For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

चकराई हवाओं के चक्रव्यूह तोड़ने का वक्त

07:17 AM Sep 07, 2023 IST
चकराई हवाओं के चक्रव्यूह तोड़ने का वक्त
Advertisement

शमीम शर्मा

Advertisement

एक महिला अपनी सहेली से बात कर रही थी। उसने पूछा, क्या कर रही हो? जवाब मिला कि अपने कमरे में बैठी एसी की हवा खा रही हूं। पहले वाली इत्मीनान से बोली- ठीक है खा हवा और भर बिल। उनकी बात तो पता नहीं कहां जाकर खत्म हुई होगी पर मेरा माथा ठनका कि एसी वाली हवाओं का बिल भरना हर किसी के बस की बात नहीं है। कई बार हमारा उलाहना होता है कि फलां के घर गये, न चाय-पानी की पूछी न कोल्ड ड्रिंक्स, बस हवा खिलाकर भेज दिया। बिजली का बिल आता है तो पता चलता है कि हवा खिलाना भी आसान नहीं है।
हवा खाने-खिलाने की बात पर बात घूमते-घूमते यहां तक जा पहुंची कि वे भी क्या दिन थे जब एसी-वेसी के बिना आराम का जीवन था। घरों में पंखे ही राज किया करते। और बच्चों की लड़ाई का प्रमुख विषय यह हुआ करता- इस साइड नहीं सोना, मेरी तरफ हवा नहीं आ रही। रात को छतों पर सोया करते। जब कभी बरसात आ जाती तो पहले तो दो-चार बूंदों के गिरने तक इंतज़ार करते कि शायद और बारिश न ही आये। यह सोचकर पड़े रहते कि रुक जायेगी अभी। फिर भी नहीं रुकती तो आधी नींद में ही बिस्तरा गोल कर नीचे भागते और मर्द लोग खाट खड़ी करने या नीचे उतारने का काम करते।
हमारे राजनेता बिजली का बिल सस्ता करने का प्रलोभन देकर सिंहासन तो कब्ज़ा लेते हैं पर क्या कभी बिजली के उत्पादन को इतना प्रचुर करेंगे कि बिजली के दाम भी टमाटरों की तरह औंधे मुंह जा गिरें। महीना पहले तो टमाटर के भाव आसमान छू रहे थे और अब ज़मीन छू रहे हैं। टमाटर का जो जिक्र संसद तक जा पहुंचा था, आज चौराहे पर भी नहीं रहा। यही जीवन है। कभी अर्श पर कभी फर्श पर।
कई बार हवा भी चकराई हुई सी चलती है। ऐसी हवा का रुख भांपना आसान नहीं होता। आज के मतदाता का रुख भी चकराई हुई हवा से मेल खा रहा है। बेचारा कुछ सुनिश्चित नहीं कर पा रहा कि क्या करे कि जो पत्ते वह पहले देख चुका उनसे जा मिले या जैसा चल रहा है, चलने दे। चुनाव एक मौका होते हैं नेताओं की हवा निकालने का जो हमें बरगलाते हैं।

000

एक बर की बात है अक नत्थू की ढब्बण बार-बार फोन करकै तंग करण लाग री थी। फेर उस ताहिं समझाण खात्तर नत्थू नैं मोबाइल पै शायरी बणा कै भेज्जी अक उसकी लुगाई रामप्यारी धोरै ए बैट्ठी है- तू लहर बणकै मेरी खिड़की नैं खटखटा मैं उरै बन्द कमरे मैं बैठ्या हूं तूफान तै सटा।

Advertisement

Advertisement
Advertisement