यादों में बसे दूरदर्शन के वे सीरियल
हेमंत पाल
समय के साथ बहुत कुछ बदला और उसके साथ मनोरंजन के तरीके भी बदले। फिल्मों का लम्बा दौर चला, कई बार उसमें भी बदलाव आया। यह दौर आज भी चल रहा है। फर्क इतना आया कि पीढ़ियां बदलने के साथ दर्शकों की पसंद बदलती गई। अस्सी के दशक में फिल्मों के साथ मनोरंजन का नया माध्यम टेलीविजन भी इसमें जुड़ गया। दर्शकों को घर में बैठकर मन बहलाने का विकल्प मिल गया। सबसे पहले आया ‘दूरदर्शन’ जिसने दर्शकों का बरसों तक मनोरंजन किया। आज भले ही ‘दूरदर्शन’ मनोरंजन की दौड़ में पिछड़ गया हो, पर उस पीढ़ी के दर्शकों की यादों में आज भी दूरदर्शन के सीरियल चस्पां हैं। शुरू में दूरदर्शन के प्रसारण का समय सीमित था। पर, जब भी कोई कार्यक्रम शुरू होता, पूरा परिवार टीवी के सामने बैठ जाता। दर्शक सिर्फ मनोरंजन के कार्यक्रम ही नहीं बल्कि कृषि दर्शन जैसे कार्यक्रमों को भी देखते थे।
‘रामायण’ के बाद ‘महाभारत’ ने दर्शकों को लुभाया
इसके बाद में बीआर चोपड़ा ने भी ‘महाभारत’ बनाकर छोटे परदे पर कुछ ऐसा ही जादू किया था। यह सीरियल 2 अक्तूबर 1988 को पहली बार प्रसारित हुआ। शुरुआत में हरीश भिमानी की आवाज गूंजती थी ‘मैं समय हूं!’ ब्रिटेन में इसका प्रसारण बीबीसी ने किया, तब इसकी दर्शक संख्या 50 लाख पार कर गई थी। ‘दूरदर्शन’ के सफल सीरियलों में ‘चंद्रकांता’ भी रहा, जिसका प्रसारण 4 मार्च 1994 को शुरू हुआ था। देवकीनंदन खत्री के उपन्यास पर बने इस सीरियल को दर्शकों ने बेहद पसंद किया। 1994 में प्रसारित हुए ‘अलिफ लैला’ के दो सीजन में 260 एपिसोड प्रसारित हुए। रामानंद सागर ने ‘विक्रम और बेताल’ भी बनाया था। 1985 में आये इस धारावाहिक के 26 एपिसोड प्रसारित हुए।
बच्चों की पसंद थी मोगली की कथा
‘जंगल, जंगल बात चली है पता चला है ऐसे ...’ ये वो लाइनें हैं, जिन्हें गुलजार ने ‘जंगल बुक’ सीरियल के लिए लिखा था। बच्चों से लेकर बड़ों तक को इसका इंतज़ार रहता। दूरदर्शन पर ये जापानी एनिमेटेड इंग्लिश सीरीज़ आती थी जिसे हिंदी में रूपांतरित किया था। अस्सी व नब्बे के दशक में ‘हम लोग’ और ‘बुनियाद’ तो लोकप्रियता में मील का पत्थर थे। इसके अलावा भी कई सीरियल हैं, जो निर्माण के मामले में भले ही आज से हल्के लगते हों, पर कथानक के कारण लोकप्रिय थे। आरके नारायण की कहानियों पर आधारित ‘मालगुडी डेज़’ भी 1987 में बच्चों का पसंदीदा सीरियल था। देश के बच्चों को अपना पहला सुपर हीरो ‘शक्तिमान’ 27 सितम्बर 1997 को मिला था। इसका अपना अलग ही क्रेज़ था।
पं. नेहरू की किताब पर बना सीरियल
