शुरू हुआ है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने अपने वार्षिक आकलन में बताया है कि 2024 सबसे गर्म साल रहने का रिकॉर्ड बनाने जा रहा है, जिसमें जनवरी और सितंबर के बीच वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि का पारा औद्योगीकरण से पहले रहे स्तर से लगभग 1.54 डिग्री सेल्सियस अधिक के आसपास मंडराता रहा। यह एक गंभीर खतरा है क्योंकि यह इजाफा उस 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिकतम सीमा से ऊपर है, जिसे वैज्ञानिकों ने तय किया था और विश्व समुदाय ने उत्सर्जन में कमी लाकर इसको इस हद से नीचा रखने के लिए सहमति बनाई थी।
पेरिस समझौते का लक्ष्य औद्योगीकरण से पहले रहे स्तर की तुलना में धरती की सतह के औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि को दीर्घकाल में 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने और ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयासों को आगे बढ़ाना था। जबकि इस वर्ष ला नीना प्रभाव के कारण गर्मी में बढ़ोतरी हो सकती है। इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड घनत्व निरंतर बढ़ रहा है जो तापमान वृद्धि का कारण बनती है।
तापमान वृद्धि से अतिवृष्टि और बाढ़, तीव्र उष्णकटिबंधीय चक्रवात, जानलेवा गर्मी, सूखा और जंगल की आग जैसे भयावह परिणामों के अलावा अनेक गहरे प्रभाव पड़ रहे हैं। जैसा कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतारेस ने व्याख्या की है ः ‘जलवायु आपदा स्वास्थ्य को नुकसान, असमानता में बढ़ोतरी और सतत विकास को हानि पहुंचा रही है, यह शांति की नींव को भी हिला रही है’। फंड, उपायों पर अमल और जलवायु वार्ताओं के परिणाम चाहे जो भी हों, दुनिया के सामने यह संकट मुंह बाए खड़ा है।
जलवायु परिवर्तन का स्वास्थ्य पर प्रभाव व्यापक होता है। स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर हालिया रिपोर्ट ‘द लैंसेट काउंटडाउन’ बताती है :’हर देश में अब लोगों को अपने स्वास्थ्य और अस्तित्व पर बने खतरे का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि जलवायु संकट बढ़ रहे हैं’। सेहत पर प्रभाव डालने वाले कारकों में अब बढ़ती गर्मी प्रमुख वजह है, वर्ष 2023 में लोगों को औसतन 50 से अधिक दिनों तक लगातार प्रचंड गर्मी झेलनी पड़ी, जबकि मौसम में आए बदलावों से पहले ऐसा नहीं होता था। इसके परिणामवश 65 वर्ष से अधिक आयु वर्ग में जितने लोगों की मौतें हुई, वे 1990 के दशक के औसत से 167 प्रतिशत अधिक हैं। सर्वेक्षण में पाया कि 31 देशों ने कम-से-कम 100 दिनों से अधिक अवधि के लिए स्वास्थ्य के लिए खतरनाक बनी गर्मी भुगती, जलवायु परिवर्तन के बिना ऐसा होने की उम्मीद न होती।
गर्मी के असर से शारीरिक गतिविधि और नींद की गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर पड़ता है, जिससे शारीरिक-मानसिक सेहत प्रभावित हो रही है। जो कर्मचारी खुले में या गैर-ठंडे बाहरी वातावरण में काम करते हैं, उन्हें स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ता है और उनकी उत्पादकता प्रभावित होती है। यह बहुत बड़ा नुकसान है क्योंकि विश्व स्तर पर लगभग 1.6 बिलियन लोग यानि कामकाजी आयु वर्ग की 25.9 प्रतिशत हिस्सा खुले में काम करता है। इसमें कृषि मज़दूर, विनिर्माण एवं बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर कार्यरत और अनौपचारिक क्षेत्र में लगे लोग शामिल हैं।
स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का अन्य बड़ा असर यह होगा कि इससे जल-जनित, मच्छर-जनित, खानपान-जनित और वायु-जनित रोगों का प्रसार बढ़ने का खतरा है। बढ़ता तापमान, अतिशयी बारिश एवं सूखा, भूमि उपयोग में बदलाव और मानवीय गतिविधियां इस जोखिम में इजाफा करते हैं। उदाहरणार्थ पिछले 20 सालों में विश्व मेंड ेंगू का प्रकोप बढ़ा है। 2023 में, एडीज एजिप्टी जैसे मच्छर का और अधिक इलाकों में फैलाव होने के कारण दुनियाभर में डेंगू के लगभग पचास लाख मामले सामने आए। तापमान वृद्धि के साथ हाल के दशकों में मलेरिया फैलने वाली अवधि भी बढ़ी है। दुनिया का 17 प्रतिशत अतिरिक्त भूभाग पी-फाल्सीपेरम जैसे मलेरिया परजीवियों के फलने-फूलने के अनुकूल हो गया है। जलाशयों के तापमान और लवणता में परिवर्तन के चलते जल जनित रोगों का संक्रमण अधिक फैल रहा है।
