बचाव को कारगर रणनीति बनाने का वक्त
डॉ. रमेश ठाकुर
हाल ही में रेबीज़ से उत्पन्न एक दर्दनाक घटना ने समाज को चिंता में डाल दिया है। आमजन इस बात से अचंभित हैं कि आखिर रेबीज़ का संक्रमण अचानक से इतना खतरनाक और जानलेवा कैसे हो गया? अक्सर कुत्ता काटने के बाद पीड़ित रेबीज़ का टीका लगवा लेते हैं और एकाध सप्ताह में स्वस्थ हो जाते हैं। कुछ दिनों पहले गाजियाबाद में रेबीज़ इंफेक्शन से एक किशोर की मौत हो गई। बच्चे को डेढ़ माह पूर्व पार्क में खेलते वक्त कुत्ते ने काटा था। मगर उसने डर के चलते यह बात परिजनों से छिपाई। लेकिन कुछ दिन बाद रेबीज़ का संक्रमण बच्चे के शरीर में इतनी तेजी से फैला कि लक्षण साफ दिखाई देने लगा। पिता बच्चे को गोद में लेकर अस्पतालों के चक्कर काटता रहा। लेकिन, किसी भी अस्पताल ने इलाज नहीं हो पाया। आखिरकार बच्चे ने तड़प-तड़पकर पिता की गोद में ही दम तोड़ दिया।
निस्संदेह, किशोर की मौत ने चिकित्सा तंत्र से लेकर सिस्टम को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है। हाल के दिनों में कुत्ता काटने की घटनाओं में बेहताशा इजाफा हुआ है। रेबीज़ संक्रमण से फैली घटनाओं के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने रेबीज़ टीके के स्टॉक की समीक्षा का उपक्रम किया है। उ.प्र. सरकार ने भी सभी जिलों के सीएमओ को इस बाबत आदेशित किया है। दरअसल, कड़वी सच्चाई से सभी वाकिफ होने के बावजूद कुत्ता काटने के बाद लोग लापरवाही बरतते हैं।
निस्संदेह, कई मर्तबा तो अस्पतालों में रेबीज़ के इंजेक्शनों का भी टोटा रहता है। उस स्थिति में पीड़ित औने-पौने दामों में निजी अस्पतालों से रेबीज़ के टीके खरीदते हैं। चिकित्सकों की माने तो रेबीज़ के लगभग 97 फीसदी केस संक्रमित कुत्ते के काटने के कारण ही होते हैं। कुत्ता काटने के 72 घंटों के भीतर एंटी-रेबीज़ वैक्सीन अवश्य लगवाना चाहिए। ऐसा नहीं करने पर पीड़ित रेबीज़ की चपेट में आ सकता है हालांकि, रेबीज़ अन्य जानवरों से भी फैलता है, लेकिन उनका संक्रमण उतना प्रभावी नहीं होता, जितना कुत्ते का होता है। बाकी जानवरों के काटने के बाद टीका न भी लगे, तब भी घबराने की आवश्यकता नहीं होती। खुदा न खास्ता अगर कोई जहरीला जानवर या जंगली पशु-जानवर काटता भी है, तो उस घाव को साबुन से अच्छे से धोने से संक्रमण खत्म हो जाता है और खतरा भी टल जाता है।
अहम सवाल है कि गली-मोहल्लों के कुत्ते हिंसक क्यों हो रहे हैं? इस समस्या को भी समझने की जरूरत है। दरअसल, इसका एक मुख्य कारण है कुत्तों के भूखे रहना। एक जमाना था जब घरों में बनने वाले खाने का पहला निवाला या पहली रोटी कुत्तों की होती थी। पर, आज कोई भी बेजुबान जानवरों को भोजन परोसना नहीं चाहता। कुत्ते जब एकदम खाली पेट होते हैं, तभी लोगों पर टूटते हैं। पार्क या गली में खेलने वाले बच्चों के हाथों अगर कुत्ते थोड़ी-सी भी खाने की वस्तु देख लें, तो पीछे पड़ जाते हैं, झपट्टा मारने से बाज नहीं आते। शहरी क्षेत्रों में आवासीय परिक्षेत्रों का टोटा है, घरों के आंगन सिमट गए हैं, जब आंगन होते थे, तब कुत्तों को लोग खाना डाल देते थे, तब कुत्ते भी एक कोने में बैठकर अपने हिस्से के खाने का इंतजार करते थे। खाने के बाद कुत्ते शांत हो जाते थे। लेकिन अब उनकी भूख इस कदर बढ़ गई है जिससे वह दिनों-दिन कटखने हो रहे हैं। जो पालतू कुत्ते घरों में कैद रहते हैं, रस्सियों से बंधे होते हैं और अन्य कुत्तों के मुकाबले और हिंसक हो जाते हैं। रस्सी छूटने भर की देर होती है, हमला करते देर नहीं करते।
बहरहाल, इस मसले पर गंभीरता से विचार करना होगा। घटना घटने पर सिर्फ कागजी प्रयासों के बूते ये विकराल समस्या नहीं सुलझने वाली। केंद्र या राज्य स्तर पर कोई कारगर नीति अपनानी होगी। कोई ऐसा आवासीय क्षेत्र नहीं बचा है जहां कुत्तों के झुंड न देखे जाते हों? गली, मोहल्ले, चौक-चौराहों पर अक्सर इनका झुंड रास्ता घेर बैठा होता है। कुछ महीने पहले दिल्ली में घटी घटना ने भी सबके रोंगटे खड़े कर दिए थे, जहां दो सगे भाइयों को कुत्तों ने मार डाला था। दिन छिपने के बाद आवारा जानवर और ज्यादा हिंसक हो जाते हैं। इनका गाड़ियों के पीछे भागना और तेजी से भौंकने के चलते कई बार लोग टकराकर दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं। घटनाएं हो जाने के बाद ही नगर निगम अधिकारियों की नींदें टूटती हैं और आवारा कुत्तों को पकड़ने का जोरशोर से अभियान चलाते हैं। अच्छी बात है ऐसा होना चाहिए, लेकिन घटना घटने के बाद ही प्रशासन को चेतना क्यों आती है?
वक्त की दरकार है कि पशु संरक्षण कानून का ख्याल रखते हुए, सख्त कदम उठाए जाएं। समस्या को सुलझाने के लिए सरकारी स्तर पर अब कोई न कोई कारगर नीति अपनानी ही होगी। पुरानी व्यवस्था को बदलना होगा, चाहे इसके लिए नए कानून बनें, या पूर्व के कानून को प्रभावी बनाया जाए। कटखने पशुओं को पकड़ कर शहरों से कहीं दूरदराज क्षेत्रों में ले जाकर सुरक्षित स्थान पर रखें। उन्हें एंटी रेबीज़ इंजेक्शन दें। ताकि वे लोगों की जान पर खतरा न बन सकें।