‘भारत एक खोज’ भी दूरदर्शन का 53 एपिसोड तक चला एक कालजयी कार्यक्रम था। यह 1988 से 1989 के बीच हर रविवार प्रसारित होता रहा। जवाहरलाल नेहरू की किताब ‘डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’ पर आधारित यह टीवी सीरीज़ शायद टेलीविज़न के इतिहास में बेहतरीन रूपांतरण है। इसके निर्माता-निर्देशक श्याम बेनेगल थे जो समानांतर सिनेमा के बड़े निर्देशकों में शामिल हैं। बता दें कि 80 के दशक में जब ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ जैसे सीरियलों ने हर घर में अपनी जगह बनाई थी। उस समय सरकार को लगा कि भारत के इतिहास पर भी एक टीवी सीरियल बनाया जाना चाहिए। बेनेगल ने देश के दर्शकों तक भारत की ऐसी अनसुनी कहानी को पहुंचाया।
धार्मिक, पारिवारिक व कॉमेडी शोज़
दूरदर्शन पर धार्मिक सीरियलों में रामायण, महाभारत, जय हनुमान, श्री कृष्णा, ॐ नमः शिवाय, जय गंगा मैया व ऐतिहासिक सीरियलों में टीपू सुल्तान, अकबर द ग्रेट, द ग्रेट मराठा, भारत एक खोज, चाणक्य शामिल हैं। पारिवारिक सीरियलों में स्वाभिमान, संसार, बुनियाद, हम लोग, कशिश, शांति, फरमान, हम पंछी एक डाल के जैसे सीरियल भला कौन भूला होगा। कॉमेडी और मनोरंजन वाले सीरियलों में ये जो है जिंदगी, मुंगेरीलाल के हसीन सपने, विक्रम और बेताल, तेनालीराम, व्योमकेश बक्शी, फ्लॉप शो, देख भाई देख, एक से बढ़कर एक जैसे कई नाम हैं।
‘सुरभि’ में पत्रों का रिकॉर्ड बना
उस समय एनिमेशन इंडस्ट्री ज्यादा विकसित नहीं थी, इसलिए विदेशी सीरियलों को डब करके परोसा गया। डिज्नी के मोगली जंगल बुक, टेलस्पिन, डक टेल्स, अलादीन, ऐलिस इन वंडरलैंड, गायब आया जैसे सीरियल बहुत देखे गए। ‘सुरभि’ भी दूरदर्शन की सबसे लंबे समय तक चलने वाली सीरीज थी, जिसका नाम ‘लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ में भी दर्ज था। शो देखने वाले हर हफ्ते 10 लाख चिट्ठियां भेजते थे। इस सीरीज को रेणुका शहाणे और सिद्धार्थ काक होस्ट करते थे। ‘सुरभि’ 1990 से 2001 तक चला था। साल 1991 को छोड़कर। ‘सुरभि’ में नियमित इनामी प्रतियोगिता होती थी। संस्कृति और सामान्य ज्ञान से संबंधित सवाल पूछे जाते थे। इनाम में टूर-पैकेज दिए जाते थे।
शो के दर्शक भी कम नहीं रहे
‘कृषि दर्शन’ दूरदर्शन का क्लासिक शो रहा है। इसका 26 जनवरी 1967 को प्रीमियर किया था। ‘कृषि दर्शन’ के 16,780 एपिसोड प्रसारित हुए। इसी तरह चित्रहार’ में बॉलीवुड के सुपरहिट गानों को दिखाया जाता। इसी तरह रंगोली’ जैसा फ़िल्मी गीतों का कार्यक्रम और ‘फूल खिले हैं गुलशन गुलशन’ टॉक शो भी उस दौर के दर्शकों को याद होगा। इसे एक्ट्रेस तबस्सुम होस्ट किया करती थीं जो 1972 से 1993 तक प्रसारित हुआ। लेकिन, अब ये टीवी शो पिछली पीढ़ी की यादों में ही दर्ज होकर रह गए।