बंसीलाल और भजनलाल परिवार से इस बार कोई मैदान में नहीं
दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 28 अप्रैल
राजनीति के उतार-चढ़ाव भी निराले हैं। हरियाणा में कभी ‘लाल राजनीति’ का दौर था। ‘लाल परिवारों’ का प्रदेश में जलवा भी था। राजनीतिक हालात ऐसे बदले कि अब प्रदेश के दो ‘लाल परिवार’ राजनीतिक तौर पर हाशिये पर पहुंच गए हैं। बेशक, इन परिवारों के सदस्य आज भी राजनीति में एक्टिव हैं, लेकिन अब वह पहले वाली बात नहीं दिखती। देश की सत्ता के केंद्र रहे चुके चौधरी देवीलाल का परिवार राजनीतिक तौर पर अलग हो चुका है। इस परिवार के लोग भी अब वजूद की ‘जंग’ लड़ रहे हैं।
साल 2024 का यह अपनी तरह का पहला लोकसभा चुनाव है, जिसमें करीब चालीस वर्षों के बाद भूतपूर्व सीएम स्व़ चौ़ बंसीलाल का परिवार चुनावों से बाहर है। इसी तरह की स्थिति भूतपूर्व सीएम स्व़ चौ़ भजनलाल के परिवार की भी है। 1998 से लगातार लोकसभा चुनाव लड़ता आया यह परिवार भी इस बार चुनावों से बाहर हो गया है। हालांकि देवीलाल परिवार के एकाध नहीं बल्कि चार सदस्य चुनावी रण में डटे हैं। इनमें से तीन तो एक-दूसरे के खिलाफ ही ताल ठोके हुए हैं।
देवीलाल के बेटे रणजीत सिंह और हरियाणा सरकार में बिजली व जेल मंत्री चौ़ रणजीत सिंह भाजपा टिकट पर हिसार से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके ही परिवार की दो बहूएं अलग-अलग पार्टियों से उनके सामने ताल ठोक रही हैं। पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला की पुत्रवधू और पूर्व सांसद डॉ़ अजय सिंह चौटाला की पत्नी नैना सिंह चौटाला जजपा टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं। वहीं देवीलाल के पुत्र और चौटाला के भाई प्रताप सिंह चौटाला की पुत्रवधू सुनैना सिंह चौटाला इनेलो की हिसार से उम्मीदवार हैं।
यानी हिसार पार्लियामेंट सीट पर चुनावी रण में देवीलाल परिवार की दो बहुओं ने अपने ही चाचा ससुर को चुनौती दी हुई है। पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला के छोटे बेटे अभय सिंह चौटाला कुरुक्षेत्र से इनेलो उम्मीदवार हैं। इनेलो के दो फाड़ होने और जजपा का गठन होने के बाद अब दोनों ही पार्टियां अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं। बंसीलाल की पोती व पूर्व सांसद श्रुति चौधरी की भिवानी-महेंद्रगढ़ से टिकट कटने की वजह से इस बार बंसीलाल परिवार भी लोकसभा चुनावों से बाहर हो गया है।
हरियाणा में लम्बे समय तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे चौ़ भजनलाल का परिवार 1998 से 2019 तक लगातार लोकसभा चुनाव लड़ता आया है। इस अवधि में यह पहला मौका है जब उनके परिवार के किसी सदस्य को लोकसभा चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिल पाया। बदली हुए राजनीतिक हालात में भजनलाल के बेटे व पूर्व सांसद कुलदीप बिश्नोई अपनी पत्नी व पूर्व विधायक रेणुका बिश्नोई और बेटे भव्य बिश्नोई के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। आदमपुर में हुए उपचुनाव में भव्य बिश्नोई ने भाजपा टिकट पर जीत हासिल की। कुलदीप बिश्नोई हिसार सीट से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन भाजपा ने उनकी जगह चौ़ रणजीत सिंह चौटाला को टिकट दिया। 2019 के लोकसभा चुनावों में कुलदीप के बेटे भव्य बिश्नोई ने कांग्रेस टिकट पर हिसार से उपचुनाव लड़ा था। इससे पहले 2014 के चुनावों में कुलदीप बिश्नोई खुद हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) की टिकट पर हिसार से उम्मीदवार थे। इनेलो के दुष्यंत चौटाला के हाथों वे चुनाव हार गए थे।
दरअसल, 2005 में 67 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत में आई कांग्रेस में भजनलाल की बजाय भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मुख्यमंत्री बनाया गया। ऐसे में भजनलाल ने 2008 में कांग्रेस छोड़ दी और खुद की हजकां पार्टी बनाई। 2009 का लोकसभा चुनाव भजनलाल ने हजकां टिकट पर हिसार से लड़ा और जीत हासिल की।
भजनलाल के निधन के बाद 2010 में हुए उपचुनाव में हजकां टिकट पर ही कुलदीप बिश्नोई ने हिसार से जीत हासिल की। इससे पहले यानी 2004 के लोकसभा चुनावों में कुलदीप बिश्नोई भिवानी पार्लियामेंट से कांग्रेस सांसद बने थे।
1991 में नहीं लड़ा चुनाव
हरियाणा में दो ही बार यानी 1991 और 1996 में ही लोकसभा के साथ विधानसभा के चुनाव हुए हैं। 1989 में भजनलाल फरीदाबाद से सांसद थे। 1991 का लोकसभा चुनाव लड़ने की बजाय वे आदमपुर से विधानसभा चुनाव लड़े। चुनावों में कांग्रेस की जीत हुई और भजनलाल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। वे 1996 तक मुख्यमंत्री रहे। इससे पहले वे 1979 से 1986 तक प्रदेश के सीएम रह चुके थे। 1986 में उनका सीएम कार्यकाल पूरा होने और सत्ता परिवर्तन के बाद कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया। वे केंद्र में वन एवं पर्यावरण मंत्री रहे। 1988 में उन्हें कृषि मंत्री बना दिया गया।
तीन जगह से सांसद रहे भजनलाल
चौ. भजनलाल अकेले ऐसे मुख्यमंत्री रहे, जिन्होंने तीन लोकसभा क्षेत्रों का भी संसद में प्रतिनिधित्व किया। 1989 में भजनलाल ने फरीदाबाद लोकसभा से कांग्रेस टिकट पर जीत हासिल की। वे जनता पार्टी के खुर्शीद अहमद को चुनाव हराकर संसद पहुंचे। 1998 में भजनलाल ने करनाल से चुनाव लड़ा और भाजपा के आईडी स्वामी को शिकस्त देकर जीत हासिल की। हालांकि 1999 का लोकसभा चुनाव वे करनाल में ही आईडी स्वामी के हाथों हारे।