आभासी दुनिया छोड़ लक्ष्य पाने का समय
डॉ. मोनिका शर्मा
तकनीक से मिली अनगिनत सुविधाओं के साथ-साथ जीवन की सहजता खो जाने की स्थितियां भी इन्सानों के हिस्से आई हैं। ज़िंदगी के हर पहलू को असहज करने वाले बहुत से खामियाजों में दिलो-दिमाग का ठहराव खो जाना सबसे ऊपर है। यों तो गैजेट्स में गुम होकर अपनी प्राथमिकताओं पर फोकस न कर पाने की उलझन हर आयु वर्ग के लोगों के हिस्से है पर युवा इस वर्चुअल भटकाव में जरा ज्यादा फंसे हैं। जबकि उम्र के इस पड़ाव पर हर पल भविष्य की बेहतरी में लगाने का है। अपने सपनों को पूरा करने में जुट जाने का है। ऐसे में नई पीढ़ी को फोकस्ड रहने की दरकार है।
प्रभावित हो रही पढ़ाई
जर्नल ऑफ कंप्यूटर असिस्टेड लर्निंग में प्रकाशित शोध के मुताबिक, आभासी दुनिया युवाओं को वास्तविक संसार से दूर कर रही है। अध्ययन में स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े डिग्री कोर्स कर रहे 285 विद्यार्थियों को शामिल किया गया। शोध में विद्यार्थियों द्वारा डिजिटल टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के तरीके, चिंता, अकेलापन, पढ़ाई और प्रेरणा का आकलन करने पर शोधकर्ताओं ने पाया कि इंटरनेट की लत और पढ़ाई के लिए प्रेरणा के बीच एक नकारात्मक रिश्ता है। जिसका अर्थ है कि जिन विद्यार्थियों को इंटरनेट की लत पड़ जाती है, उनके लिए पढ़ाई करना कठिन हो जाता है। ऐसे छात्र-छात्राओं को परीक्षाओं में बेचैनी भी ज्यादा होती है। इतना ही नहीं, इंटरनेट की लत के कारण अकेलापन भी घेरता है। कुल मिलाकर उनकी मनःस्थिति अकादमिक गतिविधियों को मुश्किल बना देती है। जरूरी है कि डिजिटल दुष्प्रभावों के चक्रव्यूह में फंसे युवा चेतें। इंटरनेट के इस्तेमाल की लत और जरूरत का फर्क समझें।
समय लीलता सोशल मीडिया
अध्ययन में शामिल करीब एक-चौथाई विद्यार्थियों ने माना कि वे हर रोज 4 घंटे से ज्यादा समय ऑनलाइन बिताते हैं। वहीं अन्य विद्यार्थियों ने हर दिन 3 घंटे ऑनलाइन रहने की बात कही। इनमें से 40 फीसदी छात्र-छात्राएं इंटरनेट का इस्तेमाल सोशल नेटवर्किंग के लिए और 30 प्रतिशत अन्य जानकारियां जुटाने के लिए करते थे। जबकि मन को भटकाने के मामले में सोशल मीडिया पर की जा रहीं गतिविधियां सबसे आगे हैं। तकलीफदेह है कि सामाजिक जुड़ाव और अपरिचितों तक से बातचीत कर लेने की परिपाटी वाले भारतीय समाज में अब हर उम्र के लोग स्क्रीन में आंखें गड़ाये दिखते हैं। रिसर्च फर्म रेडसियर के अनुसार, भारतीय यूजर्स हर दिन औसतन 7.3 घंटे अपने स्मार्टफोन में झांकते रहते हैं। इनमें अधिकतर लोग टाइम सोशल मीडिया स्क्रोलिंग में लगे रहते हैं। इससे मन का उद्वेलन और शारीरिक परेशानियां हर आयु वर्ग में पैदा हो रही हैं। भविष्य बनाने की उम्र में युवाओं के पढ़ने-लिखने की दिनचर्या पर पड़ रहा दुष्प्रभाव चिंतनीय है पर इससे बचने की राह भी स्वयं युवाओं को तलाशनी होगी। सबसे जुड़कर खुद से दूर हो जाने की इन स्थितियों से बचने के लिए समय प्रबंधन आवश्यक है। टाइम टेबल बनाकर उसे फॉलो करने से डिजिटल दुनिया के फायदे ज्यादा व नुकसान कम होंगे। इन माध्यमों का इस्तेमाल समय गंवांने में नहीं बल्कि पढ़ाई के बाद मिले समय में जरूरी इन्फर्मेशन जुटाने के लिए किया जा सकेगा।
बदल रही मनःस्थिति
इंटरनेट की लत इंसानी मनःस्थिति पर कई तरह से असर डालती है। वर्चुअल दुनिया में गुम रहना यूजर्स की प्रेरणा, योजना बनाना और संवेदनशील होकर सोचना सब कुछ कुंद कर देता है। विचलित मन के चलते पढ़ाई पर ध्यान केन्द्रित न कर पाना भी मनोवैज्ञानिक मोर्चे पर उपजे इस भटकाव का ही हिस्सा है। ज्ञात हो कि हाल के बरसों में बोर्ड एवं प्रतियोगी परीक्षाओं में अव्वल रहने वाले अधिकतर बच्चों और युवाओं ने भी माना है कि अपनी पढ़ाई पर फोकस करने के लिए वे लंबे समय तक वर्चुअल दुनिया से दूर रहे। पढ़ाई को अपनी प्राथमिकताओं की सूची में रखते हुए स्वानुशासन हेतु सोशल मीडिया से पूरी तरह दूरी बनाई। ऐसे में सभी यंगस्टर्स अपनी बदलती मनःस्थिति को समझें और सजग रहें। याद रहे कि सोच को दिशाहीन करने वाली कोई भी तकनीकी सुविधा जीवन को भी भटकाव के रास्ते पर धकेल देती है।
घट रहा सामाजिकता का रुझान
डिजिटल टेक्नोलॉजी का एक सीमा से ज्यादा इस्तेमाल करने वाले विद्यार्थियों में पढ़ाई के प्रति रुचि कम हो जाती है। सामाजिकता की सोच सिमट जाती है। पढ़ाई में भी कमजोर होने से अपराधबोध और सामाजिक मेलजोल की कमी के चलते अकेलापन महसूस होने लगता है। जिसके चलते आभासी दुनिया में और ज्यादा समय बीतने लगता है। कुल मिलाकर यह दुश्चक्र सार्थक गतिविधियों के बजाय मन की उलझनों और व्यवहारगत मुश्किलों के घेरे में ले आता है। जिससे निकलना सरल नहीं। इसीलिए तकनीक के इस वर्चुअल जाल में फंसने से पहले चेत जाना आवश्यक है। अपनों से जुड़े रहने की कोशिशें आवश्यक हैं। स्क्रीन के पर्दे से परे दोस्तों के साथ समय बिताना और सहज दिनचर्या फॉलो करना भी सोशल लाइफ को बेहतर बनाता है।