इस बार एमएल रंगा खत्म कर पायेंगे वनवास!
तरुण जैन/हप्र
रेवाड़ी, 6 अक्तूबर
रिजर्व सीट बावल से कौन जीतेगा और कौन हारेगा, इसका पता मतगणना वाले दिन 8 अक्तूबर को चल जाएगा। बावल में हुई 67.95 प्रतिशत वोटिंग को लेकर हलका व राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा भी जोरों पर है कि क्या कांग्रेस प्रत्याशी डा. एमएल रंगा कांग्रेस का 28 साल का वनवास समाप्त कर पाएंगे। इस क्षेत्र से 1991 में कांग्रेस आखिरी बार चुनाव जीती थी और इसके बाद से कांग्रेस को जीत नसीब नहीं हुई है।
कांग्रेस प्रत्याशी डा. रंगा ने इस बार यह सीट कांग्रेस की झोली में डालने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया है। यदि यह सीट इस बार कांग्रेस जीतती है तो डा. रंगा का पार्टी में कद बढ़ जाएगा और यदि कांग्रेस सरकार बनी तो उन्हें महत्वपूर्ण पद भी मिल सकता है। ये सब कयास उनके जीत पर निर्भर करते हैं। डा. रंगा वर्ष 2000 में इनेलो टिकट पर विधायक बने और ओमप्रकाश चौटाला की सरकार में मंत्री बने थे। इसके बाद वे कई चुनाव लड़े, लेकिन विधायक नहीं बन सके। उन्होंने कई पार्टियां भी बदली हैं। उनके मुकाबले में भाजपा ने एकदम नये चेहरे डा. कृष्ण कुमार पर दांव खेला है। बावल हलका के ही गांव भटेड़ा के डा. कृष्ण स्वास्थ्य विभाग में डायरेक्टर के पद पर कार्यरत थे। उनका इस्तीफा दिलाकर पार्टी ने उन्हें प्रत्याशी बनाया है। डा. कृष्ण ने रंगा को कड़ी चुनौती दी है। केन्द्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने उन्हें टिकट दिलाया है और वे उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर मतदान तक खड़े रहे। इस हलका से कुल 11 प्रत्याशी चुनाव मैदान में है।
यादव, जाट व दलित वोट अहम
बावल हलका के राजनीति इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि यहां प्रत्याशी को हराने-जिताने में यादव, जाट व दलित वोट अहम भूमिका निभाते हैं। वर्ष 1972 में कांग्रेस के रामप्रसाद ने विशाल हरियाणा पार्टी के कन्हैयालाल बोडवाल को हराया था। स्व. रामप्रसाद पूर्व मंत्री जसवंत सिंह बावल के पिता थे। जनता पार्टी की लहर में वर्ष 1977 में जनता पार्टी की टिकट पर पहली बार शकुंतला भगवाड़िया विजयी रही थी। उन्होंने विशाल हरियाणा पार्टी के मोहनलाल को पराजित किया था। बता दें कि विशाल हरियाणा पार्टी को पूर्व मुख्यमंत्री राव बिरेन्द्र सिंह ने खड़ा किया था। वर्ष 1982 में शकुंतला भगवाड़िया ने इस बार कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा और लोकदल के मुरारीलाल को पराजित कर दूसरी बार विधानसभा में पहुंची। वर्ष 1987 में शकुंतला भगवाड़िया को जब टिकट नहीं मिली तो वे निर्दलीय मैदान में उतरी। लोकदल के मुनीलाल ने उन्हें तीसरी बार विधानसभा में पहुंचने से रोक दिया। वर्ष 1991 में शकुंतला भगवाड़िया ने एक बार फिर वापसी की और उन्होंने कांग्रेस की टिकट प्राप्त कर जनता पार्टी के हरजीराम को हराया। वर्ष 1996 में चौ. बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी के प्रत्याशी जसवंत सिंह बावल ने भगवाड़िया को हरा दिया। जसवंत सिंह बावल पहली बार विधानसभा में पहुंचे। वर्ष 2000 में भगवाड़िया को एक बार फिर से हार का सामना करना पड़ा। उन्हें इनेलो प्रत्याशी डा. एमएल रंगा ने हरा दिया। इसके बाद डा. रंगा चुनाव नहीं जीते। वर्ष 2005 में कांग्रेस की टिकट नहीं मिलने पर शकुंतला भगवाड़िया ने निर्दलीय हुंकार भरी और जोरदार वापसी की। उन्होंने कांग्रेस के भरत सिंह को चित्त कर दिया। वर्ष 2009 में एक बार फिर कांग्रेस की टिकट लेकर मैदान में उतरी भगवाड़िया को इनेलो के नये चेहरे रामेश्वर दयाल ने पराजित कर दिया। रामेश्वर दयाल कुछ दिन पूर्व ही भाजपा में शामिल हो गए हैं। वर्ष 2014 में मोदी लहर में भाजपा प्रत्याशी डा. बनवारी लाल ने इनेलो के श्याम सुंदर सभरवाल को मात दी। 2019 में भी डा. बनवारी लाल भाजपा टिकट पर जीते और उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी डा. एमएल रंगा को भारी वोटों के अंतर से पराजित किया था। वर्ष 2024 के चुनाव में कांग्र्रेस ने डा. रंगा को एक बार फिर टिकट देकर उन पर दांव खेला है।