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती और जलवायु परिवर्तन धीमा करने को निर्णायक कदम उठाने पर राजनेताओं और नीति निर्माताओं मेंे आम सहमति बनने का दुनिया अनिश्चित काल तक इंतजार नहीं कर सकती। वार्षिक जलवायु परिवर्तन वार्ताएं अपने-अपने राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय आर्थिक हितों की रक्षा सुनिश्चित रखने के प्रयास बनकर रह गई हैं, और ऐसे पैंतरे अपनाए जाते हैं जिससे काम जल्दी होने की बजाय लटका रहे। इसलिए रास्ता यही कि लचीला जलवायु संबंधी तंत्र बने और उस पर अमल हो। हालांकि यह करना भी एक चुनौती है, उदाहरणार्थ, एयर-कंडीशनिंग जैसा उपाय अपनाना गर्मी के बढ़ते प्रकोप का स्थायी हल नहीं। यह महंगा व ऊर्जा की भारी खपत करने वाला है ,गर्मी के उत्सर्जन में योगदान करता है। इससे शहरी क्षेत्रों में, वाणिज्यिक और आवासीय भवनों में एयर-कंडीशनर के अत्यधिक उपयोग से बना ‘हीट आइलैंड’ बढ़ता है। इसलिए, हमें अक्षय ऊर्जा के साथ-साथ नवीकरणीय कम ऊर्जा खपत वाली शीतलन तकनीकों द्वारा संचालित एयर-कंडीशनिंग चाहिये।
डेंगू जैसी चुनौतियों के लिए, हमें जोखिम कम करने, एकीकृत मच्छर नियंत्रण उपायों और स्वास्थ्य प्रणालियों को अधिक प्रतिक्रियाशील बनाने पर जोर देने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य क्षेत्र को भी अपने उत्सर्जन में कटौती करनी होगी - वर्तमान में, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वैश्विक स्वास्थ्य सेवाओं का हिस्सा 5 प्रतिशत है। डब्ल्यूएचओ ने कॉप-29 सम्मेलन से पहले जारी की रिपोर्ट में बताया है कि स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए शहरों पर ध्यान देना आवश्यक है। शहरी नीतियां कुछ ऐसी बनाई जाती हैं जिनका असर वायु गुणवत्ता, परिवहन, ऊर्जा उपयोग, शहरी डिज़ाइन, हरित क्षेत्र, आवास और भोजन की पहुंच पर होता है और यह आगे सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। इसलिए, कम कार्बन और स्वच्छ ऊर्जा प्रणालियों वाले बदलाव लाने में देरी मानव स्वास्थ्य के लिए बड़ी हानि है।
स्वास्थ्य पर जलवायु बदलावों का असर कम करने वाले तमाम उपायों पर काम करने की गाड़ी आखिर में आकर नई व्यवस्था और बेहतर विकल्प अपनाने पर होने वाले खर्च पर आकर अटक जाती है। इस हेतु अरबों डॉलर का अतिरिक्त फंड, जिसे देने का विकसित राष्ट्रों ने वादा किया था, शायद ही कभी पूरा हुआ हो। जलवायु सुधार फंड जुटाना एक जटिल मुद्दा है, उम्मीद करें कि बाकू में इस पर सार्थक प्रगति हो पाएगी। हालांकि, यह लगता नहीं, क्योंकि अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस और ब्राजील सहित शीर्ष विश्व नेताओं ने वार्ता के शिखर सम्मेलन वाले सत्र में भाग न लेने का फैसला किया है।
जैसा कि डब्ल्यूएचओ का कहना है कि जलवायु-फंड अंततः स्वास्थ्य-फंड है। जहां एक और जलवायु कार्रवाई के लिए धन का इंतजाम मानव स्वास्थ्य और अस्तित्व के लिए जरूरी प्रणालियों को बचाने में मदद कर सकता है वहीं स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रभावों को कम करने और परस्पर जुड़े लाभ प्रदान करने में मदद कर सकता है। वर्तमान में, इस हेतु बना फंड बहुत कम है तिसपर उपलब्ध निधियों (ऋण, कर्ज आदि) का नाम बदलकर जलवायु-फंड किया जा रहा है। विकासशील और गरीब देशों को जलवायु सुधार, विशेष रूप से स्वास्थ्य अनुकूलन के लिए, अतिरिक्त फंड की आवश्यकता है। जलवायु और स्वास्थ्य नीतियों में तारतम्य बनाने का समय आ गया है क्योंकि मानव स्वास्थ्य और पृथ्वी की सेहत का नाता गहरे तक जुड़ा है।
लेखक विज्ञान संबंधी विषयों के माहिर हैं।