लहर है नहीं, मगर कहर ढाने के दावे
शमीम शर्मा
एक मोहल्ला इस बात के लिये बदनाम था कि वहां साधु-संतों को कोई दक्षिणा नहीं दिया करता था बल्कि उनका खुलेआम विरोध किया करता। एक मोड्डा बोला- मैं तो वहां से भी दक्षिणा लाकर दिखा सकता हूं। वह इसी धौंस में चला गया। मोहल्ले वाले उसे देखते ही आग-बबूला हो गये और मोड्डे की सौड़-सी भर दी। लौटने पर उसके साथी बोले- ले लिये मजे, हमने तुझे पहले ही मना किया था। मोड्डा बोला- ठुकाई की किमें बात नीं, चलो मेरा वहम तो निकल गया।
चुनाव अच्छे-अच्छों का वहम निकाल देते हैं। ‘सरकार हम ही बनायेंगे’ की रट सबने लगा रखी है। अब पता चलेगा कि नब्बे में से किस पार्टी के कितने नंबर आये। एक बोला कि हमारी पार्टी की तो हवा चल रही है। दूसरा उसकी बात काटते हुए बोला- ‘हवा तो छोड़, झोंका भी नहीं है।’ जिनकी कोई लहर नहीं है, वे भी कहर ढाने की बातें कर रहे हैं।
एक बात माननी पड़ेगी कि नेताओं को छकाने में वोटरों ने कोई कसर नहीं छोड़ रखी है। नेताओं ने भी वोटरों को रिझाने में दिन-रात एक किया हुआ है। हर वोटर के बारे में यह कहा जायेगा कि ‘कदे एस फुल ते कदे ओस फुल ते, यार मेरा तितलियां वरगा’। ये सबको समर्थन का आश्वासन दे रहे हैं। इसी कारण ये वोटर सभी नेताओं को अपने से लगते हैं पर इनका चाबुक जब चलता है तो उन्हें नाकों चने चबाने पड़ जाते हैं।
कुछ वोटर तो होते हैं झूठे, कुछ महाझूठे और सबसे खतरनाक वोटर वे होते हैं जो कहते हैं कि हमारे कुणबे के पूरे 370 वोट हैं। पता चलता है कि 37 भी नहीं हैं। कहीं-कहीं तो वोटर आपस में ही उलझ रहे हैं। अरे तू तो कल फलां नेता के साथ था और आज यहां हाजरी मार रहा है। ये जुमले आम हो रहे हैं। वोटर भी असमंजस में है कि इधर जाऊं या उधर जाऊं। क्योंकि कल तक जिस पार्टी के मुखिया का पुतला जलाया करते, आज उसी के बैनर पकड़ने को मजबूर हो रहे हैं। नेता तो एक पल में इधर से उधर छलांग मार जाता है पर समर्थकों पर बिजली टूट पड़ती है जो आपस का भाईचारा भी निगल जाती है।
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एक बर की बात है अक नत्थू मंदर मैं ग्या। गोज मैं तै एक पांच का सिक्का काढकै शिवजी की मूर्ति सामीं धर दिया अर बोल्या- रै भोले! एक टरेक्टर दुवा दे। उड़ै बैठ्या सुरजा पंडत गुस्से मैं लखाते होये बोल्या- रै बावले! एक पांच का सिक्का और धर दे, ना तो ट्राली खात्तर फेर भोले धोरै चक्कर काटता हांडैगा।