47 वर्षों से जींद की राजनीति पर तीन परिवारों का रहा दबदबा
जसमेर मलिक/हमारे प्रतिनिधि
जींद, 30 अगस्त
1980 में जब देवीलाल की सरकार गिरा कर भजनलाल प्रदेश के सीएम बने, तब मांगेराम गुप्ता उनकी सरकार में मंत्री बने थे। 1982 में मांगेराम गुप्ता ने कांग्रेस की टिकट पर और बृजमोहन सिंगला ने लोकदल की टिकट पर जींद से चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में बृजमोहन सिंगला ने मांगेराम गुप्ता को महज 145 मतों के अंतर से मात दी थी। यह जींद में अब तक का सबसे कड़ा मुकाबला रहा है। बाद में बृजमोहन सिंगला लोकदल छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। 1982 में दोबारा प्रदेश के सीएम बने भजनलाल की सरकार में वह आबकारी एवं कराधान मंत्री बने थे।
1991 में मांगेराम गुप्ता फिर जींद से कांग्रेस टिकट पर विधायक बने और भजनलाल सरकार में वित्त मंत्री बने। 1996 में बृजमोहन सिंगला जींद से हविपा प्रत्याशी और मांगेराम गुप्ता कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनावी दंगल में उतरे। इसमें बृजमोहन सिंगला ने मांगेराम गुप्ता को लगभग 18000 मतों के अंतर से पराजित किया था। बाद में वह बंसीलाल और उसके बाद ओमप्रकाश चौटाला सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे। फरवरी 2000 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस टिकट पर जींद से फिर मांगेराम गुप्ता विधायक बने। 2005 में भी मांगेराम गुप्ता जींद से कांग्रेस टिकट पर विधायक चुने गए। 2007 में वह भूपेंद्र हुड्डा सरकार में शिक्षा मंत्री बने। यह दौर जींद में मांगेराम गुप्ता और बृजमोहन सिंगला की राजनीति का था, जब जींद की राजनीति महाजन समुदाय के इन दो परिवारों से बाहर नहीं निकल पाई थी।
1987 में बाहर निकली थी जींद की राजनीति
जींद की राजनीति पूर्व मंत्री मांगेराम गुप्ता, पूर्व मंत्री बृजमोहन सिंगला के वर्चस्व से केवल 1987 में बाहर निकली। 1987 में चौधरी देवीलाल की लोकदल की अंधी थी। चौधरी देवीलाल ने जींद से पिछड़ा वर्ग के प्रोफेसर परमानंद को प्रत्याशी बनाया था। प्रोफेसर परमानंद ने 1987 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के मांगेराम गुप्ता को लगभग 8000 मतों के अंतर से हराया था। बाद में वह देवीलाल सरकार में शिक्षा, खाद्य एवं पूर्ति समेत कई विभागों के बड़े मंत्री बने थे।
2009 में हुई तीसरे परिवार की एंट्री
2009 में जींद में बदलाव हुआ, और जींद की राजनीति महाजन समुदाय के दबदबे से बाहर निकली। पंजाबी समुदाय के डॉ़ हरिचंद मिड्ढा पर 2009 में इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला ने दांव लगाया था। डॉ़ मिड्ढा ने कांग्रेस के दिग्गज नेता मांगेराम गुप्ता को पराजित कर जींद की राजनीति में पंजाबी समुदाय का झंडा फहराया था। उसके बाद से अब तक मिड्ढा परिवार जींद विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहा है। 2014 में डॉ़ हरिचंद मिड्ढा इनेलो की टिकट पर जींद से लगातार दूसरी बार विधायक बने थे। 2018 में डॉ़ हरिचंद मिड्ढा के निधन के बाद खाली हुई जींद विधानसभा सीट पर जनवरी 2019 में उप-चुनाव हुआ। इसमें उनके बेटे डॉ़ कृष्ण मिड्ढा भाजपा प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे और विधायक बने। 2019 के आम चुनाव में फिर भाजपा ने डॉ़ कृष्ण मिड्ढा पर दांव लगाया और उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व मंत्री बृजमोहन सिंगला के बेटे अंशुल सिंगला की जमानत जब्त करवाई। जजपा प्रत्याशी पूर्व मंत्री मांगेराम गुप्ता के बेटे महावीर गुप्ता को लगभग 12000 मतों के अंतर से पराजित किया। जींद का यह इतिहास बताता है कि जींद की राजनीति इन तीन परिवारों के दबदबे में ही 47 साल में रही है।
चुनावी नतीजे होंगे निर्णायक
एक अक्तूबर को होने वाले हरियाणा विधानसभा के चुनाव जींद विधानसभा क्षेत्र की राजनीति को इन तीन परिवारों के दबदबे और वर्चस्व के मामले में बेहद निर्णायक होंगे। कांग्रेस की तरफ से पूर्व मंत्री मांगेराम गुप्ता के बेटे महावीर गुप्ता और पूर्व मंत्री बृजमोहन सिंगला के बेटे अंशुल सिंगला जींद से कांग्रेस टिकट के दावेदार हैं। इनमें महावीर गुप्ता का दावा अंशुल सिंगला के दावे से इस कारण बहुत ज्यादा मजबूत है कि 2019 के विधानसभा चुनाव में जहां महावीर गुप्ता ने जजपा की टिकट पर लगभग 46000 वोट लिए थे। वहीं पूर्व मंत्री बृजमोहन सिंगला के बेटे अंशुल सिंगला कांग्रेस टिकट पर 8000 वोट भी नहीं ले पाए थे। उनकी जमानत जब्त हुई थी। अंशुल सिंगला कभी सांसद दीपेंद्र हुड्डा के साथ नजर आते हैं, तो कभी कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला के साथ। दूसरी तरफ बीजेपी टिकट के लिए वर्तमान विधायक डॉ़ कृष्ण मिड्ढा सबसे प्रबल दावेदार हैं। इन तीन परिवारों में से किस परिवार को उनकी पार्टी की टिकट मिलती है। वे विधानसभा में पहुंच पाता है या नहीं, इसी से तय होगा कि जींद की राजनीति इन तीन परिवारों के दबदबे से बाहर निकल पाती है या इन परिवारों में ही सीमित रहती है।