कांग्रेस के तीन बागी नेता बिगाड़ सकते हैं खेल
सतीश जोशी/निस
नीलोखेड़ी, 19 सितंबर
विधानसभा चुनावों की दृष्टि से देखें तो बेहद सामान्य से दिखने वाली विधानसभा सीट नीलोखेड़ी इस बार हॉट सीट बनती दिखाई दे रही है। निवर्तमान विधायक द्वारा सत्ता पक्ष से साढे चार साल बाद समर्थन वापस लेकर कांग्रेस को समर्थन देने की घोषणा के बाद नीलोखेड़ी आरक्षित विस सीट ने सभी राजनीति पार्टियों का ध्यान अपनी ओर खींचा। इन विस चुनावों में कांग्रेस के टिकटार्थियो की प्रदेशभर में सर्वाधिक संख्या 88 को लेकर नीलोखेड़ी फिर से चर्चा में आ गई। चर्चाओं का दौर खत्म भी नहीं हुआ था कि कांग्रेस ने एक ऐसे व्यक्ति को टिकट दे दी जिसने न तो टिकट के लिए आवेदन किया और न ही कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ली। इसके चलते कांग्रेस के अन्य टिकटार्थियों में रोष फैल गया। इन टिकटार्थियों की मानें तो कांग्रेस हाईकमान ने स्वयं ही हार चुन ली है। हालांकि टिकट वितरण को लेकर भाजपा टिकटार्थियों में भी काफी रोष है। भाजपा हाईकमान ने सभी बागियों को मनाकर अपने पाले में खड़े होने के लिए सहमत करके सब कुछ ठीक-ठाक होने का दावा कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि देश आजाद होने के बाद विस्थापितों के लिए बसाए गए इस शहर के अपने प्रवास के दौरान देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने नीलोखेड़ी को अपनी बेटी की संज्ञा दी थी। हालांकि ये अलग बात है कि शहर होने के बावजूद यहां के बाशिंदे कस्बे वाली सुविधाओं के लिए भी तरस रहे हैं। अब तक हुए 13 विधानसभा चुनावों में 5 बार आजाद विधायकों ने ही जीत दर्ज की है। जबकि जनसंघ, कांग्रेस और इनेलो ने 2-2 बार, जनता पार्टी व भाजपा ने 1-1 बार जीत दर्ज की है। फिलहाल यहां से आजाद विधायक धर्मपाल गोन्दर हैं।
इन चुनावों में कांग्रेस के धर्मपाल गोन्दर, भाजपा के भगवानदास कबीरपंथी, इनेलो-बसपा के बलवान वाल्मीकि, आम आदमी पार्टी के अमर सिंह, जजपा-आजाद समाज पार्टी के कर्म सिंह, राष्ट्रवादी जनलोक पार्टी (सत्य) तथा 9 आजाद प्रत्याशी भी ताल ठोंक चुके हैं। खास बात यह है कि आजाद प्रत्याशियों में तीन प्रत्याशी कांग्रेस के बागी नेता हैं। इनमें कांग्रेस टिकट न मिलने से खफा पूर्व विधायक मामुराम गोन्दर के पुत्र राजीव गोन्दर, पूर्व मंत्री राजकुमार वाल्मीकि तथा दयाल सिंह सिरोही के नाम शामिल हैं। हालांकि कांग्रेस के एक अन्य खफा नेता राजेन्द्र सिंह बल्ला भी नामांकन के बाद अपनी नेता सांसद सैलजा के कहने पर चुनावी मैदान से हट गए हैं और कांग्रेस को जिताने के लिए काम करने की घोषणा कर चुके हैं।
बता दें कि इन विस चुनावों ने कांग्रेस ने निवर्तमान विधायक धर्मपाल गोन्दर और भाजपा ने भगवानदास कबीरपंथी को टिकट देकर 2019 के चुनावी दंगल की याद अवश्य ताजा कर दी है। क्योंकि 2019 के विस चुनावों में तिकोनी मुकाबले के चलते भाजपा की टिकट न मिलने से खफा धर्मपाल गोन्दर ने आजाद प्रत्याशी के रूप में भाजपा प्रत्याशी भगवानदास कबीरंपथी को 2222 मतों के अल्प अंतर से हराकर जीत दर्ज की थी। तब तीसरे स्थान पर कांग्रेस प्रत्याशी बंतराम वाल्मीकि ने 19736 वोट हासिल किए थे। अब तक हुए 13 विस चुनावों में 5 बार आजाद प्रत्याशी मैदान मार चुके हैं। जिसके चलते कांग्रेस के बागी नेताओं के मैदान में डटे होने के कारण इस बार चुनाव काफी रोचक होने के आसार बनते दिखाई दे रहे हैं।